‘द वैक्सीन वॉर’ कहने को तो विज्ञान और वैज्ञानिकों की कहानी

‘द वैक्सीन वॉर’ कहने को तो विज्ञान और वैज्ञानिकों की कहानी

Oct 7, 2023 - 11:13
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‘द वैक्सीन वॉर’ कहने को तो विज्ञान और वैज्ञानिकों की कहानी

‘द वैक्सीन वॉर’ कहने को तो विज्ञान और वैज्ञानिकों की कहानी है, लेकिन यह विज्ञान से अधिक मीडिया की कहानी बन गई है. यह फिल्म मीडिया के नव-यथार्थ को उकेरने का प्रभावी प्रयास है. फिल्म में मीडिया इतना रच-बस गया है कि इसे 2010 में आई फिल्म ‘द पीपली लाइव’ के बाद मीडिया के विश्लेषण की सबसे गंभीर कोशिश माना जा सकता है.

अपनी पिछली फिल्मों की तरह विवेक अग्निहोत्री ने फिल्म को विज़ुअल्स की बजाय संवादों के माध्यम से आगे बढ़ाने की कोशिश की है. संवाद सच को इतने करीब और प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त करते हैं कि वह मुहावरे जैसे लगने लगते हैं. ‘साइंस भी एक पॉलिटिक्स है’, ‘सफलता रावण को खोजने में नहीं उसे मारने में है’, ’सच सुनने का समय आया तो सब सो गए’, ‘ये साइंस वॉर नहीं, इन्फो वॉर है’, ‘ये नैरेटिव कौन बना रहा है कि इंडिया कैन नॉट डू इट’…. जैसे संवाद दर्शकों की स्मृति पर तो प्रभाव छोड़ते हैं, उस शब्दावली और युद्ध से भी दर्शकों का परिचय कराते हैं, जिससे भारत पिछले कुछ दशकों से लड़ रहा है.

वास्तव में यह फिल्म हायब्रिड वॉरफेयर के दौर में भारतीय पक्ष को रखने की संजीदगी भरा प्रयास है. भारत अपनी निरंतर मजबूत होती वैश्विक स्थिति के बीच प्रतिस्पर्धी राष्ट्रों के हायब्रिड वॉर का भी सामना कर रहा है. इस युद्ध में सूचना को केन्द्रीयता प्राप्त होती है.

भारत के विरुद्ध अब तक के सबसे गम्भीर हायब्रिड अटैक कोरोना काल में किए किए गए. कोरोना काल में फेक न्यूज़ के माध्यम से जिस तरह से राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई, राष्ट्रीय नीति-निर्णय को पंगु बनाने के प्रयास हुए, अफरातफरी और भय का माहौल पैदा कर दवाइयों की अनावश्यक मांग की गई, उसका अकादमिक मूल्यांकन होना अभी ही बाकी है. झूठ और अर्द्धसत्य के इस महाअभियान को अपनी फिल्म का विषय बनाना नि:संदेह साहस और समझ का काम है

(लेखक हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कश्मीर अध्ययन केंद्र में सहायक आचार्य और हायब्रिड वॉरफेयर के विशेषज्ञ हैं.)

डॉ. जयप्रकाश सिंह

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार