गुरुजी के साथ बैठक: संघ सेवा में समर्पण और नई प्रेरणा की बातचीत

संघ के अलावा मेरे जीवन में और कुछ है ही नहीं

Feb 9, 2024 - 19:26
Feb 9, 2024 - 19:29
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गुरुजी के साथ बैठक: संघ सेवा में समर्पण और नई प्रेरणा की बातचीत

पूज्य गुरुजी और मान्यवर आबाजी के साथ एक दिन मैंने बैठक की थी। पूज्य गुरुजी ने मुझसे पूछा, "'अब' तुम 'शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन' में काम कर रहे हो तो सुबह शाखा पर जाना तो नहीं होता होगा?" मैंने उत्तर दिया, "हाँ, शाखा पर जाना मुश्किल सा हो जाता है।" 'शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन' के कार्यकर्ताओं की आदत ऐसी होती है कि शाम के समय बैठकें शुरू होती हैं और रात देर तक चलती हैं, जिसके कारण सुबह जल्दी उठना मुश्किल होता है।

पूज्य गुरुजी ने इस पर टिप्पणी की, "बहुत अच्छा काम किया है। इसमें मानसिक कष्ट भी आपने बहुत सहा होगा।" इस प्रशंसा ने मुझे बहुत खुश किया। लेकिन फिर गुरुजी ने जानने के लिए पूछा, "शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन' के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ संपर्क करने में कहाँ तक कामयाबी प्राप्त हुई?" मैंने सब कुछ बताया और श्रीगुरुजी ने कहा, "बहुत अच्छा। यह संघकार्य का ही हिस्सा है।"

फिर गुरुजी ने एक सवाल पूछा, "क्यों आबाजी, ऐसा ही है न?" आबाजी ने कहा, "दत्तोपंत शाखा पर नहीं जा रहे हैं।" मैंने समझाया कि मैं जो काम कर रहा हूँ वह संघकार्य ही है और इसलिए शाखा पर जाना मुश्किल हो जाता है।

गुरुजी ने फिर से पूछा, "क्यों दत्तोपंत, ऐसा ही है न?" मैंने गर्दन झुकाई और चुपचाप बैठा रहा। गुरुजी ने कहा, "आबा सुन लो, ये क्या कह रहे हैं?" और फिर मुझसे कहा - "मैं तीन चार दिनों से आबा को समझा रहा हूँ। किन्तु मेरी बात इसके ध्यान में नहीं आती। इसे हर दिन संघस्थान पर आने का आग्रह करता है। मैं उसको बता रहा हूँ कि अरे, मैं संघ का सरसंघचालक हूँ। संघ के अलावा मेरे जीवन में कुछ भी नहीं है। जब मैं चौबीस घंटे संघ के अलावा कोई काम नहीं करता हूँ तो मेरे ऊपर इतनी सख्ती क्यों, कि मैंने हर दिन शाखा के लिए एक घंटा देना चाहिए?" मैं घबरा गया था। पहले मुझे लगा था कि मेरी प्रशंसा हो रही है। लेकिन फिर ध्यान में आया कि पटरी एकदम बदल गई है। मैंने गर्दन झुकाकर चुपचाप बैठा रहा।

श्रीगुरुजी ने फिर से पूछा, "क्यों दत्तोपंत, ऐसा ही है न?" और मैंने बड़ी मुश्किल से केवल गर्दन हिलाई। उस पर गुरुजी बोले, "आबा सुन लो, ये क्या कह रहे हैं?" और फिर मुझसे कहा - "मैं तीन चार दिनों से आबा को समझा रहा हूँ। किन्तु मेरी बात इसके ध्यान में नहीं आती। यह मुझे भी हर दिन संघस्थान पर आने का आग्रह करता है। मैं उसको बता रहा हूँ कि अरे, मैं संघ का सरसंघचालक हूँ। संघ के अलावा मेरे जीवन में और कुछ है ही नहीं । मेरी जो कुछ भी हलचल रहती है वह संघकार्य का ही तो हिस्सा है। जब में चौबीस घंटे संघ के अलावा और कोई भी काम नहीं करता हूँ तो मेरे ऊपर यह सख्ती क्यों, कि मैंने हर दिन शाखा के लिए एक घंटा देना चाहिए।" इसपर कुछ भी प्रतिक्रिया व्यक्त करना संभव नहीं था। श्रीगुरुजी के संकेत से बदलती तिरिया ने मुझे आत्मसमर्पण की दिशा में एक नई प्रेरणा दी।

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