आपातकाल: कांग्रेस की कलंक कथा
जून 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनावी भ्रष्टाचार का दोषी पाया और उनके चुनाव को अवैध घोषित कर दिया। इसके परिणामस्वरूप सत्ता खोने के डर से इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी।
आपातकाल: कांग्रेस की कलंक कथा
आपातकाल भारतीय लोकतंत्र का एक ऐसा काला अध्याय है जिसे भुलाया नहीं जा सकता। 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक चलने वाले इस 21 महीने के कालखंड ने भारतीय राजनीति और समाज पर गहरा प्रभाव डाला। यह लेख इसी कालखंड की घटनाओं और परिणामों पर प्रकाश डालता है।
आपातकाल की घोषणा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने की थी। इसका औपचारिक कारण आंतरिक अशांति और राष्ट्रीय सुरक्षा बताया गया था, लेकिन इसके पीछे के राजनीतिक कारण और भी गहरे थे। जून 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनावी भ्रष्टाचार का दोषी पाया और उनके चुनाव को अवैध घोषित कर दिया। इसके परिणामस्वरूप सत्ता खोने के डर से इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी।
आपातकाल के दौरान सबसे विवादास्पद और क्रूर कदमों में से एक था 83 लाख लोगों की जबरदस्ती नसबंदी। जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर इस कठोर अभियान ने लाखों लोगों की जिंदगी तबाह कर दी। जबरदस्ती की गई नसबंदी ने कई परिवारों को बर्बाद कर दिया और सरकार के खिलाफ गुस्सा और बढ़ गया।
इसी दौरान, एक लाख से अधिक लोगों को बिना किसी मुकदमे के जेल में डाल दिया गया। राजनीतिक विरोधियों को चुप कराने के लिए ये कदम उठाए गए थे। भारतीय जनता पार्टी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण और राजनारायण जैसे प्रमुख नेताओं को भी गिरफ्तार कर लिया गया था।
आरएसएस और जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों पर बैन लगा दिया गया। ये संगठन इंदिरा गांधी की नीतियों के खिलाफ खुलकर विरोध कर रहे थे। इनके अलावा, मीडिया पर भी कड़ा नियंत्रण रखा गया। मीडिया कार्यालयों की बिजली काट दी गई ताकि अखबार न छप सके। पत्रकारों को जेल में डाल दिया गया और समाचार पत्रों पर सेंसरशिप लगा दी गई। इस प्रकार, स्वतंत्र अभिव्यक्ति और सूचना का अधिकार पूरी तरह से कुचल दिया गया।
इन सभी कठोर कदमों ने देश में भय और असंतोष का माहौल पैदा कर दिया। लोकतंत्र की हत्या का यह दौर भारतीय जनता के लिए एक कठोर परीक्षा साबित हुआ। स्वतंत्रता सेनानियों ने जिस स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए संघर्ष किया था, उसे इंदिरा गांधी की सत्ता की भूख ने मटियामेट कर दिया।
आपातकाल का अंत 1977 में हुआ जब इंदिरा गांधी ने लोकसभा चुनाव कराने की घोषणा की। जनता ने अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। यह चुनाव न केवल इंदिरा गांधी के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक सबक था कि लोकतंत्र को कुचलने का प्रयास कभी सफल नहीं हो सकता।
आपातकाल की घटना ने भारतीय राजनीति को एक नया मोड़ दिया। यह समय हमें याद दिलाता है कि लोकतंत्र और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सतर्क रहना आवश्यक है। लोकतंत्र में सरकार जनता के लिए और जनता द्वारा होती है, और इसे कोई भी व्यक्तिगत स्वार्थ या शक्ति की लालसा नहीं हिला सकती। आपातकाल भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का एक ऐसा अध्याय है जिसे हमेशा याद रखा जाएगा ताकि भविष्य में ऐसी भूल न दोहराई जाए।
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