क्या यूरोपीय संघ और अमेरिका में गहरी होगी दरार, या स्टार्मर, मैक्रों और जेलेंस्की की ट्रंप से बढ़ेगी रार?

लंदन बैठक के दौरान जो दृश्य दिखा उससे साफ है कि यूक्रेन को समर्थन देने के मुद्दे पर अब यूरोपीय संघ में भी फूट पड़ चुकी है। उदाहरण के लिए, स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री रॉबर्ट फिको और हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान ने अब आगे यूक्रेन को आर्थिक तथा सैन्य मदद देने से मना किया है। […]

Mar 3, 2025 - 14:14
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क्या यूरोपीय संघ और अमेरिका में गहरी होगी दरार, या स्टार्मर, मैक्रों और जेलेंस्की की ट्रंप से बढ़ेगी रार?

लंदन बैठक के दौरान जो दृश्य दिखा उससे साफ है कि यूक्रेन को समर्थन देने के मुद्दे पर अब यूरोपीय संघ में भी फूट पड़ चुकी है। उदाहरण के लिए, स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री रॉबर्ट फिको और हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान ने अब आगे यूक्रेन को आर्थिक तथा सैन्य मदद देने से मना किया है। वे कहते हैं कि यूक्रेन कितनी भी सैन्य ताकत झौंक दे, इससे वह रूस को वार्ता की मेज तक नहीं ला सकता।



वाशिंगटन में ओवल आफिस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के बीच प्रस्तावित ‘खनिज संधि’ और युद्धविराम को लेकर तीखी नोंकझोंक दुनिया के सामने आई। उसके बाद यूक्रेन के आम लोग भले अपने राष्ट्रपति के साथ एकजुट दिख रहे हैं, लेकिन जेलेंस्की के माथे पर बल गहराते दिख रहे हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर उनके साथ कितनी ही फोटो खिंचवां लें लेकिन दोनों जानते हैं कि महाबली अमेरिका की दखल के बिना युद्ध का रुकना दूर की कौड़ी ही रहने वाला है। इसलिए फ्रांस, ब्रिटेन और यूक्रेन के प्रस्तावित संघर्षविराम प्रस्ताव को अमेरिका की अनुशंसा के लिए भेजे जाने संबंधी बयान जारी किए गए हैं।

ब्रिटेन, फ्रांस और यूक्रेन द्वारा तैयार किए गए संघर्षविराम प्रस्ताव का उद्देश्य रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष को समाप्त करना तो है ​ही, उसके अलावा भविष्य में यूक्रेन की सुरक्षा को लेकर चिंताओं को दूर करना भी है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री स्टार्मर, फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की इस बिन्दु पर एकमत दिख रहे हैं और इसी बिन्दु पर ट्रंप जेलेंस्की पर सख्त हुए थे।

ट्रंप और अपने बीच हुई उसी तीखी बहस के बाद जेलेंस्की लंदन पहुंचे थे। वहां उन्हें ब्रिटेन और फ्रांस का भरपूर समर्थन मिला। ब्रिटेन, फ्रांस और यूक्रेन ने मिलकर इस संघर्षविराम योजना पर काम करने का निर्णय लिया। इस योजना के तहत कल यानी 2 मार्च को यूरोपीय देशों की एक बैठक आयोजित हुई, जिसमें फ्रांस, जर्मनी, डेनमार्क, इटली, नीदरलैंड, नॉर्वे, पोलैंड, स्पेन, कनाडा, फिनलैंड, स्वीडन, चेक गणराज्य और रोमानिया के नेता शामिल हुए। तुर्की के विदेश मंत्री, नाटो महासचिव तथा यूरोपीय आयोग और यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष भी इस बैठक में उपस्थित रहे। इस बैठक का उद्देश्य यूक्रेन में स्थायी शांति और यूरोप की सुरक्षा सुनिश्चित करना था।

लंदन में यूरोप के आपात शिखर सम्मेलन का अयोजन किया गया था। इसमें 15 देशों ने भाग लिया

लेकिन बैठक के दौरान जो दृश्य दिखा उससे साफ है कि यूक्रेन को समर्थन देने के मुद्दे पर अब यूरोपीय संघ में भी फूट पड़ चुकी है। उदाहरण के लिए, स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री रॉबर्ट फिको और हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान ने अब आगे यूक्रेन को आर्थिक तथा सैन्य मदद देने से मना किया है। वे कहते हैं कि यूक्रेन कितनी भी सैन्य ताकत झौंक दे, इससे वह रूस को वार्ता की मेज तक नहीं ला सकता।

इस संघर्षविराम योजना में अमेरिका की ओर से यूक्रेन और यूरोप की सुरक्षा गारंटी देनी जरूरी होगी। ब्रिटिश प्रधानमंत्री स्टार्मर का कहना है कि आखिर अमेरिका के राष्ट्रपति भी तो यूक्रेन में स्थायी शांति ही चाहते हैं। यूक्रेन, यूरोप तथा हम सबके भविष्य को सुरक्षित करने के लिए एकजुट होना जरूरी है।

यूरोप के बड़े देशों का मानना है संघर्षविराम योजना के अंतर्गत, यूक्रेन की संप्रभुता और सुरक्षा सुनिश्चित ​होनी जरूरी है और इसके लिए उनकी एकजुटता जरूरी है। ब्रिटेन, फ्रांस और यूक्रेन मिलकर इस योजना पर आगे बढ़ेंगे। इसके साथ ही, यूरोप के देशों ने कसम खाई है कि यूक्रेन की रक्षा करेंगे। इसके साथ ही उन्होंने ट्रम्प से अनुरोध किया है कि इसे अपना समर्थन दें।

लंदन में कल यूरोपीय देशों की कल सम्पन्न हुई आपातकालीन शिखर बैठक में व्यापक सहमति बनी है कि यूरोप को अब यूक्रेन के लिए एक न्यायपूर्ण शांति समझौते के नाम पर सबको आगे आकर सहयोग करना चाहिए। लेकिन बैठक में इस कदम का कोई ठोस खाका सामने नहीं रखा गया।

28 फरवरी को व्हाइट हाउस में ओवल आफिस में हुए हैरान करने वाले वार्तालाप के दृश्यों के बाद लंदन में यूरोप के आपात शिखर सम्मेलन का अयोजन किया गया था। इसमें 15 देशों ने भाग लिया, साथ ही नाटो तथा यूरोपीय संघ के अध्यक्षों और राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की भी इसमें शामिल हुए थे। बैठक लगभग दो घंटे चली। लेकिन किन बिन्दुओं पर सहमति हुई, वे साझा नहीं किए गए।

ब्रिटेन से रवाना होते वक्त हवाई अड्डे पर ज़ेलेंस्की ने कहा कि यूक्रेन को सुरक्षा गारंटी की आवश्यकता है, जिसके बिना युद्धविराम का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। उन्हें लगता है कि रूस इस समझौते का उल्लंघन कर सकता है।

लंदन बैठक में दो महत्वपूर्ण बिन्दु जरूर उभरे—एक, यूक्रेन को सैन्य सहायता जारी रहनी चाहिए और दो, रूस पर आर्थिक दबाव बढ़ना चाहिए। कहा गया है कि किसी भी शांति वार्ता में यूक्रेन को शामिल किया जाना अनिवार्य है। एक बात यह भी हुई कि शांति समझौते के बाद भी, यूरोप यूक्रेन की रक्षा सामर्थ्य बढ़ाना जारी रखेगा। एक संयुक्त यूरोपीय बल संभावित रूसी आक्रमण को रोकने के लिए यूक्रेन में तैनात होगा।

हालांकि फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों के साथ अपनी बातचीत में ट्रम्प ने उनसे यहां तक ​​कहा था कि रूसी राष्ट्रपति यूक्रेन में यूरोपीय सैनिकों की तैनाती के विचार से पूरी तरह सहमत हैं। ट्रंप ने कहा था, “मैंने उनसे यह सवाल विशेष रूप से पूछा है। उन्हें इससे कोई समस्या नहीं है।” लेकिन अजीब बात है कि ट्रंप के इस दावे को रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावारोव ने एकदम से खारिज करते हुए कहा कि ऐसा होने से ‘संघर्ष और बढ़ेगा’।

लंदन शिखर सम्मेलन में बनी शांति समझौते की यूरोपीय योजना को स्वीकारे जाने की संभावना काफी कम है। यूक्रेन और यूरोप के लिए खतरा बहुत स्पष्ट है। ट्रंप प्रशासन की घोषित धारणा है कि समय आ गया है कि यूरोप अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी खुद ले। बहुत संभव है कि भविष्य में यूक्रेन के लिए अमेरिकी सैन्य समर्थन प्राप्त न हो। लेकिन अगर अमेरिकी सहायता बंद हो सकती है। अब यूरोप और यूक्रेन के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती है।

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