फांसी देने का चलन किस देश ने शुरू किया, भारतीय कानून में कब जुड़ी? नर्स निमिषा मामले से शुरू हुई चर्चा

Nimisha Priya Hanging in Yeman: यमन में भारतीय नर्स निमिषा की फांसी टाल दी गई है. फांसी को रोकने के लिए प्रयास जारी हैं, इस बीच यह चर्चा भी शुरू हो गई है कि दुनिया में फांसी की सजा की शुरुआत कब हुई? भारतीय कानून का हिस्सा कब बनी? जब फांसी नहीं दी जाती थी तब कैसे दी जाती थी मौत की सजा?

Jul 16, 2025 - 19:11
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फांसी देने का चलन किस देश ने शुरू किया, भारतीय कानून में कब जुड़ी? नर्स निमिषा मामले से शुरू हुई चर्चा
फांसी देने का चलन किस देश ने शुरू किया, भारतीय कानून में कब जुड़ी? नर्स निमिषा मामले से शुरू हुई चर्चा

भारतीय नर्स निमिषा केस ने एक बार फिर से फांसी को चर्चा में ला दिया है. निमिषा को यमन में फांसी की सजा सुनाई गई है. 16 जुलाई यानी आज उसे फांसी होनी थी, जो टाल दी गई है. उसे बचाने की गुहार लेकर एक मामला भारतीय सुप्रीम कोर्ट में है, जिस पर आगामी 18 जुलाई को सुनवाई तय है. इस बीच कूटनीतिक स्तर पर तथा धार्मिक स्तर पर भी प्रयास चल रहे हैं कि किसी तरह उसकी फांसी टल जाए. आगे क्या होगा, कैसे होगा, यह सब कुछ भविष्य तय करेगा.

फिलहाल इस केस के बहाने में जान लेते हैं कि दुनिया में फांसी की सजा की शुरुआत कब हुई? भारतीय कानून का हिस्सा कब बनी? जब फांसी नहीं दी जाती थी तब कैसे दी जाती थी मौत की सजा?

सबसे पुराना तरीका है फांसी

फांसी पर लटकाना दुनिया की सबसे पुरानी और चर्चित मृत्युदंड के तरीकों में से एक है. इसका इतिहास हजारों साल पुराना है. प्राचीन सभ्यताओं मिस्र, ग्रीस, रोम में अपराधियों को मौत की सजा देने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाए जाते थे. इनमें पत्थर मारना, जहर देना, सिर कलम करना, आग में जलाना और फांसी देना आदि शामिल था.

Yemen Nimisha

यमन में बेहद क्रूर तरीके से दी जाती है मौत की सजा.

फारस में मिलता है फांसी का पहला उल्लेख

फांसी का सबसे पहला लिखित उल्लेख प्राचीन फारस (ईरान) में मिलता है, जहां अपराधियों को सार्वजनिक रूप से फांसी दी जाती थी ताकि समाज में डर बना रहे. मध्यकालीन यूरोप में भी फांसी आम सजा थी, खासकर चोरी, हत्या, देशद्रोह जैसे अपराधों के लिए. इंग्लैंड में 10वीं सदी के आसपास फांसी को औपचारिक रूप से कानूनी सजा के रूप में अपनाया गया.

भारत में फांसी की सजा की शुरुआत

आधुनिक भारत में फांसी की सजा का औपचारिक प्रावधान ब्रिटिश शासन के दौरान हुआ. हालांकि, प्राचीन भारत में भी मृत्युदंड की व्यवस्था थी, लेकिन वह राजा के विवेक और सामाजिक परिस्थितियों पर निर्भर करती थी. मनुस्मृति, अर्थशास्त्र, और अन्य ग्रंथों में मृत्युदंड का उल्लेख मिलता है, लेकिन फांसी का तरीका उतना प्रचलित नहीं था.

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 18वीं सदी में भारतीय दंड संहिता लागू की, जिसमें फांसी को मौत की सजा के रूप में शामिल किया गया. हत्या, देशद्रोह, बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान किया गया था.

आजादी के बाद भी भारतीय संविधान ने फांसी की सजा को बरकरार रखा, लेकिन इसे रेयरेस्ट ऑफ द रेयर यानी सबसे दुर्लभ मामलों में ही लागू करने की नीति अपनाई गई.

Nimisha Priya Hanging In Yeman

जब फांसी नहीं थी, तब कैसे दी जाती थी मौत की सजा?

फांसी से पहले, भारत समेत दुनिया के कई हिस्सों में मौत की सजा देने के कई तरीके थे. प्राचीन भारत में अपराध की प्रकृति के अनुसार सजा दी जाती थी, जैसे सिर कलम करना, पत्थर मारना, जहर देना, हाथी के पैरों तले कुचलवाना, या आग में जलाना आदि. मुगल काल में भी अपराधियों को मौत की सजा देने के लिए सिर कलम करना, सूली पर चढ़ाना, या हाथी से कुचलवाना आम था. यूरोप में भी गिलोटिन, फायरिंग स्क्वाड, और फांसी जैसे तरीके अपनाए जाते थे. अमेरिका में भी इलेक्ट्रिक चेयर, गैस चैंबर, और घातक इंजेक्शन जैसे आधुनिक तरीके बाद में विकसित हुए.

जीवन का अधिकार और फांसी

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत किसी को जीवन का अधिकार है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में कहा है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के तहत किसी को मौत की सजा दी जा सकती है. साल 1973 में आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) में संशोधन कर यह प्रावधान किया गया कि फांसी केवल ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ मामलों में ही दी जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने ‘बच्चन सिंह बनाम पंजाब राज्य’ (1980) केस में इस सिद्धांत को स्थापित किया.

निमिषा केस से उठते सवाल

हाल ही में केरल की निमिषा को यमन में फांसी की सजा सुनाए जाने की खबर ने देश भर में बहस छेड़ दी है. निमिषा पर यमन में अपने बिजनेस पार्टनर की हत्या का गंभीर आरोप है. लेकिन इस केस की चर्चा दो कारणों से देश में हो रही है. पहला, कुछ लोग इस केस को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं और यमन में उसे बचाने की गुहार लगाई है. दूसरा, भारत में भारत में भी फांसी की सजा अभी भी कानून में है. निमिषा केस ने एक बार फिर इस मुद्दे को चर्चा में ला दिया है कि क्या फांसी की सजा न्यायसंगत है, क्या यह अपराध रोकने में कारगर है, और क्या इसे जारी रखना चाहिए?

भारतीय कानून में फांसी की सजा की वर्तमान स्थिति

सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी कुमार दुबे के मुताबिक, देश में अंग्रेजों का बनाया कानून भारतीय दंड संहिता (IPC) भले ही खत्म हो गया है, उसकी जगह भारतीय न्याय संहिता ने ले ली है लेकिन फांसी की सजा का प्रावधान नए कानूनों में भी है. इसे हटाया नहीं गया है. गंभीर अपराधों के लिए इसमें भी फांसी का प्रावधान है.

भारतीय कानून में किस अपराध के लिए फांसी?

हत्या: IPC की धारा 302 की तरह, BNS की धारा 101 में भी हत्या के लिए मृत्युदंड या आजीवन कारावास का प्रावधान है.

सामूहिक बलात्कार: IPC की धारा 376D की तरह, BNS की धारा 69(2) में सामूहिक बलात्कार के लिए 20 साल तक की कैद या आजीवन कारावास का प्रावधान है, लेकिन पीड़िता की मृत्यु मामले में मृत्युदंड की सजा मिल सकती है.

आतंकवादी कृत्य: BNS में आतंकवादी कृत्यों के लिए भी मृत्युदंड का प्रावधान है, खासकर यदि ऐसे कृत्यों के परिणामस्वरूप किसी की मृत्यु होती है.

देशद्रोह: नए कानून में देशद्रोह शब्द को हटाकर ‘भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कार्य’ के रूप में परिभाषित किया गया है, इसके लिए भी गंभीर सजा का प्रावधान है, जिसमें कुछ मामलों में मृत्युदंड भी शामिल हो सकता है.

हां, पूर्व की व्यवस्था ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ का सिद्धांत और राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर करने का अधिकार BNS के तहत भी लागू रहेगा.

क्या है रेयरेस्ट ऑफ द रेयर सिद्धांत?

सुप्रीम कोर्ट ने 1980 के ‘बच्चन सिंह बनाम पंजाब राज्य’ केस में यह तय किया कि फांसी की सजा केवल ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ केस में ही दी जाएगी. इसका मतलब है कि जब अपराध इतना जघन्य, क्रूर और समाज के लिए खतरा हो कि आजीवन कारावास भी कम लगे, तभी फांसी दी जा सकती है.

फांसी की सजा पर अमल

भारत में फांसी की सजा बहुत कम मामलों में दी जाती है और उससे भी कम मामलों में अमल में लाई जाती है. साल 2000 के बाद से अब तक केवल कुछ ही लोगों को फांसी दी गई है. जैसे अफजल गुरु, याकूब मेनन, निर्भया केस के दोषी आदि कुछ मामले हैं.

हाल की बहसें और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने हाल के फैसलों में यह भी कहा है कि फांसी की सजा सुनाते समय अपराधी की सामाजिक, मानसिक, और पारिवारिक स्थिति का भी ध्यान रखा जाए. कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि फांसी की सजा सुनाने के बाद दोषी को पर्याप्त समय और कानूनी सहायता मिलनी चाहिए, ताकि वह दया याचिका या पुनर्विचार याचिका दायर कर सके. कई मानवाधिकार संगठन और कुछ न्यायाधीश भी फांसी की सजा को खत्म करने की वकालत कर रहे हैं, लेकिन संसद ने अब तक इसे हटाया नहीं है.

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