हिन्दू राष्ट्रª की अवधारणा  भारतवर्ष या भारत भूमि

‘हिन्दू’ शब्द का अन्य अर्थ भी है। यथा हीन विचारों से दूर रहने वाला व हीन विचारों से समाज की रक्षा करने वाले को हिन्दू कहा जाता रहा है।

Mar 8, 2024 - 15:05
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हिन्दू राष्ट्रª की अवधारणा  भारतवर्ष या भारत भूमि

में जन-जीवन की श्रेष्ठता के इन सुसूत्रों की अनादिकाल से प्रतिष्ठा होने से यह आर्य भूमि, आर्य (श्रेष्ठता पूर्ण) राष्ट्र या हिन्दू राष्ट्र कहलाता रहा है।हिन्दू राष्ट्र व इसका विस्तार   सरलतम शब्दों में ‘हिन्दू राष्ट्र‘ से आशय ‘‘हिन्दुओं या हिन्दू पूर्वजों की सन्तति का देश‘‘। हिन्दू से आशय ‘‘हिन्दू जीवन पद्धति से जीने वाले लोग’’ या ‘‘हिन्दू जीवन पद्धति से जीने वाले लोगो की सन्तति‘‘। भौगोलिक दृष्टि से ‘‘हिमालय से लेकर इन्दु सरोवर‘‘ अर्थात हिन्द महासागर के बीच स्थित भू-भाग हिन्दू राष्ट्र कहलाता है। यह भौगोलिक सीमा-संज्ञक अर्थ, हिन्द महासागर के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में स्थित भू-भाग को अभिव्यक्त करता है। इन अर्थों से हिमालय के दक्षिण का पूर्व दिशा में इण्डोनेशिया से लेकर सम्पूर्ण भारत सहित, पश्चिम में अफगानिस्तान और ईरान तक का सम्पूर्ण क्षेत्र हिन्दू राष्ट्र कहा जाता रहा है जिसका दक्षिण चरम श्रीलंका तक है।

आगम शास्त्रों के अनुसार ‘हिन्दू’ शब्द का अन्य अर्थ भी है। यथा हीन विचारों से दूर रहने वाला व हीन विचारों से समाज की रक्षा करने वाले को हिन्दू कहा जाता रहा है। यथा - हीनश्च दूष्यत्येव हिन्दुरिति उच्येते।  हिमालय के दक्षिण में सुदूर पूर्व पर दृष्टि डालें तो, वस्तुतः पन्द्रहवीं शताब्दी में जिहादी आक्रमणों के पूर्व इण्डोनेशिया से ले कर सम्पूर्ण दक्षिण-पूर्व एशिया, सनातन हिन्दू जीवन पद्धति का ही अनुयायी रहा है। यह पूरा भाग पौराणिक व बौद्ध उपासना मतों के अनुयायियों का ही क्षेत्र रहा है। वहाँ के ‘श्री विजय’, ‘शैलेन्द्र’, ‘मजपहित’ आदि प्राचीन साम्राज्यों का गौरवमय काल, वहाँ की प्राचीन भाषाओं में संस्कृत की प्रधानता और सूर्य, विष्णु, शिव, राम, कृष्ण व दुर्गा आदि हिन्दू देवताओं की उपासना की सुदीर्घ काल से चली आ रही परम्परा और जेहादी आक्रमणों के बाद भी बचे वहाँ के विशाल प्राचीन हिन्दू मन्दिर, आज भी उस क्षेत्र का, हिन्दू पूर्वजों की सन्तानों से आवासित होने के द्योतक हैं।

सुमात्रा से न्यू गिनी तक और आज के इण्डोनशिया से मलेशिया, सिंगापुर, बुनेई, थाइलैण्ड (स्याम देश) पूर्वी टिमोर, फिलीपिन पर्यन्त सम्पूर्ण क्षेत्र में 1293 ईस्वी से मजपहित सम्राज्य रहा है। प्राचीन जबानी भाषा, यहाँ की बोली और आध्यात्मिक पूूजा विधानों में संस्कृत एक मात्र भाषा थी।  इसी प्रकार पश्चिम में ईरान तक यह हिन्दू राष्ट्रª था, जहाँ पारसी लोग ही रहते थे और 633-651 के बीच हुये कई जिहादी आक्रमणों के बाद ही वहाँ की जनता ने इस्लामी मतान्तरण स्वीकार किया था। पारसियों के उपासना ग्रन्थ ‘जिन्दवेस्ता‘ में इन्द्र, वरूण, यम, विष्णु आदि देवताओं की आराधना के विधान हैं। वहाँ के अंतिम सासानी साम्राज्य का विस्तार इराक तक था। इस प्रकार पूर्व में, दक्षिण पूर्व एशिया से, मध्य में बांग्लादेश, अफगानिस्तान व पाकिस्तान सहित सम्पूर्ण भारत और पश्चिम में, ईरान व ईराक तक का क्षेत्र, अरबों के आक्रमण के पूर्व वैदिक पौराणिक बौद्ध व पारसी उपासना मतों के अनुयायों और हिन्दू पूर्वजों से युक्त था एतदर्थ यह विशाल भू-भाग, हिन्दू पूर्वजों की सन्तति से ही आवासित है।

1 कुषाण वंश के बौद्ध मतावलम्बी राजा कनिष्क के शासन काल (127-150 ईस्वी) में भी भारत की सीमाएँ पश्चिम में अफगानिस्तान, मध्य एशिया में उज्बेकिस्तान व ताजिकिस्तान और चीन के आज के सिकियंाग प्रान्त व त्रिविष्टप अर्थात तिब्बत तक रही है। उस साम्राज्य की तीन राजधानियोें में से एक पुरुष्पुर अर्थात पेशावर में थी। वहाँ 1900 वर्ष पूर्व, उसके द्वारा बनाये बौद्ध स्तूप की 286 फीट व्यास और ऊचाँई 689 फीट रही है। इसी प्रकार चैल राज राजेन्द्र का शासन, जिनका 1014 में राज्यारोहण हुआ था, बंगाल से सम्पूर्ण श्रीलंका व ब्रह्मदेश (म्यांमार) सहित सम्पूर्ण दक्षिण पूर्व एशिया पर्यन्त फैला था।  हमारी युगादि गणनाओं के अनुसार महाभारत का रचनाकाल 5000 वर्ष से भी प्राचीन है व महाभारत के युद्ध को भी लगभग 5100 से अधिक वर्ष हुये हैं। महाभारत में ईरान से इण्डोनेशिया पर्यन्त, सम्पूर्ण भारतीय उप-महाद्वीप को ‘भारत‘ सन्दर्भित किया है।

भारत वर्ष में अनेक राजाओं के राज्य थे। लेकिन, तब यहाँ इण्डोनशिया से ईरान पर्यन्त समान आचार-विचार व जीवन मूल्य युक्त समाज ही नहीं, वरन एक साझे संविधान युक्त अर्थात धर्म या एक समान कर्तव्य परायणता वाली शासन व्यवस्था थी। यथा मिथिला राज्य व उसका जनकपुर जो सीता जी का जन्म स्थान है वह आज नेपाल मंे है। त्रिविष्टप (कैलाश मानसरोवर जहाँ है) वह तिब्बत आज चीन के अवैध नियन्त्रण में है। कैलाश पर्वत पर पाण्डवों एवं युधिष्ठिर के जाने का वर्णन महाभारत में है। हिंगलाज सहित कुछ शक्तिपीठ व कई अन्य हिन्दू तीर्थ पाकिस्तान व बांग्लादेश में चले गये हैं। इनके अतिरिक्त कई प्राचीन तीर्थ दक्षिण पूर्व एशिया व अफगानिस्तान में भी हैं। भगवान बुद्ध का जन्म स्थान लुम्बिनी भी आज नेपाल में है। कैकय देश (कैकेयी का जन्म स्थान) आज पाकिस्तान में है।

मद्र देश (माद्री का जन्म स्थान) भी पाकिस्तान मंे चला गया है। इसी प्रकार 2600 वर्ष पूर्व रचित, विश्व के सबसे पुराने व सर्वाधिक व्यवस्थित व्याकरण के रचयिता पाणिनी का जन्म स्थान भी पाकिस्तान में चला गया है। पाकिस्तान ने भी इस संस्कृत वैयाकरण की 2600 वीं जयन्ती को यह कह कर उत्साह पूर्वक मनाया था कि, हमें गर्व है कि विश्व की प्राचीनतम व सबसे वैज्ञानिक व्याकरण का रचयिता यहाँ रहा है। गान्धारी का जन्म स्थान गान्धार आज अफगानिस्तान में है। कम्बोज आज ईरान में है। परम-कम्बोज आज तजाकिस्तान में है। प्रहलाद मंिन्दर और जहाँ होलिका वाला प्रसंग घटा था, वह मुल्तान आज पाकिस्तान में है, जिसका प्राचीन नाम ‘मूल-स्थान‘ रहा है। उत्तर पश्चिम के इन राज्यों के वर्णन वाल्मिकी रामायण में भी है। वाल्मिकी रामायण में सुग्रीव उनके सेनापति को सीता जी की रवोज में कम्बोज व यवन भूमि में उत्तर-पश्चिम में जाने को कहते हैं।

उत्तरवर्ती अनेक सन्दर्भ कम्बुज लोगों के गुजरात व कम्बोडिया तक विस्तार के वर्णन अनेक ग्रन्थों में है। महाभारत में वर्णित त्रिगर्त राज्य की राजधानी मुल्तान, जिसका प्राचीन नाम मूल स्थान था और जो पूर्व में ऋषियों की स्थली रही है, आज पाकिस्तान में है। इस प्रकार 2600 वर्ष के पूर्व के काल में भारत सहित इण्डोनशिया से ईराक तक केवल हिन्दू सनातन मत के अनुयायियों से ही आवासित यह पूरा क्षेत्र रहा है। बौद्धावतार के उपरान्त, जो दस अवतारों में विष्णु का नवाँ व 24 अवतारों में 23 वाँ अवतार माना गया है, उनके इस अवतार के बाद बौद्ध मत का प्रसार तो चीन, जापान, मंगोलिया, दक्ष़्िाण पूर्वी एशिया व श्रीलंका तक हुआ है। इस काल खण्ड में सम्पूर्ण यूरोप में सूर्य के उपासक रहे हैं। यूरोपीय पुरातत्वविद् एडम्स व फिथियन की पुस्तक ‘‘मित्राइज्म इन यूरोप‘‘ के अनसु ार यरू ापे  का र्काइे   परु ातात्विक उत्खनन एसे ा नही ह,ै  जिसम ंे सर्यू   की प्िर तमा नही ं मिली हा।े  विदश्े ाा ंे म ंे पा्र चीन हिन्द ू तीथार्,ंे यरू ापे  म ंे सयू ार्पंे ासना क े पच्र रु  अवशष्े ा आरै  इण्डाने शिया स े अमरीकी महाद्वीप पयनर्् त भी सयू ार्पंे ासना क े पम्र ाणा ंे का संि क्षप्त विवचे न आरै  हिन्द ू सस्ं कृिृ त की पा्र गैि तहासिक पा्र चीनता का विवचे न पस्ु तक क े द्वितीय अध्याय म ंे किया गया ह।ै   

इस विषय का विस्तार यहाँ अधिक नही करते हुये मूल विषय के अवधारणात्मक प्रतिपादन पर ही पुनः केंद्रित करते हुये हिन्दू राष्ट्र की अवधारणात्मक समीक्षा पर ही केन्द्रित रखना उचित है। इस दृष्टि से संक्ष्ेाप में हिन्दू राष्ट्र से निम्न आशय लिया जाना चाहिए।हिन्दू राष्ट्रª का अर्थ: इस शब्द के सात या अधिक आशय भी लिये जा सकते हैं:-(अ)  समूह वाचक अर्थः ‘हिन्दुओं का राष्ट्रª‘ या ‘हिन्दुओं एंव हिन्दू पूर्वजों की सन्तति से आवासित राष्ट्रª‘।(ब)  जीवन शैली आधारित अर्थः ‘‘ऐसा राष्ट्रªª जहाँ हिन्दू जीवन पद्धति प्रचलित है और जहाँ के नागरिक के पूर्वजों में हिन्दू जीवन पद्धति, आचार-विचार और परम्पराएँ प्रचलित रहीं हों, जिसमें समग्र समाज का रहन-सहन, भोजन, भाषा, वेश-भूषा, रीति-रिवाज, सभ्यता, संस्कृति, जीवन मूल्य, आचार-विचार व उपास्य सम्मिलित हैं।‘‘ यथा केरल का मुस्लिम, भारतीय हिन्दू परम्परा की मलयालम भाषा व साहित्य एवं बंगाल व बांग्लादेश का मुस्लिम बांग्ला भाषा बोलता है। ये दोनों ही भाषाएं संस्कृत से निकली हैं। इस प्रकार भारत सब प्रकार से एक हिन्दू राष्ट्रªª है। इनकी भाषा ही नही भोजन, भैषज्य (औषधि चिकित्सक पद्धतियाँ) पारिवारिक परम्पराएँ, सामाजिक मूल्य, न्याय पद्धति भूषा व वेष भी तद्नुरूप व समरूप ही है। नृवंश शास्त्र के अनुसार देश के अधिकांश मुस्लिमों की शरीर रचना वहाँ के हिन्दू समाज से भिन्न नहीं है।

आज के भाारत में जन्म से मृत्यु पर्यन्त सभी संस्कार, साहित्य, गीत - संगीत, नृत्य कला व जीवनचर्या, पारिवारिक जीवन आदि लगभग समान हैं। उपासना व ईष्ट या आराध्य के विषय में हिन्दू जीवन में अपूर्व स्वतन्त्रता है। एक ही परिवार के सदस्यों के भी राम, कृष्ण, शिव, हनुमान, दुर्गा आदि मंे से आराध्य हो सकते है। हिन्दू संस्कृति में धर्म अर्थात सामाजिक नियमों, मर्यादाओं व नैतिक आचार-विचार का पालन आवश्यक है।(स)  भौगोलिक दृष्टि से हिन्दू राष्ट्रªª की सीमाएँ: भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में हिन्द महासागर या इन्दु सागर पर्यन्त यह हिन्दुस्तान है।  स्वर्गीय डा. राधाकृष्णन् ने 1965 में गणतन्त्र दिवस के अवसर पर राष्ट्रª के नाम प्रसारित अपने भाषण में कुलार्णव तंत्र से हिन्दुस्तान नाम के सम्बन्ध में यह श्लोक कहा था, जो निम्नोक्त है-      हिमालयं समारभ्य यावदिन्दू सरोवरम्।      हिन्दुस्थानमिति ख्यातमान्द्यन्ताक्षरयोगतः।। (कुलार्णव तंत्र)      हिमालयात समारम्य योवत् इन्दु सरोवरम्।      तं देव निर्मितं देषं हिन्दुस्थान प्रचक्षते।। (बृहस्पति आगम)  बृहस्पति आगम के इस श्लोक का भी वही अर्थ है जो कि हिमालय से हिन्दमहासागर पर्यन्त यह संपूर्ण भू-भाग हिन्दुस्थान है।


इसके अनुसार हिमालय और इन्दु सरोवर (कन्याकुमारी) नामों के मेल से हिन्दुस्तान नाम बना है।  उत्तर में हिमालय से दक्षिण में हिन्द महासागर के बीच का क्षेत्र जो पूर्व में इण्डोनेशिया से पश्चिम में ईरान पर्यन्त, फैला हुआ है उस क्षेत्र में भारत की इन पौराणिक सीमाओं के मध्य हमारी साझी सांस्कृतिक विरासत के प्रमाण आज भी प्रचुरता से विद्यमान हैं। अतएव सुदीर्घकाल तक, दक्षिण-पूर्व एशिया से ईरान पर्यन्त यह देश एक भू-सांस्कृतिक इकाई के रूप में हिन्दुओं से आवासित भारत राष्ट्रª के रूप में रहा है। इस प्राचीन हिन्दू राष्ट्रª के प्रमाण रूप में सुदूर पूर्व में मलेशिया व इण्डोनेशिया में स्थित प्राचीन हिन्दू मन्दिरों से लेकर पाकिस्तान व अफगानिस्तान के हिन्दू, मन्दिर और ईरान में पारसी ग्रन्थ जिन्दवेस्ता आदि के हिन्दू देवी देवताओं के उल्लेख प्रचुरता में हैं।  विष्णु पुराण के अनुसार श्रीलंका सहित समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण का सारा भू-भाग जिसमें भारत की सन्तति निवास करती है, वह देश भारतवर्ष है -    उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। 

 वर्ष तत् भारतं नाम भारती यत्र संततिः।। (विष्णु पुराण)  लगभग उसी समय में लिखे गये वायुपुराण में, भारत देश के विस्तार तथा लम्बाई-चैड़ाई का भी स्पष्ट उल्लेख है। इसके अनुसार गंगा के स्त्रोत से कन्याकुमारी तक इस देश की लम्बाई एक हजार योजन है -     योजनानां सहस्त्रं द्वीपोऽयं दक्षिणोत्तरम्।      तायतो हि कुमारिक्याद् गंगा प्रभवाच्च यः।।(द)  भू-सांस्कृतिक ईकाई के रूप में: यदि हिन्दू संस्कृति के प्राचीनकाल के प्रसार क्षेत्र की दृष्टि से विचार करें तो हिन्द महासागर के उत्तर में व हिमालय के दक्षिण में स्थित सम्पूर्ण भू-भाग में हिन्दू संस्कृति प्रभावी रही है जो पूर्व दिशा में इण्डोनशिया से लेकर पश्चिम में ईरान व इराक तक फैले मेसापोटामिया तक रहा है। इस सम्पूर्ण क्षेत्र में, 1400 वर्ष पूर्व इस्लाम के उदय के पूर्व हिन्दू जीवन पद्धति का अनुसरण करने वाले जन समूह ही रहते रहे हैं। आज भी इन सभी क्षेत्रो में प्राचीन हिन्दू मन्दिरों के अवशेष व शिलालेख प्रचुरता में फैले हुये हैं।

यदि, ईरान व ईराक पर अरबों के आक्रमण पिछली सहस्त्राब्दी में ही हो गये थे, उन्हंे एक बार इस दृष्टि से भी छोड़ दंे कि उस क्षेत्र में सांस्कतिक व पान्थिक मतान्तरण एक हजार वर्ष पूर्व हो चूका था और वहाँ अब हिन्दू तीर्थों व सांस्कृतिक अवशेषों का पूर्व स्वरूप उस प्रचुरता व सघनता में उपलब्ध नहीं है, तब भी इण्डोनशिया से अफगानिस्तान तक आज भी अनगिनत हिन्दू तीर्थ भारत के बाहर के देशों यथा इण्डोनशिया, कोरिया, थाईलैण्ड, मलेशिया, म्यांमार, बांग्लादेश, नेपाल, तिब्बत, चीन, पाकिस्तान व अफगानिस्तान में अपने मूल स्वरूप में हैं। इनका संक्षिप्त विवेचन इस पुस्तक के परिशिष्ट में किया गया है। अफगानिस्तान में विश्व की विशालतम 2300 वर्ष प्राचीन भगवान बुद्ध प्रतिमाओं को तालिबान ने गैर इस्लामिक कह कर डायनामाइट से तोड़ दिया था। पुस्तक के अन्त में परिशिष्ट दो में इसका विवरण देखें।(य)  समान ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: सम्पूर्ण भारतवर्ष के लोगों का इतिहास साझा है। इस क्षेत्र में ईसाई व मुस्लिम मतान्तरण आरम्भ होने के पूर्व का इतिहास, मतान्तरण के विरुद्ध एक समान संघर्ष, संघर्ष के काल के सुख- दुःख व आक्रमणों के प्रारम्भिक प्रतिकार की अनुभूतियाँ भी साझी हैं। 

इन क्षेत्रों में ईसाई व ईस्लामी मतान्तरण का उस काल में यहाँ के सभी लोगों ने एक-एक कर सब ने आगे - पीछे प्रतिकार किया है। सबके पूर्वजों का पंथ सनातन हिन्दू जीवन पद्धति पर ही आधारित रहा है। ईसाई मतान्तरण भी, गोआ आदि कुछ क्षेत्रों में तो जेहाद संदृश प्रयोग बल पूर्वक भी हुआ है और अन्य कुछ क्षेत्रों में प्रलोभन या कूूट रचित सेवा कार्याें की आड़ में भी किया गया है। (र)  गुणवाचक अर्थ: गुणवाचकता के आधार पर हिन्दू कौन व हिन्दू जीवन पद्धति क्या है। इसका विवेचन भी आवश्यक है। गुण चिन्तन के आधार पर ‘‘हीन विचारों से द्वेष रखने व ऐसे हीन विचारों से मानवता की रक्षा में सन्नद्ध रहने वाला हिन्दू कहलाता है।’’ यथा हीनश्च दूष्यत्यैव हिन्दुरितिउच्येते। स्वयं हीन विचारों से दूर रहना व मानवता के विरूद्ध हीनता के प्रदर्शन व अन्याय का डटकर विरोध भी करना और ऐसी दुष्टताओ का घ्वंस।  इस प्रकार श्रेष्ठ विचारों से युक्त एवं विश्व को श्रेष्ठ बनाने के लिये सतत प्रयत्नशील यथा कृण्वन्तो विश्वमार्यम अर्थात विश्व को श्रेष्ठ बनाने के लिये ध्येयनिष्ठ सभी लोग हिन्दू हैं।

हीन विचारों से विश्व, समाज व मानवता की रक्षार्थ नीचवृत्ति, मानवता के प्रति द्वेष, हिंसा, क्रूरता, वैर या, हीनता का प्रदर्शन करने वालों को निरूद्ध करना व उन्हें दण्डित करना भी समाहित है। यह सब करना भी हिन्दू का कर्Ÿाव्य है। इस प्रकार प्राणी मात्र के प्रति संवेदना रखना व प्राणियों की दृष्टि से रक्षा व तदर्थ पराक्रम रखना भी हिन्दुत्व है। यह श्रेष्ठता उपनिषद आदि हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अनेक बोध वाक्यों में से निम्न 2 संस्कृत के सुभाषित श्लोकों में ही परिलक्षित हो जाती है: (क)  सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः।  सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दःुख भाग्भवेत्।।(ख)  पर द्रव्येषु लोष्ठवत, पर दारेषु मातृवत,  आत्मवत सर्वभूतेषु एषः सनातन धर्मः।(ल)  उपासना पंथों से निरपेक्ष कत्र्तव्य-प्रधानता ही हिन्दू धर्म: किसी एक प्रकार के उपासना पंथ के प्रति आग्रह रहित रहते हुये, समाज जीवन की मर्यादाओं का अनुसरण ही सनातन हिन्दू धर्म है। इस प्रकार हिन्दुत्व के विचार में धर्म वस्तुतः विश्व मानवता एवं विश्व बन्धुत्व से सम्बन्धित 


कर्तव्यों और आचार-विचार का ही समुच्चय है। वेद, पुराणों, नीति ग्रन्थों, उपनिषदों, गृह्यसूत्रों व अन्य सभी हिन्दू धर्म शास्त्रों में प्राणी मात्र के कल्याण के आचार-विचार को ही धर्म कहा है। जैन मत के आचारांग सूत्र व तत्वार्थ सूत्र जैसे ग्रन्थों या बौद्ध मत के ग्रन्थ त्रिपिटक या सिख परम्परा के गुरु ग्रन्थ सहिब सभी भारतीय उपासना पंथों की समान उदाŸा शिक्षायें हैं यथा मनुस्मृति में मनु ने धर्म के दस लक्षण बताये हैं: धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।धीर्विद्या सत्यमका्रेधो, दशकं धर्मलक्षणम।।  धृति (धैर्य), क्षमा (दूसरों के द्वारा अनजाने में बिना किसी दुर्भावना के किये गये अपराध को क्षमा कर देना या क्षमाशील होना), दम (अपनी वासनाओं पर नियन्त्रण करना), अस्तेय (चोरी न करना), शौच (अन्तरड्ग और बाह्य शुचिता), (इन्द्रिय निग्रहः इन्द्रियों को वश में रखना), धी (बुद्धिमता का प्रयोग), विद्या (अधिक से अधिक ज्ञान की प्राप्ति), सत्य (मन वचन कर्म से सत्य का अनुसरण करना) और अक्रोध (अकारण क्रोध न करना); ये दस धर्म लक्षण हैं।  श्री मद् भागवत पुराण में धर्म के ऐसे ही 30 लक्षणों का विवेचन किया गया है। श्री रामचरित मानस में परहित को श्रेष्ठ धर्म व दूसरों को पीड़ा या कष्ट देना घोर अधर्म कहा गया है। दूूसरों को पीड़ा देने वाले को दण्डित करना भी धर्म ही है।  

सनातन हिन्दू मत के अनुसार जो अपने अनुकूल न हो वैसा व्यवहार दूसरों के साथ नही करना चाहिये - यह धर्म की कसौटी है।श्रुयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैव अनुवत्र्यताम्।आत्मनः प्रतिकूलानि, परेशां न समाचरेत्।।  अर्थ धर्म का सर्वस्व क्या है, सुनो और सुनकर उस पर चलो ! अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण हमें दूसरो के साथ नही करना चाहिये।  हिन्दू धर्म, संस्कृत वांग्मय के अनुसार सनातन धर्म मत विश्व के सभी पंथो में सबसे पुराना व शाश्वत धर्म मत है। यह वेदों, पुराणों, नीति, ग्रन्थों पर आधारित धर्म है, जो अपने अन्दर विविध उपासना पद्धतियों, मत - सम्प्रदायांे और दर्शन को सम्मिलित कर लेता है। इसमें विविध देवी - देवताओं की पूजा अनुमति है। मूलतः यह ऐकेश्वरवादी धर्म है जिसमें कहा गया है कि ‘एको सत् बहुधा वदन्ति सदविप्राः अर्थात ईश्वर एक है, जिसे विद्वान लोग अलग - अलग प्रकार से समझाते आये हैं। इस धर्म मत को सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हंै। इंडोनेशिया में इस धर्म का औपचारिक नाम ‘‘हिन्दु आगम‘‘ रहा है। हिन्दू केवल एक धर्म या संप्रदाय ही नही है अपितु जीवन जीने की एक अत्यन्त लोचशील या  समन्वयवादी पद्धति है इसका एक लक्षण हिंसा का निषेध भी है ‘‘ंिहंसायाम दूयते या सा हिन्दू‘‘ अर्थात जो अपने मन वचन कर्म से हिंसा से दूर रहे और समाज को हिंसाधारियों से बचायें वह हिन्दू है। जो कर्म अपने हितों साधने के लिए दूसरों को कष्ट दे वह भी हिंसा कही गयी है। भारत में प्रचलित सभी पंथों यथा सिख पंथ, जैन पंथ, बौद्ध पंथ, कबीरपंथ, दादू पंथ, शेैव मत, शाक्त मत, वैष्णव मत आदि सभी इन समान सिद्धान्तों पर आधारित हैं।   इस प्रकार जैन या श्रमण परम्परा के ग्रन्थ, तत्वार्थ सूत्र में भी धर्म के 10 धर्मों या कर्तव्र्याें का ही वर्णन है, जो निम्न हैं:- उत्तम क्षमा   उत्तम मार्दव  उत्तम आर्जव  उत्तम शौचउत्तम सत्य  उत्तम संयम  उत्तम तप  उत्तम त्यागउत्तम आकिंचन्य उत्तम ब्रह्मचर्यबौद्ध मत में:  इसी प्रकार बौद्ध मत में अष्टांग मार्ग के अंतर्गत सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाक, सम्यक कर्म, सम्यक जीविका, सम्यक प्रयास, सम्यक स्मृति, व सम्यक समाधि - ये अष्टांग मार्ग बताए गए हैं।

आज चीन, जापान, वियतनाम, थाईलैण्ड, म्यांमार, भूूटान, श्रीलंका, कम्बोडिया, मंगोलिया, तिब्बत, लाओस, हांगकांग, ताईवान मकाउ, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया व उत्तर कोरिया सहित 18 देशों में बौद्ध मत प्रमुख पंथ है। भारत, नेपाल, अमेरिका, आॅस्टेªलिया, इंडोनेशिया, रूस, बु्रनेई, मलेशिया आदि देशों में भी लाखों-करोड़ों बौद्ध मतानुयायी हैं। ईसा पूर्व छठी शताब्दी मंे जन्में भगवान गौतम बुद्ध ने भारत से प्रारम्भ कर विश्व के कई भागों में बौद्ध मत का प्रसार किया व उनके बाद बौद्ध भिक्षुओं ने इसका व्यापक प्रसार किया। भगवान विष्णु के एक अवतार के रूप में सनातन हिन्दू व बौद्ध मत में बौद्ध मत के प्रवर्तक के रूप में भगवान बुद्ध को पूजा जाता है।धर्म का मूल ऋत  सनातन हिन्दू धर्म में धर्म के मूल ‘ऋत’ को सबका आधार माना गया है।

प्राचीन वैदिक धर्म में सही सनातन प्राकृतिक व्यवस्था और संतुलन के सिद्धान्त को ‘ऋत’ कहा है। अर्थात वह तत्व जो पूरे संसार और ब्रह्मण्ड को धार्मिक स्थिति में रखे या लाए। वैदिक संस्कृत में इसका अर्थ ‘ठीक से जुड़ा हुआ, सत्य, सही या सुव्यवस्थित‘ होता है। यह हिन्दू धर्म का एक मूल सिद्धान्त है। ‘ऋत ऋग्वेद के सबसे अहम धार्मिक सिद्धान्तों में से एक है‘ और ‘हिन्दू धर्म का आधार इसी सिद्धान्त पर आधारित है‘। इसका विवेचन आधुनिक हिन्दू समाज में पहले की तुलना में चाहें कम होता है लेकिन इसका धर्म और कर्म के सिद्धान्तों से गहरा व अटूट सम्बन्ध है।  वैदिक साहित्य में ‘ऋत‘ शब्द का प्रयोग सृष्टि के सर्वमान्य नियम व समाज जीवन में सत्याचरण के लिये हुआ है। संसार के सभी पदार्थ परिवर्तनशील है। तब भी यह परिवर्तन भी नियम आधारित अपरिवर्तनीय नियमों के कारण ही सूर्य-चन्द्र भी पूर्व निर्धारित रीति से गतिशील हंै। संसार में जो कुछ भी हेै वह सब ऋत के नियम से बधाँ है। ऋत को सबका मूल कारण माना गया है। ऋत शब्द का प्रयोग भौतिक नियमों के साथ-साथ आचरण सम्बन्धी 4 नियमों के लिये भी किया गया है।

उषा और सूर्य को ऋत का पालन करने वाला कहा गया है। इस ऋत के नियम का उल्लंघन करना असम्भव है। उसी प्रकार मानव मात्र को भी ऋत के नियम का पालन करना आवश्यक है। देवताओं से भी यह प्रार्थना की जाती है कि वे सब लोगों को ऋत के मार्ग पर ले चलें तथा अनृत के मार्ग से दूर रखें। ऋत को वेद में सत्य से पृथक माना गया है। ऋत वस्तुतः ‘सत्य का नियम‘ है। अतः ऋत के माध्यम से सत्य की प्राप्ति स्वीकृत की गई है। यह ऋत तत्त्व वेदों की दार्शनिक भावना का मूल रूप है। ऋत का स्थान धर्म की ही तरह समाज जीवन की परम आवश्यकता है पारसी धर्म और ऋतः पारसी धर्म में भी इसी से मिलता-जुलता ‘अर्ता‘ का सिद्धांत मिलता है। सिख मत में: पूज्य गुरू ग्रन्थ साहिब में तो देश के सभी सन्तों की वाणी व सनातन ऐसी ही कत्र्तव्य रूपी, भक्ति के संदेश व देवी-देवताओं के प्रचुर वर्णन व नामोल्लेख आदि हैं।  

अतएवं सम्पूर्ण एशिया महाद्वीप में हिन्दुत्व के इन्हीं सिद्धान्तों का भिन्न-भिन्न प्रकार से विवेचन व इनका ही साक्षात प्रसार है। विविधताओं से युक्त एकात्म सांस्कृतिक राष्ट्रª: विविध उपासना पंथों से युक्त एक जन, एक समाज, एक संस्कृति व समान आचार-विचार युक्त राष्ट्रª हैै। हिन्दू संस्कृति उपासना मत के आघार पर मानवता को खण्ड-खण्ड बाँटने पर विश्वास नहीं करती है। हमारी जीवन पद्धति साझी है।   हम सभी भारतवासी एक जन, एक देश और एक संस्कृति-हिन्दू संस्कृति के संवाहक हैं, व इसी के आधार पर भारत एक हिन्दू राष्ट्रª है। ज्ञात इतिहास के प्रारंभ से ही यहां एक समुन्नत संस्कृति और सभ्य जीवन था। इस सन्दर्भ से हमारा राष्ट्रª अनादिकाल से है।   भारत की राष्ट्रªीयता, अपनी मातृभूमि के प्रति श्रद्धा, सुख-दुख की एक सी स्मृतियां, एक ही पूर्वज श्रृंखला और भविष्य के एक से सपनों में प्रकट होती है। यही है: भू सांस्कृतिक राष्ट्रªवाद।  हमने इस बात को शुरू से ही समझा, कि एक ही सत्य को विद्वान अलग-अलग ढंग से समझते और कहते हैं। वेदवाक्य ‘एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति’ इस को अभिव्यक्त करता है। हमारे इस विश्वास के कारण, हमने आस्था और विचार के स्वातंत्र्य को स्वाभविक रूप से जीया है। 

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