आरएसएस पंच परिवर्तन का महत्वपूर्ण संदेश

आरएसएस का पंच परिवर्तन का संदेश भारतीय समाज में गहरा प्रभाव डालता है, जो सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण पर केंद्रित है। जानिए, पंच परिवर्तन के माध्यम से संघ का दृष्टिकोण और उद्देश्य। आरएसएस के पंच परिवर्तन के महत्वपूर्ण संदेश में सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण का दृष्टिकोण शामिल है, जो भारतीय समाज के उत्थान और राष्ट्र निर्माण की दिशा में हैआरएसएस, पंच परिवर्तन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, सामाजिक परिवर्तन, सांस्कृतिक पुनर्निर्माण, भारत, हिंदू राष्ट्र, सामाजिक सुधार, भारतीय संस्कृति, मोहन भागवत, आरएसएस संदेश, भारतीय समाज, परिवर्तन, हिंदू संगठन, राष्ट्रीय चेतना, भारतीय इतिहास,

Nov 12, 2024 - 09:42
Nov 12, 2024 - 10:18
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आरएसएस पंच परिवर्तन का महत्वपूर्ण संदेश

पंच परिवर्तन का महत्वपूर्ण संदेश

आरएसएस के पंच परिवर्तन के महत्वपूर्ण संदेश में सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण का दृष्टिकोण शामिल है, जो भारतीय समाज के उत्थान और राष्ट्र निर्माण की दिशा में है

 
हमारा देश विकसित होने की राह पर अग्रसर है। समाज में सकारात्मक परिवर्तनों को गति मिले, इसलिए हमें संघ प्रमुख द्वारा सुझाए गए पांच महत्वपूर्ण परिवर्तनों को भी आत्मसात करना होगा परिवर्तन आवश्यकता और नूतनता के सूचक होते हैं। देश, काल, परिस्थिति एवं वातावरण के अनुसार व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र जीवन में परिवर्तनों की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। आज ज्ञान-विज्ञान, सूचना एवं तकनीक तेजी से बढ़ रहे हैं और उनके विविध प्रभाव जीवन पर पड़ रहे हैं, तब व्यक्ति, समाज और राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया का ताना-बाना किस प्रकार चले यह चिंतन बहुत आवश्यक है। विशेष रूप से तब, जब हम एक विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर हैं। वस्तुतः हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महाकौशल प्रांत की एक बैठक में सरसंघचालक डा. मोहन भागवत ने पंच परिवर्तनों की बात कही है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक स्वयंसेवक अपने और अपने परिवार में स्वदेशीयुक्त जीवन शैली, समरसतापूर्ण परिवार एवं समाज, कौटुंबिक संस्कार, पर्यावरणयुक्त जीवन संरचना एवं नागरिक कर्तव्य का पालन करना शुरू करें। ध्यातव्य है कि संघ समाज एवं राष्ट्र की निस्वार्थ भावना से सेवा करने हेतु स्वयं प्रेरणा से निकले हुए स्वयंसेवकों का संगठन है, जिसकी स्थापना 1925 में डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने की थी। उनका मानना था कि ऐसे समर्पित कार्यकर्ताओं के बूते ही समाज और राष्ट्र के सभी क्षेत्रों में उत्थान हो सकेगा।

स्पष्ट है कि आज संघ विचार व्यक्ति, समाज व राष्ट्र से होते हुए वैश्विक पटल पर पहुंच चुका है और वसुधैव कुटुंबकम के लिए कार्य कर रहा है। संघ की शाखा व्यक्ति निर्माण की पाठशाला है, जहां कोई बालक अथवा व्यक्ति आरंभ से ही अनुशासित जीवन का पाठ पढ़ते हुए खेल-खेल में शारीरिक एवं बौद्धिक उन्नति को प्राप्त करता है और यहीं से वह भारतवर्ष की विराट ज्ञान परंपरा, संस्कृति, संत-महापुरुषों, बलिदानों की परंपरा और पर्व उत्सवों से परिचित होता है। यहीं पर वह प्रार्थना के माध्यम से 'नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे' का पाठ पढ़ते हुए परमात्मा से हिंदू राष्ट्र एवं मातृभूमि की सेवा हेतु शक्ति मांगता है। आज जब भारतवर्ष विकसित भारत का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहा है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश करने वाला है, तब पंच परिवर्तन का संदेश बहुत महत्वपूर्ण है। पांच संदेशों में पहला संदेश स्वदेशीयुक्त जीवन शैली है। यह स्व के बोध एवं शोध का आह्वान है। आज भाषा, भोजन व भेष आदि अनेक रूपों में स्व की विस्मृति बढ़ती जा रही है। समाज में विदेश की नकल और उसे श्रेष्ठ मानने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है। ऐसे में स्वदेशी जीवन शैली का व्यापक स्वीकार और प्रसार बहुत आवश्यक है। दूसरा संदेश समरसतापूर्ण परिवार एवं समाज है। विदित है कि परिवार समाज की मूल इकाई है। विगत कुछ वर्षों में समाज एवं राष्ट्र जीवन में सामाजिक व आर्थिक असमानता भी बढ़ती दिखाई दे रही है। साथ ही जाति, संप्रदाय एवं क्षेत्रीयता के आधार पर भी असमानताएं बढ़ी हैं। क्या आज एक नागरिक के रूप में हमें विविधताओं का सम्मान करते हुए भारत भाव के साथ एकजुट होने की आवश्यकता नहीं है? विकसित राष्ट्र की संकल्पना समरसतापूर्ण परिवार एवं समाज से ही संभव है, इसलिए उन्होंने सभी से एकजुट होकर इस दिशा में काम करने का आह्वान किया है।

तीसरा संदेश- कौटुंबिक संस्कार है। आज एकल परिवार बढ़ रहे हैं। जीवन मूल्यों में निरंतर गिरावट आती जा रही है। मेरा क्या और मुझे क्या का भाव प्रबल हो रहा है। भिन्न-भिन्न कारणों से परिवारों में आपसी संवाद भी घट रहा है। आधुनिक जीवन शैली कौटुंबिक संरचना को विकृत कर रही है। क्योंकि कुटुंब बालक की प्राथमिक पाठशाला होता है, इसलिए उसे विकारों से बचाने के लिए संस्कार की आवश्यकता है। चौथा संदेश पर्यावरणयुक्त जीवन संरचना का है। आज प्रकृति-पयांवरण, जलवायु परिवर्तन एवं प्रदूषण जैसे विषय राष्ट्रीय आपदा बनते जा रहे हैं। कई जगह विकास के नाम पर पर्यावरणीय संरचनाओं से अनावश्यक छेड़छाड़ जारी है। क्या आज यह समझने की आवश्यकता नहीं है कि नदियां हैं तो संस्कृति है, प्रकृति-पर्यावरण है तो जीवन है। यह संदेश पर्यावरणीय संरचनाओं जैसे पेड़-पौधों, पर्वतों व जल स्रोतों के संरक्षण की दिशा में नागरिकों या स्वयंसेवकों का आह्वान है।

पांचवा संदेश नागरिक कर्तव्यों के पालन से संबंधित है। आज भिन्न-भिन्न रूपों में अधिकारों के प्रति तो जागरूकता अथवा आक्रामकता बढ़ रही है, लेकिन एक नागरिक के रूप में समाज एवं राष्ट्र के प्रति हमारे कर्तव्य क्या हैं? यह विषय उपेक्षित है। यद्यपि संघ प्रमुख इन विषयों पर पहले भी आह्वान कर चुके हैं और संघ इन विषयों को लेकर कुटुंब प्रबोधन, स्वदेशी जागरण एवं प्रकृति चिंतन-वंदन आदि आयामों के अंतर्गत कार्य भी कर रहा है। तथापि संघ के शताब्दी वर्ष के आरंभ से पूर्व इन परिवर्तनों की व्यापक चचर्चा महत्वपूर्ण है। संघ का विचार है कि इन पंच परिवर्तनों को अपनाकर समाज एवं राष्ट्र जीवन में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। आज जब हम विकसित भारत का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहे हैं, तब यह आवश्यक है कि समाज में सकारात्मक परिवर्तनों को गति मिले, नागरिकों में अनुशासन व देशभक्ति का भाव बढ़े। संघ प्रमुख द्वारा आहत उपरोक्त परिवर्तनों में निहित संदेश इस दृष्टि से महत्वपूर्ण सिद्ध होंगे।

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