विजयनगर साम्राज्य में भारतीय सांस्कृति की धरोहर
विजयनगर साम्राज्य में भारतीय सांस्कृतिक की धरोहर
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विजयनगर साम्राज्य ने भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को बहुत बड़े और महत्वपूर्ण रूप में प्रभावित किया और यह धरोहर उसके स्वाराज्य के क्षेत्र में विकसित हुआ। इसका साम्राज्य दक्षिण भारत के कई भागों को शामिल करता था, और विभिन्न स्थलों पर उन्होंने कला, वास्तुकला, और साहित्य के क्षेत्र में अपना स्वाधीन रूप से विकसित स्थान प्राप्त किया।
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द्रविड़ स्थापत्य कला: विजयनगर साम्राज्य ने अपने प्रमुख मंदिरों, गणपति रथ, और अन्य भवनों के निर्माण में द्रविड़ स्थापत्य कला का महत्वपूर्ण योगदान किया। इसका प्रमुख लक्षण होता है विशेष रूप से विशाल गोपुरम्स (मंदिर के द्वारके) और दृढ़ कार्यकला के रखवाले मूर्तियां।
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भाषा और साहित्य: साम्राज्य के दौरान, संस्कृत साहित्य का प्रसार हुआ और भाषा का विकास हुआ। विजयनगर साम्राज्य के राजा और पंडितों ने संस्कृत भाषा में ग्रंथ और कविताएँ लिखीं और प्रोत्साहित किए।
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म्यूजिक और नृत्य: साम्राज्य के कला और संस्कृति के क्षेत्र में संगीत और नृत्य का महत्वपूर्ण योगदान था। कर्नाटक संगीत की प्राचीन परंपरा इस समय विकसित हुई थी।
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सिल्पकला: विजयनगर साम्राज्य ने चित्रकला, मुरल पेंटिंग, और आधारित कलाओं में भी अपना योगदान दिया। उन्होंने अपने मंदिरों और प्राचीन भवनों को भव्यता से सजाया।
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धर्मिक प्रथाएँ: विजयनगर साम्राज्य में विभिन्न धर्मों के अनुयायी रहते थे, और यहां पर हिन्दू धर्म, जैन धर्म, और वीरशैव धर्म के मंदिर थे।
विजयनगर साम्राज्य की सांस्कृतिक धरोहर ने भारतीय संस्कृति को समृद्धि और गरिमा दिलाई और इसका प्रभाव उसके बाद के कला, साहित्य, और संस्कृति पर भी दिखाई दिया। इसके अधिकारी और साहसी शासकों ने भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए और इसे समृद्ध किया।
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