मृत पति से प्राप्त संपत्ति पर हिंदू महिला का पूर्ण अधिकार नहीं
भाई-बहन (तीन बेटों शीतल, रघबीर, हरभजन और बेटी कवलजीत कौर ने अन्य तीन भाई (मनमोहन, नरिंद्रर, रविंद्र, अदीश कौर) और दर्शन की बेटी (पोती) के खिलाफ बंटवारे का मुकदमा दायर किया गया था।
मृत पति से प्राप्त संपत्ति पर हिंदू महिला का पूर्ण अधिकार नहीं
न्यायिक व्यवस्था
मां की मृत्यु होने पर भाई-बहनों के बीच बंटवारे से संबंधित विवाद पर दिल्ली हाई कोर्ट ने की टिप्पणी, कोर्ट ने कहा, बिना अपनी आय के एक हिंदू महिला पूरे जीवन कर सकती है पति से मिली संपत्ति का प्रयोग
पिता की मृत्यु के बाद भाई-बहनों के बीच बंटवारे के मुकदमे पर दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि एक हिंदू महिला को मृत पति से प्राप्त संपत्ति का इस्तेमाल करने का पूरा अधिकार है, लेकिन उस पर उसका पूर्ण अधिकार नहीं हो सकता है। न्यायमूर्ति प्रतिबा एम सिंह की पीठ ने कहा कि ऐसी हिंदू महिला जिसके पास अपनी आय नहीं है, उसके लिए पति द्वारा दी गई संपत्ति उसके जीवनकाल में वित्तीय सुरक्षा के लिए एक आवश्यक उपाय है। अदालत ने कहा कि ऐसी सुरक्षा यह सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि पति के निधन के बाद महिला अपने बच्चों पर निर्भर न रहे।
ऐसी परिस्थितियों में पत्नी को अपने जीवनकाल में संपत्ति का प्रयोग करने का पूरा अधिकार है। हालांकि, यह नहीं माना जा सकता है कि पति की मृत्यु के बाद पूरी संपत्ति को गुजारा भत्ता के रूप में माना जाना चाहिए, जिससे पत्नी को संपत्ति पर पूर्ण अधिकार मिल सके। पीठ ने यह टिप्पणी वर्ष 1989 में पिता की मृत्यु के बाद कई भाई-बहनों के बीच बंटवारे के मुकदमे का निपटारा करते हुए की। पति गुरचरण सिंह ने अपनी पत्नी महिंदर कौर के पक्ष में एक वसीयत की थी, जिसमें कहा गया था कि वह अपनी संपत्ति को लाइफ-एसेट के रूप में पत्नी को सौंप देंगे।
पति ने यह भी कहा कि पत्नी को इस संपत्ति का किराया वसूलने और उसका उपयोग करने का पूरा अधिकार होगा। हालांकि, महिला की मृत्यु होने की स्थिति में संपत्ति चार बेटों दर्शन सिंह, हरभजन सिंह, रघबीर सिंह और रविंदर सिंह को छोड़कर बाकी बच्चों के बीच हस्तांतरित हो जाएगी। मृतक के सात बेटे और एक बेटी थे। इसमें एक बेटे (दर्शन सिंह) की मौत हो चुकी है। महिला की वर्ष 2012 में मृत्यु हो गई थी। इसके बाद चार भाई-बहन (तीन बेटों शीतल, रघबीर, हरभजन और बेटी कवलजीत कौर ने अन्य तीन भाई (मनमोहन, नरिंद्रर, रविंद्र, अदीश कौर) और दर्शन की बेटी (पोती) के खिलाफ बंटवारे का मुकदमा दायर किया गया था।
निचली अदालत के समक्ष प्रतिवादी भाई पोती ने दावा किया कि वसीयत के आधार पर संपत्ति मां को केवल जीवित रहने तक दी गई थी, ऐसे में उनके अधिकार सीमित थे। यह तर्क दिया गया कि मां की मृत्यु के बाद संपत्ति पिता की वसीयत के अनुसार हस्तांतरित की जानी चाहिए। निचली अदालत ने वादी भाइयों व बहन के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा था कि वसीयत के आधार पर महिला संपत्ति की पूर्ण मालिक बन गई थी और बिना वसीयत के ही उनकी मृत्यु हो गई थी। निचली अदालत ने माना
कि संपत्ति उत्तराधिकार कानून के अनुसार हस्तांतरित की जाएगी। इस फैसले के विरुद्ध प्रतिवादी भाइयों व पोती की अपील याचिका को स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट ने निचली अदालत के निर्णय को रद कर दिया। अदालत ने कहा कि पत्नी ने अपने जीवनकाल के दौरान कोई भी वसीयत निष्पादित नहीं की और बिना वसीयत किए उसकी मृत्यु हो गई। पीठ ने पाया कि महिला के पति द्वारा की गई वसीयत को न तो महिला ने और न ही बच्चों द्वारा चुनौती दी गई। इससे स्पष्ट होता है कि पति द्वारा अपनी वसीयत में व्यक्त तथ्यों के विपरीत महिला की कोई राय नहीं थी। वसीयत में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पत्नी को संपत्ति को बेचने, अलग करने या हस्तांतरित करने का कोई अधिकार नहीं है। इस स्थिति को देखते हुए यह दावा करना कि अपने पति की मृत्यु के बाद वह संबंधित संपत्ति की पूर्ण मालिक बन गई और संपत्ति को बेच या अलग कर सकती थी, यह मृतक मां के इरादे के भी विपरीत है।
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