राज्यों के राजकोषीय कुप्रबंधन पर चिंता कर सकती है केंद्र सरकार
राज्य से कहा कि वह केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित 13,068 करोड़ रुपये ले ले और बैठक में 15 हजार करोड़ की अतिरिक्त मांग को रखे।
शीर्ष अदालत ने कहा, इसका देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है असर, उधारी की सीमा के मुद्दे पर केंद्र व केरल को मतभेद दूर करने की दी सलाह, याचिका में केंद्र पर लगाया गया है केरल के अधिकार में हस्तक्षेप का आरोप
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि राज्यों द्वारा राजकोषीय कुप्रबंधन ऐसा मुद्दा है जिसके बारे में केंद्र सरकार को चिंता करनी चाहिए क्योंकि यह देश की अर्थव्यवस्था पर असर डालता है। साथ ही शीर्ष अदालत ने केंद्र और केरल सरकार को सलाह दी कि राज्य के उधार लेने पर लगाई गई सीमा के मुद्दे पर दोनों अपने मतभेदों को मिल बैठकर कर सुलझाएं।सुप्रीम कोर्ट ने उक्त टिप्पणी केरल सरकार की उस याचिका पर की जिसमें केंद्र सरकार पर उधारी की सीमा तय करके राज्य के वित्तीय नियमन के विशिष्ट, स्वायत्त एवं पूर्ण अधिकार में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया गया है। इसमें खुले बाजार से उधार लेने सहित सभी स्रोतों से राज्य की उधारी को सीमित कर दिया गया है।
जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने मुद्दे को सुलझाने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि केंद्र और राज्य के बीच वार्ता सिर्फ इसलिए नहीं रुक केंद्र से कहा, केवल यही सुझाव देना चाहते हैं कि आप मुकदमा वापस लेने की शर्त पर जोर न दें, केंद्र-राज्य विवाद निपटाने का कोर्ट को अधिकार जानी चाहिए कि याचिका अदालत में लंबित है। पीठ ने कहा, 'निर्णय लेने में सक्षम और निर्णय प्रक्रिया में पहले से शामिल सभी वरिष्ठ अधिकारी साथ बैठें और इसे सुलझाएं।' बुधवार को केरल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि राज्य के पास इस मुद्दे का विरोध करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। वह अदालत को बताना चाहते हैं कि इस मुद्दे को सहकारी संघवाद की भावना से सुलझाने की जरूरत है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस समय राज्य को राहत की जरूरत है।
पीठ ने राज्य से कहा कि वह केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित 13,068 करोड़ रुपये ले ले और बैठक में 15 हजार करोड़ की अतिरिक्त मांग को रखे। शीर्ष अदालत ने दोनों पक्षों के बीच बातचीत जारी रखने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि वह मामले की सुनवाई की अगली तारीख तय नहीं करेगी और पक्षकार जब चाहें तब इसका उल्लेख करने के लिए स्वतंत्र हैं। पीठ ने केंद्र से कहा, 'अभी हम आपको केवल यही सुझाव देना चाहते हैं कि आप मुकदमा वापस लेने की शर्त पर जोर न दें।' पीठ ने कहा कि भारत सरकार बेहतर राजकोषीय प्रबंधन के लिए अन्य शर्तें लगा सकती है।
आप यह नहीं कह सकते कि मुकदमा वापस लें। यह (संविधान के) अनुच्छेद-131 के तहत एक संवैधानिक अधिकार है। अनुच्छेद-131 शीर्ष अदालत को केंद्र और राज्य के बीच या राज्यों के बीच विवादों से निपटने का अधिकार देता है।॥ सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कहा, 'ऐसा नहीं है कि केंद्र ने कोई चीज निकाली जो एक खास राज्य के प्रतिकूल है।'
वहीं, एएसजी एन. वेंकटरमण ने कहा, राजकोषीय घाटा कम हो रहा है और आर्थिक स्थायित्व के मामले में जी-7 देशों में भारत की स्थिति बेहतर है। पीठ ने सहमति जताते हुए कहा कि दुनिया भी भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती को स्वीकार कर रही है। पिछली सुनवाई में दाखिल नोट में भी केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा था कि राज्यों द्वारा अनियंत्रित उधारी से पूरे देश की क्रेडिट रेटिंग प्रभावित होती है और केरल के राजकोषीय ढांचे में कई खामियां होने का पता चला है।
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