हिंदू आस्था की कीमत तिरुपति प्रसाद से लेकर लव जेहाद तक
हिंदू त्योहारों के दौरान पथराव की घटनाएं एक सामान्य सी बात बन गई हैं। कुछ लोग खुलेआम कहते हैं कि "सनातन एड्स है" और इसके समूल नाश की बात करते हैं। विपक्ष के नेता संसद में खड़े होकर हिंदुओं को हिंसक बताने का साहस रखते हैं।
हिंदू आस्था की कीमत: तिरुपति प्रसाद से लेकर लव जेहाद तक
हाल ही में तिरुपति मंदिर के प्रसाद पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश, जो कि केवल सही नाम बताने के लिए था, ने एक बार फिर हिंदू आस्था के प्रति असम्मान और उपेक्षा का मुद्दा उठाया है। यह घटना अकेली नहीं है; ऐसे कई मामले हैं जहां हिंदू धार्मिक भावनाओं को नजरअंदाज किया गया है।
विभिन्न राज्यों में "शिव शंकर भोजनालय" जैसे छद्म नामों से चल रहे ढाबों में धर्म का मजाक बनाया जा रहा है। यह एक संकेत है कि हिंदू आस्था की कीमत समाज में घटती जा रही है। हमारे मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण ने इस स्थिति को और भी बिगाड़ दिया है।
हिंदू त्योहारों के दौरान पथराव की घटनाएं एक सामान्य सी बात बन गई हैं। कुछ लोग खुलेआम कहते हैं कि "सनातन एड्स है" और इसके समूल नाश की बात करते हैं। विपक्ष के नेता संसद में खड़े होकर हिंदुओं को हिंसक बताने का साहस रखते हैं।
हिंदू विरोधी नारे लगाना, जैसे "सर तन से जुदा," अब सामान्य हो गया है। ऐसे अपराधियों को अदालत से बेल मिल जाती है, जबकि हिंदू समुदाय के सदस्यों को अपनी रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करना पड़ता है।
लव जेहाद के मुद्दे पर हिंदू लड़कियों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों की भी अनदेखी की जा रही है। इसके विपरीत, कुछ लेखक यह साबित करने में लगे हैं कि लव जेहाद नाम की कोई चीज नहीं है।
देश के हर हिस्से में जनसांख्यिकी बदलने के साथ, घुसपैठियों के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए देश के नामचीन वकील आगे आ रहे हैं।
यह सब कुछ तब हो रहा है जब हिंदू युवा आईफोन 16 की लाइन में खड़े हैं या बांग्लादेश के साथ क्रिकेट मैच का आनंद ले रहे हैं। क्या यह वक्त नहीं है कि हिंदू अपनी आस्था की रक्षा के लिए जागरूक हों और एकजुट होकर इन चुनौतियों का सामना करें?
इस सब ने यह सवाल उठाया है कि क्या हिंदू आस्था और संस्कृति की कोई कीमत है? क्या हमें अपने धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा के लिए कदम उठाने की आवश्यकता नहीं है?
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