नागपुर – भारतीय विचार मंच द्वारा गठित तथ्य अन्वेषण समिति की रिपोर्ट, सुनियोजित थी हिंसा; मुस्लिम समुदाय में फैलाई गई गलतफहमी

17 मार्च, 2025 को नागपुर शहर के महाल परिसर में मुस्लिम समाजकंटकों ने धार्मिक तनाव तथा हिंसाचार की घटना (दंगे) को अंजाम दिया था। घटना ने न केवल शहर के सामाजिक-धार्मिक सौहार्द पर, बल्कि नागरिक सुरक्षा व्यवस्था पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े किए। घटना को लेकर गठित भारतीय विचार मंच की तथ्यान्वेषी समिति की रिपोर्ट के […] The post नागपुर – भारतीय विचार मंच द्वारा गठित तथ्य अन्वेषण समिति की रिपोर्ट, सुनियोजित थी हिंसा; मुस्लिम समुदाय में फैलाई गई गलतफहमी appeared first on VSK Bharat.

17 मार्च, 2025 को नागपुर शहर के महाल परिसर में मुस्लिम समाजकंटकों ने धार्मिक तनाव तथा हिंसाचार की घटना (दंगे) को अंजाम दिया था। घटना ने न केवल शहर के सामाजिक-धार्मिक सौहार्द पर, बल्कि नागरिक सुरक्षा व्यवस्था पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े किए। घटना को लेकर गठित भारतीय विचार मंच की तथ्यान्वेषी समिति की रिपोर्ट के अनुसार हिंसा की घटनाएं पूर्व नियोजित थीं।

धार्मिक और सामाजिक समरसता के शहर के रूप में विख्यात नागपुर में घटित इस घटना का सच जनता के सामने लाने के उद्देश्य से सामाजिक संगठन भारतीय विचार मंच ने पहल करते हुए एक स्वतंत्र तथ्य-अन्वेषण समिति का गठन किया। समिति ने निष्पक्षता, वस्तुनिष्ठता और सामाजिक उत्तरदायित्व के सिद्धांतों पर काम किया। समिति में वरिष्ठ पत्रकार, सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी, अधिवक्ता, समाजशास्त्री, मानवाधिकार कार्यकर्ता, साथ ही तकनीकी और सूचना विश्लेषक शामिल थे।

समिति ने लगभग 40 हिन्दू पीड़ितों और 20-22 मुस्लिम समाज के बंधुओं से मुलाकात की और दंगों पर उनकी राय जानी। मुस्लिम बंधुओं ने इस शर्त पर अपनी प्रतिक्रिया दी कि उनके नाम उजागर नहीं किए जाएँगे। तथ्य-अन्वेषण समिति ने दोनों समुदायों की बातों पर ध्यान दिया। लगभग 10 विभिन्न संगठनों ने तथ्य-अन्वेषण समिति को अपने विचार स्पष्ट करते हुए ज्ञापन प्रस्तुत किए। समिति ने स्थानीय समाचार पत्रों, यूट्यूब चैनलों पर प्रसारित साक्षात्कारों और वेब पोर्टलों द्वारा प्रकाशित समाचारों का गंभीरता से अध्ययन किया।

तथ्य अन्वेषण समिति के निष्कर्ष

१). दंगे की शुरुआत की घटनाओं के क्रम को देखते हुए, पता चलता है कि यह पूर्वनियोजित था। कब्र की प्रतिकृति और हरे कपड़े को जलाना तो बस अस्थायी बहाना था। समिति ने पाया कि देश में हाल की घटनाओं के बारे में मुस्लिम समुदाय में फैलाई गई गलतफहमियों ने घटना को काफी हद तक बढ़ावा दिया। आम तौर पर मुस्लिम दुकानदारों द्वारा फुटपाथ पर पार्क किए जाने वाले सैकड़ों दोपहिया वाहनों को दंगों की दोपहर हटा दिया गया था। दंगाइयों के हाथों में बड़े-बड़े पत्थर, लाठियाँ, कांच की बोतलें, तलवारें, चाकू और पेट्रोल बम थे। इन्हीं बातों से साफ़ था कि दंगा सुनियोजित था।

२). ये दंगे हिन्दू समुदाय को निशाना बनाकर किए गए थे। भीड़ का इरादा कानून-व्यवस्था को ध्वस्त करना, पुलिस और नागरिकों में भय पैदा करना और पुलिस का मनोबल गिराना था। दंगे में लगभग 35 से 40 पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों पर हमला किया गया। उनमें से कुछ गंभीर रूप से घायल हो गए। पुलिस उप-आयुक्त निकेतन कदम कुल्हाड़ी से किए गए हमले में गंभीर रूप से घायल हो गए। चौंकाने वाली बात यह है कि एक महिला पुलिस अधिकारी के साथ छेड़छाड़ की गई। यह सिर्फ़ एक व्यक्ति पर हमला नहीं है, बल्कि पूरे सुरक्षा तंत्र के मनोबल पर एक क्रूर प्रहार है।

३). दंगाग्रस्त इलाकों में कई घरों में महिलाएं अकेली थीं। उस समय उन पर पत्थर फेंककर घरों में घुसने की कोशिश की गई। इसके पीछे की साजिश इस्लाम के नाम पर नारे लगाकर महिलाओं में सुनियोजित आतंक फैलाने की थी।

४). हिंसक भीड़ ने ‘लक्षित’ हमले किए। हिंसक भीड़ ने बड़ी संख्या में लोगों, दुकानों, घरों और सड़क पर खड़े वाहनों पर पथराव शुरू कर दिया। बड़ी संख्या में वाहनों में आग लगा दी। इससे हिन्दू समुदाय के नागरिकों के वाहन काफी हद तक क्षतिग्रस्त हो गए। कुछ जगहों पर मुस्लिम समुदाय के दो-चार लोगों की गाड़ियाँ भी क्षतिग्रस्त हुईं। हालाँकि, यह महज़ एक संयोग है।

५). यह भी कहा जा सकता है कि पुलिस को अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के संवेदनशील इलाकों में हो रही गतिविधियों की पर्याप्त जानकारी नहीं थी। यह भी कहा जा सकता है कि पुलिस दंगों से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं थी। पुलिस व्यवस्था का ख़ुफ़िया विभाग, स्थिति का सही आकलन करने में पर्याप्त रूप से सफल नहीं रहा। हिंसक भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस को केवल लाठीचार्ज, यानी सीमित बल प्रयोग करने का आदेश दिया गया था। कई पुलिस अधिकारियों ने यह बात स्वीकार की है।

६). जब पुलिस को भीड़ जमा होने की भनक लगी, तो उन्होंने उसे रोकने के लिए तुरंत कोई कदम नहीं उठाया। कुछ मस्जिदों में सामान्य से ज़्यादा लोग, खासकर युवा और नाबालिग, जमा हुए थे। हालाँकि, ऐसा लगता है कि इस सूचना को गंभीरता से नहीं लिया गया।

७). इन बस्तियों के आसपास की सड़कों पर पुलिस की मौजूदगी थी, लेकिन हिंसक भीड़ को संभालने के लिए यह पर्याप्त नहीं थी। कई पुलिस अधिकारियों को अपनी जान बचाने के लिए घटनास्थल छोड़ना पड़ा, जबकि अन्य को नागरिकों ने अपने घरों में शरण दी। नागरिकों द्वारा अपने घरों में शरण देने से कुछ पुलिस कर्मियों की जान बच सकी।

८). शुरुआत में, पुलिस बल के पास हिंसक भीड़ से निपटने और उनकी सुरक्षा के लिए पर्याप्त उपकरण नहीं थे। उदाहरण के लिए शील्ड, हेलमेट। समिति को ऐसे कई उदाहरण मिले जहाँ कई नागरिकों ने पुलिस को साधारण हेलमेट उपलब्ध कराए। समिति ने चौंकाने वाला तथ्य पाया कि संवेदनशील क्षेत्रों से सटी सड़कों पर कोई सीसीटीवी प्रणाली के कैमरे उपलब्ध नहीं थे।

९). पुलिस नियंत्रण कक्ष, पुलिस स्टेशन और पुलिस अधिकारियों को प्रभावित इलाकों के नागरिकों से मदद के लिए बड़ी संख्या में कॉल आ रहे थे। खास तौर पर, गवलीपुरा, शिर्के गली, हंसापुरी और अन्य जगहों से पुलिस को बड़ी संख्या में कॉल आ रहे थे। कई शिकायतें मिली हैं कि पुलिस की ओर से सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली। नागरिकों को बताया जा रहा है कि पुलिस के पास पर्याप्त संख्या में बल नहीं है और जो है वे कहीं और व्यस्त है। नागरिकों ने बताया कि पुलिस बल इन स्थानों पर बहुत देरी से पहुंचा, एक घंटे बाद और कुछ स्थानों पर डेढ़ घंटे बाद।

१०). लोग हिंसक भीड़ को नियंत्रित करने और खुद को बचाने को अपने तरीकों से पूरे प्रयास कर रहे थे। कुछ जगहों पर बातचीत से पता चला कि लोगों ने इकट्ठा होकर भीड़ को काफी देर तक रोके रखा।

समिति के सुझाव

१). यह घटना पुलिस व्यवस्था के लिए एक बड़ा सबक है। दंगे जैसी स्थिति का समय रहते अंदाज़ा लगा सकें और इन घटनाओं को टाला जा सके, इस दृष्टि से पुलिस का खुफ़िया तंत्र पर्याप्त सक्षम होना आवश्यक है। यह ज़रूरी है कि नागपुर पुलिस बल दंगे जैसी आपदा की स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त रूप से सुसज्जित हो। पुलिस के पास पर्याप्त मानव संसाधन और दंगा नियंत्रण संसाधन होने चाहिए।

२). संवेदनशील बस्तियां और सड़कों पर एक प्रभावी सीसीटीवी प्रणाली की आवश्यकता है। सीसीटीवी सिस्टम को भीड़ का निशाना न बनने देने के लिए विशेष उपाय किए जाने की आवश्यकता है। पुलिस व्यवस्था के लिए संवेदनशील इलाकों में संचार और नियंत्रण का एक प्रभावी तंत्र स्थापित करना आवश्यक है।

३). दंगों में कई घरों, दुकानों, वाहनों और यहाँ तक कि एक अस्पताल को भी भारी नुकसान पहुँचा है। सरकार को इन संस्थाओं को तुरंत पर्याप्त मुआवज़ा देना चाहिए।

४). इन बस्तियों में लोगों को सुरक्षा का भरोसा होना चाहिए। सरकार को इसके लिए एक विशेष योजना बनानी चाहिए।

५). दंगों से हुए नुकसान की भरपाई दंगाइयों से वसूलने के लिए एक प्रभावी व्यवस्था और योजना की आवश्यकता है। सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने वालों से नुकसान की मुआवजा वसूली हेतु   जवाबदेही निश्चित की जानी चाहिए। उसी प्रकार दंगाइयों पर नकेल कसी जाए तथा अन्य को भी इससे सबक मिले, इस उद्देश्य से कानून की परिधि में सरकार द्वारा कठोर कारवाई की जाए। गैरकानूनी हथियार रखने वालों की नियमित जांच होनी चाहिए।

६). यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि यदि दंगों से जुड़े होने का प्रमाण मिलता है तो ऐसे तत्वों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिले।

७).  दंगों के मुख्य आरोपी फहीम खान के अनाधिकृत मकान पर बुलडोजर की कार्रवाई उचित थी। अन्य आरोपियों के अनाधिकृत मकानों पर भी ऐसी ही कार्रवाई अपेक्षित है।

८). किसी भी आंदोलन या विरोध प्रदर्शन की अनुमति देते समय पुलिस को पहले से यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि सभी आवश्यकताओं का सख्ती से पालन किया जाएगा।

९). क्या दंगा पूर्व नियोजित था? क्या हिंसा की योजना बहुत पहले से बनाई गई थी? क्या इसके लिए कोई बहाना ढूँढने की कोशिश की गई थी? इन सवालों के जवाब पुलिस जाँच से मिलने चाहिए।

१०). यह सुनिश्चित करने के उपाय किए जाने चाहिए कि धार्मिक स्थलों का उपयोग दंगों से पहले की तैयारियों के लिए न किया जाए। पुलिस को उग्रवाद फैलाने वाले और युवाओं को भड़काने वाले तत्वों की जानकारी लेकर समय पर कार्रवाई करनी चाहिए।

११). मुस्लिम समुदाय में व्यापक स्तर पर परामर्श की आवश्यकता है। इस संबंध में सरकारी और सामाजिक संस्थाओं के स्तर पर प्रयास किए जाने चाहिए। मुस्लिम समुदाय में जागरूकता और कानूनों के पालन का काफी अभाव है। उसे दूर करने के प्रयास हों।

सत्यशोधन समिति के सदस्य

सोपान देशपांडे (सेवानिवृत्त न्यायाधीश), एडवोकेट भाग्यश्री दिवाण (भारतीय विचार मंच, युवा आयाम प्रमुख), चारुदत्त कहू (सहयोगी संपादक, तरुण भारत), रमाकांत दाणी (ज्येष्ठ पत्रकार), सुनील किटकरू (सामाजिक कार्यकर्ता), सुरेश विंचूरकर (सामाजिक कार्यकर्ता), विश्वजीत सिंह (सामाजिक कार्यकर्ता), राजू साळवे (सामाजिक कार्यकर्ता), राहुल पानट (सामाजिक कार्यकर्ता), एडवोकेट रितू घाटे (भारतीय विचार मंच, युवा आयाम)।

समिति ने आशा व्यक्त की कि यह रिपोर्ट राज्य सरकार, स्थानीय प्रशासन, न्यायपालिका और नागरिक समाज के लिए उपयोगी होगी। रिपोर्ट का उद्देश्य दोषारोपण करना नहीं है, बल्कि सच्चाई को सामने लाना, समुदायों के बीच विश्वास के नए पुल बनाना और नागपुर शहर को शांति और सह-अस्तित्व के मार्ग पर वापस लाने में योगदान देना है।

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