आर्टिकल 370 मूवी
फ़िल्म बहुत अच्छे तरीके से बनी है जो आपको बांधकर रखती है। यामी का रोल एक गुमनाम नायिका (Unsung hero) के रूप में बहुत अच्छा है।
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#आर्टिकल_370
फ़िल्म में जो एक नोट करने वाली बात है कि जब भी आप गवर्नमेंट ऑफिस इत्यादि देखेंगे तो दीवार पर से आपको गांधीजी - नेहरू जी का चित्र पूर्णतः लोप ही मिलेगी। वहां उसकी जगह सुभाष बोस और सरदार पटेल का चित्र लगा मिलेगा।
वैसे इस बात में कोई शक नहीं कि वास्तविकता के बहुत करीब यह फिल्म काफी अच्छी बनी है और सबसे अच्छी बात यह है कि आम हिंदी फिल्मों की तरह कोई भी चालु या फालतू के गीत / प्रेम प्रसंग नहीं ठूंसे गए हैं।
ये शायद दूसरी ऐसी फिल्म RRR के बाद है जिसने थोपे "नायकों" को कोई तवज्जो नही दी है। RRR के लेखक ने तो साफ कहा था कि मेरे लिए ये मेरे नायक हैं ही नहीं तो मैं क्यों इनका बखान करूँ। शायद यही सोच आर्टिकल 370 के लेखक-डायरेक्टर की भी रही होगी।
फ़िल्म में कुछ लिबर्टी लेने के अलावा बाकी सब कहानी पॉइंट टू पॉइंट है। बुरहान से शुरू हुई कहानी, किस तरह आर्टिकल 370 को समाप्त किया गया के बीच लिखी गयी है। फ़िल्म में हर उस पॉइंट को दर्शाया गया है जहां कैसे कश्मीर में मजहब एक धंधे के रूप में चलाया जाता रहा है और कैसे इसमें नेताओं की मिलीभगत, अलगाववादियों के साथ हमेशा से रही है।
फ़िल्म आपको कानूनी पहलू को भी आसान भाषा में समझाती है कि किस तरह भारत के साथ धोखा किया गया था जिस वजह से ये लोग कहते थे कि आर्टिकल 370 को आप छू भी नही सकते। फ़िल्म आपको वो सब भी बताती है कि आर्टिकल 370 हटाने से पहले क्या क्या तैयारी की गई थी ताकि एक पत्थर भी कश्मीर में इसे हटाने के बाद न चल सके।
आप फ़िल्म देखेंगे तो आप समझेंगे कि आर्टिकल 370 हटाना कोई चुटकी बजाने का काम कभी नही था कि इसको तो जब चाहे हटा दिया जा सकता था बल्कि इसके पीछे वर्षों से कैसे पाकिस्तान से लेकर भारत की राजनीतिक पार्टियां ही इसे और शसक्त करने में लगी हुई थी ताकि पहले से भारत के दो मजहबी टुकड़े होने के बाद एक तीसरा मजहबी टुकड़ा भी अपने रिश्तेदारों को देकर रखा जा सके।
फ़िल्म बहुत अच्छे तरीके से बनी है जो आपको बांधकर रखती है। यामी का रोल एक गुमनाम नायिका (Unsung hero) के रूप में बहुत अच्छा है। अजित डोभाल जी की जगह यहां पर प्रिया मणि का रोल है जो एक जॉइंट सेक्रेटरी पद के अधिकारी का रोल करती दिखती हैं, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ। बाकी सबका काम भी ठीक है।
फालतू का हाइपर नेशनलिज्म भी इसमें नही है जैसा आजकल उर्दुवुड वाले सस्ते डायलॉग और फालतू की देशभक्ति के नाम पर दिखा रहे हैं ताकि आपका राष्ट्रवादी फिल्मों से ही मोह भंग हो जाए और ना ही ये बस बना देने भर के लिए बनाई फ़िल्म है। इसमें 5-6 साल की रिसर्च लगी है जिसके बाद हर पहलू को आपस मे बुनकर इस फ़िल्म को बनाया गया है।
इसमें बहुत स्पष्ट तरीके से दिखाया गया है कि कैसे उस समय की सरकारों ने आर्टिकल 370 के असलियत को बदलकर देश को गुमराह किया तथा कश्मीर को बर्बाद कर दिया। पूर्व में देश में जो भी घटनाएं हुईं है उस पर इस प्रकार कि फिल्म बननी चाहिए ताकि लोगों को वास्तविक पता चले।
आपको ये फ़िल्म बिल्कुल भी मिस नही करनी चाहिए।
#Article370
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