लुप्तप्राय वस्त्र कलाओं के संरक्षण में जुटे फैशन डिजाइनिंग के छात्र,
लुप्तप्राय वस्त्र कलाओं के संरक्षण में जुटे फैशन डिजाइनिंग के छात्र
केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय ने देश की लुप्तप्राय वस्त्र कलाओं को संरक्षित करने के लिए एक अहम कदम उठाया है। इसके तहत देश के सभी 18 राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थानों (NIFT) के छात्रों को प्रोजेक्ट दिए जा रहे हैं, जिनमें वे इन प्राचीन कलाओं पर आधारित परिधान तैयार कर रहे हैं। 2019 से शुरू किए गए डीसीएच (डेवलपमेंट कमिश्नर हैंडीक्राफ्ट्स, हैंडलूम) प्रोजेक्ट के अंतर्गत, प्रत्येक वर्ष 10 से 15 छात्रों का चयन किया जाता है। इन छात्रों ने गांव-गांव जाकर, इन कलाओं को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है।
एक उदाहरण के रूप में अवध जामदानी का उल्लेख किया जा सकता है। यह कला सैकड़ों वर्षों पहले ढाका से शुरू हुई थी और अब लगभग विलुप्त हो चुकी है। इसके अंतिम कलाकार अली अहमद थे। निफ्ट की छात्रा श्रुतिलता भास्कर ने इसके संरक्षण के लिए अली अहमद के बेटे और बनारस के बुनकरों से जानकारी लेकर परिधान तैयार किए हैं।
फर्रुखाबाद की जरी-जरदौजी भी लुप्तप्राय हो रही है। निपट की छात्रा साबी निकोटिया ने इस कला पर काम करते हुए पाया कि कलाकारों को उचित मेहनताना नहीं मिलता, जिससे उन्होंने इस कला से मुंह मोड़ लिया है। साबी ने इसके इतिहास और वर्तमान पर शोध कर तीन कलेक्शन तैयार किए हैं।
महू की स्मकिंग एम्ब्रायडरी, जिसे ब्रिटिश और फ्रेंच ननों ने 19वीं सदी में सिखाया था, भी तेजी से विलुप्त हो रही है। निफ्ट की छात्रा आशी ने तीन महीने की रिसर्च के बाद पारंपरिक रूप से इस कला को जीवित रखने वाले परिवारों से मिलकर दो कलेक्शन तैयार किए हैं।
इन प्रोजेक्ट्स के तहत तैयार किए गए परिधान और दस्तावेज कपड़ा मंत्रालय में संग्रहित किए जाएंगे और समय-समय पर कार्यशालाओं एवं प्रदर्शनी में प्रदर्शित किए जाएंगे। इसका उद्देश्य नई पीढ़ी के कलाकारों को इन विधाओं से अवगत कराना और उन्हें संरक्षित करना है। इस प्रयास से न केवल इन प्राचीन कलाओं को पुनर्जीवित किया जाएगा, बल्कि इससे जुड़े कलाकारों को भी एक नया जीवन मिलेगा।
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