मतदाता निभाएं अपनी जिम्मेदारी

लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतदान करना सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। यह जिम्मेदारी मतदाताओं के पास है। बानी मतदाताओं के पास ही सत्ता की चाबी

Mar 11, 2024 - 21:27
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मतदाता निभाएं अपनी जिम्मेदारी

मतदाता निभाएं अपनी जिम्मेदारी

डा. एसवाइ कुरेशी पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त 

लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि नहीं, मतदाता सबसे ऊपर हैं। मतदाताओं को यह बात समझ कर इसके अनुरूप व्यवहार करना होगा। तभी लोकतंत्र मजबूत होगा। जनता को गाति, धर्म से ऊपर उतरकर राष्ट्र‌हित को ध्यान में रखकर मतदान करना होगा तमी वह राजनीतिक दलों और जनप्रतिनिधि की मनमानी पर अंकुश लगा पाएगी।

लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतदान करना सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। यह जिम्मेदारी मतदाताओं के पास है। बानी मतदाताओं के पास ही सत्ता की चाबी और पार्टियों की चुनावी रणनीति तय कराने का अमोध अस्त्र है। मतदाता अगर चाहे तो अपने इसी रामबाण हथियार से अपने कल्याण के साथ साथ राजनीतिक या चुनावी सुधार के हर काम पूरे करा सकते हैं, लेकिन क्या ऐसा हो रहा है, नहीं।ऐसा क्यों नहीं हो पा रहा है, जब इसकी पड़ताल में जाएंगे तो जवाब में मतदाता का नाम ही सामने आए‌गा। दरअसल मतदाता अपनी जिम्मेदारी ही नहीं समझ पा रहा है। और आसमान से मिरे खजूर पर अटके वाली स्थिति यह है कि राजनीतिक दल उसे समझने ही नहीं देना चाह रहे हैं। अधिकतर अपने आपको जाति, धर्म, क्षेत्र के दायरे में रखकर मतदान करते हैं। इसका फायदा राजनीतिक पार्टियां उठा रही हैं।

वह जानती हैं कि मतदाता को कैसे घुमाना है। जिस क्षेत्र में जिस जाति की संख्या अधिक होती है, उसे टिकट दिया जाता है। जिस क्षेत्र में जिस धर्म के लोगों की संख्या होती है, उसे टिकट दिया जाता है। न पार्टियां राष्ट्र को ध्यान में रखकर टिकट देती हैं और न ही अधिकतर मतदाता राष्ट्र को ध्यान में रखकर मतदान करते हैं। अधिकतर मतदाता यह देखते हैं मेरी जाति व धर्म का कौन नेवा मैदान में है। किस नेता से मेरा व्यक्तिगत फायदा हो सकता है। कहने का अभिप्राय यह है कि यदि राजनीतिक पार्टियों के ऊपर नकेल कसना है, पार्टियां उम्मीदवारों के चयन में मनमानी न करें, राष्ट्र को ध्यान में रखकर उम्मीदवारों का चयन करें तो इसके लिए मतदाताओं को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। नेताओं के पीछे भागने से खुद को रोकना होगा। पहले नेता जनता के पास जाते थे, अब जनता नेता के पास पहुंच रही है। काम करें या न करें, यदि नेता जनता के घर पर पहुंच जाते हैं तो उनका भव्य स्वागत किया जाता है। स्वागत करने की बजाय उन्हें बुलाकर सवाल करना चाहिए।


जनता ने सवाल करना बंद कर दिया है, इसलिए नेता उनके ऊपर हावी होते जा रहे हैं। सवाल नहीं करने की वजह से ही काम नहीं करने वाले नेता को शर्म नहीं आती है। जिसके घर पर नेता पहुंचते हैं वह इंटरनेट मीडिया पर फोटो पोस्ट करके यह दिखाने का प्रयास करता है कि उसकी कितनी पहुंच है। मैं स्पष्ट शब्दों में कहता हूं कि लोकतंत्र में मतदाता सबसे ऊपर है, जनप्रतिनिधि नहीं। जो ऊपर है उसे उसी स्तर की जिम्मेदारी निभानी होगी, तभी लोकतंत्र की बुनियाद मजबूत होगी। मतदाता ही राजनीतिक पार्टियों को रास्ते पर ला सकते हैं। मेरा एक सीधा सा सवाल है राजनीतिक पार्टियां जब बाहुबलियों को टिकट दे देती हैं तो जनता जमानत जब्त क्यों नहीं करा देती। होता यह है कि जनता बाहुबली को भी अपनी जाति या धर्म के चश्मे से देखना शुरू कर देती है। गलत को गलत जब तक जनता नहीं मानेगी तब तक राजनीतिक पार्टियां मनमानी करती रहेंगी क्योंकि पार्टियां नंबर गेम को ध्यान में रखकर टिकटों का बंटवारा करती हैं। जिस इलाके से जो जीत सकता है, उसे टिकट दिया जाता है। इस चक्कर में पार्टियां यह नहीं देखती हैं कि जिसे टिकट दिया जा रहा है उसका चरित्र कैसा है, उसकी शैक्षणिक योग्यता क्या है।

वर्षों से यह सवाल उठता है कि टिकटों के बंटवारे में जनता की राय नहीं ली जाती है। मेरा कहना है कि ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। जनता अपनी राय मताधिकार के माध्यम से व्यक्त कर सकती है। जिस नेता को जनता हरा देती है, वही जनता की राय मानी जाती है। हां एक विषय के ऊपर काफी काम किया जा सकता है। इससे राजनीतिक पार्टियां ही नहीं सभी नेता रास्ते पर आ जाएंगे। वह विषय है नोटा के लिए कानून बनाना बानी राइट टू रिजेक्ट को लेकर कानून बनाने से मतदाताओं के हाथ में लोकतंत्र की पूरी कमान आ जाएगी। अभी व्यवस्था है कि किसी चुनाव क्षेत्र में यदि मतदाताओं की कसौटी पर कोई भी प्रत्याशी नहीं खरा उत्तर रहा है तो वह इनमें से कोई नहीं वानी नोटा का बटन दबा सकते हैं। लेकिन इसकी वैधानिक स्थिति अभी उपयुक्त नहीं है।

नोटा की संख्या संबंधित क्षेत्र में सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले उम्मीदवार से अधिक होने पर चुनाव को रद करने संबंधी अगर कानून बना दिया जाए तो सभी को सुधरते देर नहीं लगेगी। उसमें प्रविधान भी जुड़े कि उस क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे सभी उम्मीदवारों पर अगले दो से तीन चुनाव लड़ने का प्रतिबंध लगा दिया जाए। मतदाताओं को नेताओं या पार्टियों का समर्थक नहीं बल्कि राष्ट्र का समर्थक बनना चाहिए। जब आप राष्ट्र का समर्थक बनेंगे तभी नेता को सबक सिखा पाएंगे। मौका देखते ही पाला बदल लेना, मतदाताओं की भावना का खिलवाड़ है। वर्षों तक किसी सरकार में मंत्री रहने के बाद जब उसे लगता है कि चुनाव हार जाएंगे तो वह पाला बदलकर दूसरी पार्टी में शामिल हो जाता है। जनता उसे जिता देती है। ऐसे मौकापरस्त नेताओं की जमानत जब्त करा दें। कुछ साल में ही लोकतंत्र की तस्वीर बदल जाएंगी। मौकापरस्ती बंद हो जाएगी। राजनीतिक पार्टियां दल-बदल करने वालों को स्वीकार करने से पहले दस बार सोचना शुरू कर देंगी। 

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