प्रधानमंत्री मोदी का लाल किले से प्रबल संदेश: विकास यात्रा अविराम, शत्रुओं के सपने चकनाचूर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वाधीनता दिवस पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए विकास की अविराम यात्रा, समान नागरिक संहिता, और भारत के भविष्य की दिशा पर स्पष्ट संदेश दिया। उनके संबोधन ने विपक्ष के षड्यंत्रों को बेनकाब करते हुए राष्ट्र की एकता और अखंडता पर बल दिया।

Aug 17, 2024 - 08:41
Aug 17, 2024 - 08:45
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प्रधानमंत्री मोदी का लाल किले से प्रबल संदेश: विकास यात्रा अविराम, शत्रुओं के सपने चकनाचूर

प्रधानमंत्री मोदी का लाल किले से प्रबल संदेश: विकास यात्रा अविराम, शत्रुओं के सपने चकनाचूर 

लेखक - मृत्युंजय दीक्षित 


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वाधीनता दिवस पर लगातार ग्यारहवीं बार राष्ट्र को संबोधित करते हुए अपनी भविष्य की राजनीति की पटकथा लिख दी और साथ ही सभी अराजक तत्वों व राजनीतिक शत्रुओं को स्पष्ट संदेश दिया कि भारत की विकास यात्रा रुकने वाली नहीं है। प्रधानमंत्री के तेवरों से स्पष्ट है कि सीटें कम हो जाने के बाद भी उनके  संकल्प थमने वाले नहीं हैं अपितु वह अपने सभी संकल्पों को नये कलेवर के साथ पूर्ण करने की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं। प्रधानमंत्री के संबोधन से उन सभी दलों व नेताओं के सपने चकनाचूर हो गये हैं गये हैं जो यह सोच रहे थे कि सहयोगी दलों की सहायता से टिकी सरकार अब गिरी तो तब गिर ही जाएगी। प्रधानमंत्री ने लाल किले से उन सभी ताकतों व उनके इको सिस्टम को हिलाकर रख दिया है जो येन केन प्रकारेण मोदी सरकार को गिराना चाहते हैं। 


भारत के विरेधी दल कभी किसान आंदोलन के सहारे, कभी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के सहारे अराजकता फैला कर मोदी सरकार को गिराना चाहते हैं किंतु अभी तक यह सभी प्रयास एक के बाद एक धराशायी होते रहे हैं। अब घोर निराशा व हताशा में डूबा विपक्ष हर छोटी बड़ी बात में प्रधानमंत्री मोदी को ही जिम्मेदार बताने लगा है और भारत में बंगला देश जैसे हालत  बनाने की धमकी दे रहा है। 


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन सभी षड्यंत्रों से पूरी तरह परिचित हैं तभी उन्होंने विरोधियों के सभी पैंतरों का अपने 98 मिनट लम्बे स्वाधीनता दिवस संबोधन में दो टूक उत्तर दिया। प्रधानमंत्री ने विदेशी शक्तियों को स्पष्ट सन्देश दिया – भारत  की शक्ति से किसी को डरने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि हम बुद्ध का देश हैं, यह वस्तुतः चीन व अमेरिका के लिए था  । प्रधनमंत्री ने अपने संबोधान में पाकिस्तान का नाम तक नही लिया और बांग्लादेश के हिन्दुओं के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि बांग्लादेश शीघ्र ही  भारत के साथ विकास यात्रा में  शामिल होगा। प्रधानमंत्री संबोधन देते हुए किसी भी प्रकार के दबाव में नहीं दिख रहे थे और उनका स्पष्ट लक्ष्य था, विकसित भारत 2047 जिसके लिए वह 24 घंटे अनवरत बिना रुके, बिना थके देश के विकास के लिए राष्ट्र प्रथम की भावना से  कार्य करने के लिए संकल्पवान हैं। 


प्रधानमंत्री ने राष्ट्र की विकास यात्रा में सहभागी बन रहे सभी  समाज के सभी क्षेत्रों और वर्गों को छुआ। गांव, गरीब, किसान, युवा, महिला व सेना के जवान सहित सभी की चिंता करते हुए कई महत्वपूर्ण घोषणाएं करते हुए सरकारी योजनाओं का संक्षिप्त खाका भी प्रस्तुत किया। 


समान नागरिक संहिता - प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन से यह भी स्पष्ट कर दिया कि सरकार अब समान नागरिक संहिता पर आगे बढ़ने जा रही है । प्रधानमंत्री ने संविधान निर्माताओं, संविधान की भावना और  सुप्रीम कोर्ट के आदेशों व समय -समय पर की गई टिप्पणियों का उल्लेख करते हुए कहा कि देश में भेदभाव वाले कानून अब नहीं रह सकते। उन्होंने वर्तमान सिविल कोड को सांप्रदायिक बताते हुए कहा कि देश ऐसे किसी कानून को बर्दाश्त नहीं कर सकता जो धार्मिक आधार पर विभाजन का कारण बने। उन्होंने कहाकि देश को ऐसे भेदभावकारी कानूनों से मुक्ति लेनी ही होगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई आदेशों में देश में समान नागरिक संहिता लागू करने का निर्देश दिया है।प्रधानमंत्री ने जिस प्रकार से समान नागरिक संहिता पर बल दिया है उससे यह भी साफ हो गया है कि अब समान नागरिक संहिता जल्द ही कानून बनने जा रही है क्योंकि उत्तराखंड विधानसभा इसे पहले ही लागू कर चुकी है जबकि गुजरात में प्रस्तावित है तथा कई  और राज्य अब समान नागरिक संहिता लागू करने की ओर बढ़ रहे हैं।  


प्रधानमंत्री ने स्पष्ट संकेत कर दिया है कि अब धार्मिक आधार पर अलग -अलग कानूनों के दिन लदने वाले हैं। जो कानून देश को धर्म के आधार पर देश को बांटते हैं, जो ऊँच नीच का कारण बन जाते हैं ऐसे कानूनों का आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं हो सकता अतः अब देश मे सेक्युलर सिविल कोड होना चाहिए।  समान नागरिक संहिता पर प्रधानमंत्री मोदी के विचारों व संकल्पों से इंडी गठबंधन हिल गया है और  विभिन्न मीडिया प्लेटफार्मों पर इंडी सदस्यों द्वारा इसकी कड़ी निंदा प्रारम्भ हो गई।


प्रधानमंत्री ने यूनिवर्सल सिविल कोड को सेकुलर सिविल कोड के रूप में प्रस्तुत कर मुस्लिम परस्त राजनीति करने वाले खेमे में खलबली मचा दी है।अब सेकुलर शब्द पर एक नई बहस छिड़ गई है।  भाजपा के चुनावी संकल्पों में समान नागरिक संहिता एक प्रमुख विषय रहा है वहीं विपक्ष इसे अल्पसंख्यक विरोधी बताता रहा है। वहीं इस बार प्रधानमंत्री ने सेकुलर शब्द के माध्यम से एक तीर से कई निशाने साधने का प्रयास किया है   जिसने न सिर्फ समान नागरिक संहिता को बल दिया है वरन विपक्ष को भी नि:शब्द करने का प्रयास किया है।  इन बातों से यह भी संकेत मिल रहा है कि आगामी दिनों में अल्पसंख्यक, समाजवाद व धर्मनिरपेक्ष जैसे शब्द भी गायब हो जायेंगे और उसकी जगह पंथनिरपेक्ष जैसे शब्दों का समावेश हो जायेगा। समाजवाद व धर्मनिरपेक्ष शब्द के विरुद्ध  सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी लम्बित है। संविधान के नीति निर्देशक तत्व में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू हो। सुप्रीम कोर्ट ने भी 1985,1995, 2003 और 2015 में महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई के दौरान स्पष्ट रूप से कहा कि देश में समान नागरिक संहिता लागू होनी चाहिए। 


प्रधानमंत्री के संबोधन से यह तय हो गया है कि आगामी समय में एक देश एक चुनाव के साथ ही समान नागरिक संहिता लागू होकर रहेगी और वक्फ कानून में संशोधन भी होकर ही रहेगा। प्रधानमंत्री न्यायिक सुधार के प्रति और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई  के प्रति भी गंभीर हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि अब भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग रुकने वाली नहीं है अपितु अब यह और अधिक तीव्र होने जा रही है।  


प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से बांग्ला देश हिन्दुओं की सुरक्षा पर गहरी चिंता व्यक्त की और बांग्लादेश को कड़ा संदेश भी दिया। प्रधानमंत्री ने यह भी बता दिया है  कि अब रिफार्म नहीं रुकने वाले हैं और भारत बहुत ही जल्द दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक  शक्ति बनकर उभरेगा। उन्होंने 2036 में भारत में आयोजित हो सकने वाले ओलिंपिक खेलों का भी उल्लेख किया। विपक्ष युवाओं और रोजगार को लेकर काफी राजनीति करता है, प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में युवाओं के लिए कई सौगाते दी हैं जिसमे मेडिकल के क्षेत्र में 75हजार सीटें बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।प्रधानमंत्री का संकल्प है कि देश का विकास इतना तीव्र हो कि कोई भी  बेरोजगार न रहे। 

लेखक के अपने विचार हैं  - मृत्युंजय दीक्षित 

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