निर्यात होने वाले सभी मसालों की जांची जाएगी गुणवत्ता

Apr 26, 2024 - 08:29
Apr 26, 2024 - 09:48
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निर्यात होने वाले सभी मसालों की जांची जाएगी गुणवत्ता
निर्यात के लिए मानक गुणवत्ता जरूरी

निर्यात होने वाले सभी मसालों की जांची जाएगी गुणवत्ता

  • मसाला बोर्ड ने इस संबंध में जारी किया निर्देश
  • जांच के बाद ही मिलेगी निर्यात की इजाजत 

सिंगापुर और हांगकांग में निर्यात किए गए कुछ मसालों में कथित तौर पर स्वीकार्य सीमा से अधिक कीटनाशक एथिलीन आक्साइड पाए जाने के बाद अब अन्य देशों में निर्यात होने वाले मसालों की गुणवत्ता भी जांची जाएगी। मसाला बोर्ड ने इस संबंध में निर्देश जारी किया है। मसाला बोर्ड की प्रयोगशालाओं में मसालों की गुणवत्ता जांच के बाद ही निर्यात की इजाजत होगी। गुणवत्ता नियम का पालन नहीं करने वाले निर्यातकों के मसाला निर्यात पर प्रतिबंध लगाया जाएगा।


सिंगापुर और हांगकांग के खाद्य सुरक्षा नियामकों ने भारतीय ब्रांडों एमडीएच और एवरेस्ट के कुछ मसालों को लेकर गुणवत्ता संबंधी चिंताएं जताई हैं। इन मसालों में कथित तौर पर स्वीकार्य सीमा से अधिक कीटनाशक 'एथिलीन आक्साइड' होने के कारण प्रतिबंध लगाया गया है। दोनों देशों ने इन ब्रांडों के मसालों के आयात को बंद कर दिया है।

एथिलीन आक्साइड से कैंसर बीमारी होने का खतरा होता है।
बोर्ड की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक मसालों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। बोर्ड उन निर्यातकों से भी संपर्क कर रहा है जिनके मसालों पर सिंगापुर व हांगकांग ने प्रतिबंध लगाया है।

नेस्ले के सेरेलेक के नमूने एकत्र कर रहा एफएसएसएआइ 

प्रेट्र के अनुसार खाद्य सुरक्षा नियामक एफएसएसएआइ ने गुरुवार को कहा कि वह पूरे देश में नेस्ले के शिशु उत्पाद सेरेलेक के नमूने एकत्र कर रहा है। एफएसएसएआइ के सीईओ जी. कमला वर्धन राव ने एसोचैम के कार्यक्रम से इतर कहा, हम देशभर से (नेस्ले के सेरेलेक) नमूने एकत्र कर रहे हैं। प्रक्रिया को पूरा करने में 15-20 दिन लगेंगे।


इससे पहले केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआइ) को नेस्ले के भारत में बेचे जाने वाले सेरेलेक के अवयवों (कंपोजिशन) की जांच का आदेश  दिया था। स्विटजरलैंड के गैरसरकारी संगठन पब्लिक आइ और इंटरनेशनल बेबी फूड एक्शन नेटवर्क की पड़ताल के मुताबिक, नेस्ले के भारत, अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों समेत कम विकसित दक्षिण एशियाई देशों में बेचे जाने वाले शिशु उत्पादों में यूरोपीय देशों की तुलना में अधिक चीनी होती है।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी इस रिपोर्ट पर चिता जताई है। नेस्ले इंडिया ने कहा था कि उसने अनुपालन के मुद्दे पर कभी समझौता नहीं किया है और उसने पिछले पांच वर्षों में भारत में विभिन्न शिशु खाद्य उत्पादों में अतिरिक्त चीनी को 30 प्रतिशत तक घटाया है।

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