अतीत में सम्पूर्ण भूमण्डल एक हिन्दू राष्ट्र
अमेरिका तक में होने जैसे अनेक प्रमाण, विश्व भर में एक साझी संस्कृति से युक्त एकात्म राष्ट्र
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अतीत में सम्पूर्ण भूमण्डल एक हिन्दू राष्ट्र
अतीत में सम्पूर्ण भूमण्डल पर यहीं श्रेष्ठ विचारों पर आधारित हिन्दू जीवन पद्धति से जीने वाला समाज रहा है। इण्डोनेशिया से अमेरिका तक इस समान जीवन पद्धति के अनेक उद्धरण व प्रमाण रहे हैं। सम्पूर्ण यूरोप में सूर्य के उपासक रहे हैं। सूर्य अर्थात मित्र के वर्णन एवं पुरावशेष आज भी सम्पूर्ण यूरोप में फैले हैं। यूरोपीय पुराविशेषज्ञों एडम्स व फीथियन की पुस्तक डपजतंपेउ पद म्नतवचम में इसका समुचित विवेचन है। सम्पूर्ण भू-मण्डल के एक राष्ट्रª होने के वेद वाक्य अर्थात पृथ्वी से समुद्र पर्यन्त एक राष्ट्रª व उसमें भिन्न-भिन्न शासन प्रणालियों से युक्त राज्य: समस्त भू-मण्डल पर एक समेकित संस्कृति की दृष्टि से ईरान से भी परे यूरोप के लगभग सभी प्राचीन पुरातात्विक उत्खननों मे सूर्य देवता के अवशेषों की प्राप्ति, अमेरिका महाद्वीप के सूर्य मन्दिर, सिन्धुघाटी सभ्यता की लिपि व चित्रित पशुओं आदि के तत्सम लिपियों व जीवों का लेटिन अमेरिका तक में होने जैसे अनेक प्रमाण, विश्व भर में एक साझी संस्कृति से युक्त एकात्म राष्ट्र की वैदिक उक्ति ‘‘पृथिव्याये समुद्र पर्यन्ताया एक राडिति’’ अर्थात ‘पृथ्वी से समुद्र पर्यन्त यह भूमण्डल एक राष्ट्रª को चरितार्थ करती है। राष्ट्रª की यह अवधारणा राज्यों की भौगोलिक या भू-राजनैतिक सीमाओं से परे रही है। समान धर्म मर्यादाओं अर्थात् शाश्वत कत्र्तव्यपथ को निर्देशित करने वाले एकात्म संस्कृति से युक्त राष्ट्रª के अन्तर्गत विविध शासन प्रणालियों के अनुगामी राज्यों से आवेष्ठित होने पर भी, यह समग्र भू-मण्डल अति प्राचीन काल से एक एकात्म राष्ट्रª के रूप में देखा जाता रहा है, यथा ऊँ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं माहाराज्यमाधिपत्यमयं संमतपर्यायी स्यात्सार्वभौमः सार्वायुष आंतादापरार्धात्पृथिव्यै समुद्रपर्यताया एकराडिति।।
3 ।। तदप्येशः श्लोकोऽभिगीतो। मरूतः परिवेष्टारो मरूŸास्यावसन् गृहे। आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वे देवाः सभासद इति।।4।।उक्त मन्त्र में एक सार्वभौम राष्ट्रª के अन्तर्गत भिन्न-भिन्न भू-राजनैतिक क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न शासन प्रणालियों से युक्त राज्यों के सन्दर्भ हैं। इन राज्यों का संक्षिप्त परिचय देना भी यहाँ समीचीन होगा।उक्त श्लोकान्तर्गत आने वाली शासन प्रणालियाँ:-ऐतरेय ब्राह्मण की अष्टम पंचिका में विविध शासन-प्रणालियों का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। साथ ही इनके शासकों के नाम भी दिए गए हैं। यह भी उल्लेख 2है कि ये प्रणालियाँ कहाँ प्रचलित थी। ये प्रणालियाँ हैं - 31. साम्राज्य - इस प्रणाली के शासक को ‘सम्राट्’ कहते थे। यह प्रणाली पूर्व दिशा के राज्यों (मगध, कलिंग, बंग आदि) में प्रचलित थी। सम्राट् एकछत्र अधिकारी होता था। वहाँ कोई सभा, समिति या संसद नहीं होती थी।2. भौज्य - इस प्रणाली के शासक को ‘भोज’ कहते थे। यह प्रणाली दक्षिण दिशा के सत्वत् (यादव) राज्यों में प्रचलित थी। अन्धक और वृष्णि यादव-गणराज्य इस श्रेणी में आते हें। इस शासन-प्रणाली में जनहित और लोक-कल्याण की भावना अधिक रहती थी, अतः यह पद्धति अधिक लोकप्रिय हुई। यहाँ बुद्धिजीवियों की सभा होती थी, जो सब प्रकार के प्रमुख निर्णय लिया करती थी।
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3. स्वराज्य - इस प्रणाली के शासक को ‘स्वराट्’ कहते थे। यह प्रणाली पश्चिम दिशा के (सुराष्ट्रª, कच्छ, सौवीर आदि) राज्यों में प्रचलित थी। यह स्वराज्य या स्वशासित (ैमस.ितनसपदह) प्रणाली है। राजा स्वतंत्र रूप से शासन न करके अपनी सभा के निर्णयों से प्रतिबद्ध होता था।4. वैराज्य - इस प्रणाली के शासक को ‘विराट्’ कहते थे। यह प्रणाली हिमालय के उत्तरी भाग उत्तर कुरू, उत्तर मद्र आदि राज्यों में प्रचलित थी। यह शासन-प्रणाली जनतंत्रात्मक या संघ शासन-प्रणाली है। इसमें प्रशासन का उत्तरदायित्व व्यक्ति पर न होकर समूह या सभा पर होता हैं। यह सभा प्रबल सामन्तों की होती थी। 45. पारमेष्ठ्य राज्य - इस प्रणाली के शासक को ‘परमेष्ठी’ कहते थे। महाभारत के शान्तिपर्व और सभापर्व में इसका विस्तार से वर्णन हुआ है। यह गणतंत्र-पद्धति है। इसकी मुख्य विशेषता है - प्रजा में शान्ति-व्यवस्था की स्थापना और परमेश्वर को राज्य का अधिपति मानकर त्याग पूर्वक 5 राज्य संचालन।
इसमें सभी को समान अधिकार प्राप्त होता है। गणमुख्य योग्यता और गुणों के आधार पर होता है। ‘मेवाड़’ अर्थात मेदपाट राज्य में भगवान शिव अर्थात एकलिंगनाथ को राजा मान कर महाराणा, उनके दीवान के रूप में शासन करते थे। 6. राज्य - इस प्रणाली में राज्य का उच्चतम शासक ‘राजा’ होता था। यह प्रणाली मध्यदेश में कुरू, पंचाल, उशीनर आदि राज्यों प्रचलित थी। राजा 1की सहायता के लिए मंत्रियों की परिषद् होती थी। शासनतंत्र के संचालन के लिए विभिन्न अधिकारियों की नियुक्ति होती थी।7. महाराज्य - इस प्रणाली के प्रशासक को ‘महाराज’ कहते थे। यह राज्य पद्धति का उच्चतर रूप है। किसी प्रबल शत्रु पर विजय प्राप्त करने पर उसे ‘महाराज’ उपाधि दी जाती थी।8. आधिपत्य समन्तपर्यायी - इस प्रणाली से प्रशासक को ‘अधिपति’ कहते थे। इस प्रणाली को ‘समन्तपर्यायी’ कहा गया है। वह पड़ौसी जनपदों 2को अपने वश में कर लेता था तथा उनसे कर वसूल करता था। छान्दोग्य उपनिषद् में इस प्रणाली को श्रेष्ठ बताया है।39. सार्वभौम - इस प्रणाली के प्रशासक को ‘एकराट्’ कहते थे। ऐतरेय ब्राह्मण में इसका उल्लेख है। यह सारी भूमि राजा की होती थी। इस प्रणाली को ‘सार्वभौम प्रभुत्व’ नाम दिया गया है।410. जनराज्य या जानराज्य - यजुर्वेद, तैत्तिरीय संहिता और शतपथ ब्राह्मण आदि में ‘महते जानराज्याय’ महान् जनराज्य का उल्लेख है। इससे ज्ञात होता है कि राजा का अभिषेक ‘जनतंत्रात्मक प्रशासन’ के लिए होता था। इसके प्रशासक को ‘जानराजा’ कहा जाता था।
611. अधिराज्य - ऋग्वेद और अथर्ववेद में इसका उल्लेख है। इसके प्रशासक को ‘अधिराज’ कहते थे। इस प्रणाली में ‘उग्रं चेत्तरम्’ अर्थात् राजा उग्र और कठोर अनुशासन रखता था। राजा निरंकुशता का रूप ले लेता होगा, अतः यह प्रणाली आगे लुप्त हो गई।712. विप्रराज्य - ऋग्वेद और अथर्ववेद में विप्रराज्य का वर्णन है। इसमें यज्ञ, कर्मकाण्ड पर विशेष बल था। 113. समर्यराज्य - ऋग्वेद में समर्यराज्य का उललेख है। समर्य का अर्थ है - सम्-श्रेष्ठ या संपन्न, अर्य-वैश्य। यह धनाढ्यों का राज्य था। इसमें व्यापार में उन्नति, धन-धान्य की समृद्धि और सैन्यशक्ति की वृद्धि का उल्लेख है।
राष्ट्रª: एक प्राचीन हिन्दू राष्ट्रª की अवधारणा, वैदिक काल से ही प्रचलित रही है। भारत अपनी साझी सांस्कृतिक विरासत के कारण भारत एक अति प्राचीन सांस्कृतिक राष्ट्रª है। विगत दो सहस्त्राब्दियों में बने अनेक पाथिक व भू-राजनैतिक राज्यों के बनने के पूर्व भारत की इस भू-सांस्कृतिक एकता, के वैश्विक व्याप के आज भी अनेक प्रमाण प्रकट हो रहे हैं। लेकिन, आज की भू-राजनीतिक सीमाओं से युक्त भारत की सघन सांस्कृतिक एकतावश निर्विवाद रूप से भारत भू-सांस्कृतिक दृष्टि से हिन्दू राष्ट्रª है। देश की यह अनादिकालीन भू-सांस्कृतिक एकता, सामायिक वैश्विक परिवेश व परिवर्तनों से अप्रभावित रही है। हमारा हिन्दू राष्ट्रª सांस्कृतिक एकात्मता से ही जाना जाता है, क्योंकि संस्कृति ही राष्ट्रª के गठन का मुख्य आधार होता है। अपना राष्ट्रª जीवन बाह्मत: अनेक पंथोपपंथ, संप्रदाय तथा जाति-उपजातियों अथवा कभी-कभी अनेक राज्यों में विभक्त हुआ दिखने के बावजूद उनकी सांस्कृतिक एकात्मता युगों से अविच्छिन्न रही है। जिस मानव समुदाय का यह एकात्म प्रवाह रहा है, उन्हें हिन्दू के नाम से संबोधित किया जाता है। इसलिये भारतीय राष्ट्रªजीवन ही हिन्दू राष्ट्रªजीवन है।
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