आदर्श की असली कहानी

The real story of Aadarsh, आदर्श की असली कहानी

Mar 24, 2025 - 19:16
Mar 24, 2025 - 19:19
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आदर्श की असली कहानी
संपूर्णता की तस्वीर विजय गर्ग 
  • आदर्श की असली कहानी
हम सभी के मन में एक आदर्श तस्वीर हमेशा बनी रहती है, जो भी उसके पैमाने पर खरा उतरता, बस वही हमारे लिए परिपूर्ण बन जाता है और हम उसके प्रशंसक । हम उस व्यक्ति की तरह ही खुश, समृद्ध, संतुष्ट होने की अभिलाषा रखने लगते हैं। बहुत कम लोगों में यह धैर्य रह पाता है यह समझने का कि किस तरह की लंबी यात्रा तय करके यह सुखद छवि उभर कर आई होगी। खिलखिलाते मुस्कुराते व्यक्तित्व को बनाए रखने के लिए कितना साहस दिखाया होगा। कभी, कितनी मेहनत और समर्पण लगा होगा इस मुकाम पर पहुंचने के लिए । परिपक्वता के कितने आयाम तय किए होंगे। यह भी विचार करने की बात है कि समृद्ध नजर आते चेहरों ने कितने लोगों का जीवन वास्तव में रोशन करके जीवन भर के लिए संतुष्टि पा ली होगी या फिर अपनी नींव दूसरों के दुख-दर्द पर स्थापित कर अच्छाई का मुखौटा पहन लिया होगा। यह भी समझना चाहिए कि उजले चेहरे कहीं सिर्फ बनावटी तो नहीं, कुछ रहस्य तो नहीं छिपा रखा अपने भीतर । यों जिन चेहरों के भीतर रहस्य नहीं छिपा होता, कोई छल नहीं होता, उन्हें पहचानना बहुत मुश्किल नहीं है, अगर सिर्फ इतना किया जाए कि अपनी दृष्टि को किसी आग्रह से संचालित न होने दिया जाए। चकाचौंध लोकप्रियता की अपनी कीमत होती है। सुंदरता, पूर्णता, सफलता तो तभी कही जा सकती है जब हमारा अस्तित्व खुद के ही नहीं, कई लोगों के जीवन में भी उजाला भरने में समर्थ हो । किसी भी तरह की तस्वीर या छवि को देखकर तुरंत उसे अपना आदर्श मान लेना भी उचित नहीं है। हां, हमारे आदर्श किसी के अच्छे विचार, अच्छे कर्म हो सकते हैं। पर किसी की निजी उपलब्धि हमारे लिए तब तक आदर्श नहीं हो सकती, जब तक कि हम खुद में सामने वाले के जीवन की यात्रा को समझने का धैर्य न जुटा सकें। ऐसा तो अक्सर होता है, जब हम किसी उद्देश्य की खोज में होते हैं, किन्हीं कारणों से हमारी यात्रा की दिशा में स्पष्टता नहीं बन पाई होती है, तब कोई व्यक्ति अगर अचानक ही आकर अपने दिशा - ज्ञान को सर्वश्रेष्ठ के रूप में प्रस्तुत करने लगता है तब अनायास ही हम उससे प्रभावित होने लगते हैं। जबकि किसी बात की स्वीकार्यता हमारे विवेक और आकलन के आधार पर होना चाहिए ।
आंखों को दिखती संपूर्णता की तस्वीर असल में सफल, असफल प्रयासों, कमियों, अभावों, निराशा, उत्साह, अपमान, आलोचना, प्रशंसा की छोटी-छोटी कहानियों को आपस में जोड़कर बनी हुई होती है । इसीलिए किसी सफल आदर्श व्यक्तित्व को जानना बहुत सुंदर और रोमांचक अनुभव बन जाता है । जब हम वास्तविक जीवन की कहानियों को सुनते हैं, तब जान पड़ता है कि असल में सफलता किसी मुकाम को पा लेने से परिभाषित नहीं हो जाती। यह तो हर दिन, हर पल घटित होने वाली चीज है। यही कारण है कि एक आम व्यक्ति भी जो अपने रोजमर्रा के जीवन में आती चुनौतियों में साहस, ईमानदारी और संतुष्टि के साथ जीवन निर्वाह कर रहा होता है, तकलीफों के बावजूद अपनों के साथ खुशी के पल बिता पाने का साहस जुटा पाता है, उसका जीवन भी संपूर्ण और सुंदर है ।
तब संपूर्ण बनने की अभिलाषा लिए जब हम प्रयास करते यह समझ में आने लगता है कि इसका संबंध हमारे हौसले से अधिक है। हम कितनी बार साहस जुटा पाते हैं पूरी तरह टूट- बिखर कर खुद को वापस जोड़ लेने का ? जब भी हम निराशा की जगह हिम्मत को चुनते हैं, हम और निखर जाते हैं । हमारी कुशलता, हमारी ताकत पहले से और अधिक बढ़ जाती है । जापान में जब पुराना मिट्टी का बर्तन टूट जाता है तब उसकी मरम्मत में सोने, चांदी, प्लेटिनम जैसी कीमती धातुओं से उसे जोड़ दिया जाता है। इस कला को 'किंत्सुगी' कहा जाता है। यह माना जाता है कि टूटने से उसकी सुंदरता कम नहीं होती और बढ़ जाती है। इसी सिद्धांत की तरह जीवन में भी हर अभाव, असफलता हमें पहले से और अधिक अनुभवी बनाती है, हमारे भीतर धैर्य विकसित करती है । जो हमें श्रेष्ठता की राह पर अग्रसर कर देता है । जीवन में आए अभाव, उतार-चढ़ाव, चुनौतियां 'किंत्सुगी' में उपयोग में ली गई सोने-चांदी जैसी कीमती धातुओं की तरह ही है, जिनके होने से जीवन परिष्कृत बनता चला जाता । व्यक्तित्व निखर जाता है। जितने संघर्ष हैं जीवन में उतने ही हम समृद्ध भी होते चले जाते हैं । उस समय आई विषमताओं से जरूर हम निराश हो सकते हैं, हमारा मनोबल कमजोर हो सकता है, लेकिन ऐसे समय में हमें याद रखना चाहिए कि हम जीवन का बस एक छोटा-सा दृश्य देख रहे होते हैं और उससे जूझ रहे होते हैं । अपने आप को अपने दुखों को पीछे रख कर थोड़ी-सी हिम्मत दिखाने से हमारे पास निश्चित ही नया आसमान होता है ।
किसी की देखा-देखी केवल उनके जैसा बन जाना कभी भी हमें संतुष्टि का भाव नहीं दे सकता । संपूर्णता हमें हमारे जीवन की विशिष्ट यात्रा बनाती है, हम उसे किस तरह से जीते हैं, कितने समर्पित हैं, किन मूल्यों को अपने साथ लेकर आगे बढ़ते हैं। कोई मापदंड नहीं है, जिस पर आंका जा सके पूर्णता को। पैसा, शोहरत, परिवार, बुद्धिमत्ता इन सबसे परे अगर अपने संघर्षों में भी मुस्कुराने, आत्मीयता और मनुष्यता बनाए रखने का साहस हम अपने भीतर महसूस कर पाते हैं तो यही हमारी संपूर्ण और सुंदर तस्वीर है ।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब

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VIJAY GARG विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब vkmalout@gmail.com