संघ शताब्दी वर्ष – संघ और सेवा

आपातकाल के बाद संघ का नाम और काम बढ़ने पर सेवा कार्यों को संगठित रूप दिया गया। तत्कालीन सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस का इस पर बहुत जोर था। उन्हीं की प्रेरणा से दिल्ली के जहांगीरपुरी में पहला सेवा केंद्र शुरू हुआ। इसके बाद हर प्रांत में ‘सेवा भारती’ नाम से संगठन बने। ‘दलित’ शब्द कब, […] The post संघ शताब्दी वर्ष – संघ और सेवा appeared first on VSK Bharat.

Oct 17, 2025 - 07:44
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आपातकाल के बाद संघ का नाम और काम बढ़ने पर सेवा कार्यों को संगठित रूप दिया गया। तत्कालीन सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस का इस पर बहुत जोर था। उन्हीं की प्रेरणा से दिल्ली के जहांगीरपुरी में पहला सेवा केंद्र शुरू हुआ। इसके बाद हर प्रांत में ‘सेवा भारती’ नाम से संगठन बने।

‘दलित’ शब्द कब, कहां और क्यों प्रचलित हुआ, इस पर कई मत हैं। कहते हैं कि भारत में इस्लामी हमलावरों ने कुछ लोगों का दलन और दमन कर उन्हें घृणित कामों में लगाया। सैकड़ों साल तक ऐसा होने पर ये ‘दलित’ कहलाने लगे, जबकि ये प्रखर हिन्दू थे। इनमें से अधिकांश क्षत्रिय थे और इनके राज्य भी थे, पर फिर इनकी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक दशा बिगड़ती गई और ये अलग-थलग पड़ गए। अंग्रेजों ने षड्यंत्रपूर्वक इन भेदों को बढ़ाया। आजकल सरकारी भाषा में इन्हें ‘अनुसूचित जाति’ कहते हैं। आजादी के बाद सबने सोचा था कि यह स्थिति बदलेगी, पर वोट के लालची सत्ताधीशों ने कुछ नहीं किया। अब चूंकि यह बहुत बड़ा वोट बैंक है, इसलिए सब दल एक-दूसरे को ‘दलित विरोधी’ बताते हैं। कई नेता इस विषय में भाजपा को कोसते हुए संघ को भी उसमें लपेट लेते हैं। यद्यपि इससे उन्हीं का नुकसान हो रहा है।

संघ यद्यपि इस सामाजिक विभाजन को ठीक नहीं मानता; पर जमीनी सच तो यही है। इसलिए ‘जाति तोड़ो’ जैसे राजनीतिक आंदोलन चलाने की बजाय संघ उनकी आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक स्थिति सुधारने का प्रयास कर रहा है। अपने गली-मोहल्ले के लोगों के सुख-दुख में सहभागी होना स्वयंसेवक का स्थायी स्वभाव है। इसीलिए विरोधी विचार वाले भी उसका आदर करते हैं। आपातकाल के बाद संघ का नाम और काम बढ़ने पर सेवा कार्यों को संगठित रूप दिया गया।

तृतीय सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस का इस पर बहुत जोर था। 1989 में संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार के जन्मशती वर्ष का केन्द्रीय विचार सेवा ही था। अतः संघ की रचना में भी ‘सेवा विभाग’ शामिल कर हर राज्य में ‘सेवा भारती’ आदि संस्थाएं गठित हुईं। हालांकि दिल्ली में सेवा भारती का गठन 1979 में ही हो गया था। इससे पूर्व 1977 में दिल्ली में श्री बालासाहब देवरस ने स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए सेवा कार्य करने का आह्वान किया था। इसके बाद उन्होंने स्वयं 1977 में ही दिल्ली की जहांगीरपुरी में पहले बालवाड़ी केंद्र का शुभारंभ किया। कार्य बढ़ने पर दिल्ली में सेवा भारती की स्थापना हुई।

डॉ. हेडगेवार के जन्मशती वर्ष से अन्य राज्यों में भी सेवा भारती की अलग-अलग इकाइयां गठित हुईं। ये संस्थाएं नगर तथा गांवों की निर्धन बस्तियों में शिक्षा, चिकित्सा तथा संस्कार के काम करती हैं। डॉ. हेडगेवार जन्मशती के अवसर पर ‘सेवा निधि’ एकत्र कर कार्यकर्ताओं की एक विशाल मालिका तैयार की गई। इनके बल पर आज स्वयंसेवक सवा लाख से अधिक सेवा प्रकल्प चला रहे हैं। कुछ संस्थाएं ग्राम्य विकास के क्षेत्र में सक्रिय हैं। संघ के अलावा भी देश में हजारों संस्थाएं सच्चे मन से सेवा में संलग्न हैं। इनमें समन्वय रहे तथा वे एक-दूसरे के अनुभव का लाभ उठाएं, इसके लिए ‘राष्ट्रीय सेवा भारती’ का गठन हुआ है। अब हर राज्य में ‘सेवा संगम’ आयोजित होते हैं। इनमें सैकड़ों संस्थाएं अपने स्टॉल तथा प्रदर्शनी आदि लगाती हैं। इससे छोटी संस्थाओं को भी पहचान मिलती है। हर पांच साल में इनका राष्ट्रीय सम्मेलन भी होता है।

अधिकांश हिन्दू मंदिर तथा धार्मिक संस्थाएं भी कुछ सेवा के काम करती हैं। इन्हें जोड़ने के लिए कई राज्यों में हिन्दू आध्यात्मिक मेले शुरू हुए हैं। सेवा निजी ही नहीं, सामाजिक साधना भी है। अतः कई संस्थाएं बनाकर स्वयंसेवक समाज की जरूरत के अनुसार काम कर रहे हैं। वनवासी कल्याण आश्रम, विद्या भारती, सेवा भारती, विश्व हिन्दू परिषद, भारत विकास परिषद, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, दीनदयाल शोध संस्थान, भारतीय कुष्ठ निवारक संघ, विवेकानंद केंद्र, भाउराव देवरस सेवा न्यास आदि का विशेष योगदान है। इनके द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास से रोजगार, ग्राम एवं कृषि विकास, कुरीति निवारण, नारी उत्थान और स्वावलम्बन, गो संवर्धन जैसे हजारों प्रकल्प चलाए जा रहे हैं।

अनुसूचित जाति और जनजातियां इनसे विशेष रूप से लाभान्वित होती हैं। संघ की शाखा में हर जाति और वर्ग के स्वयंसेवक आते हैं। उनकी सक्रियता के आधार पर उन्हें संघ में जिम्मेदारी भी दी जाती है। इसलिए हर नगर, खंड, जिले, विभाग और प्रांत से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक सब जाति-बिरादरी के कार्यकर्ता हैं। यह सब स्वाभाविक प्रक्रिया के अन्तर्गत होता है। इसलिए संघ इसका ढोल नहीं पीटता। स्वयंसेवक जिस निर्धन बस्ती में काम करते हैं, वहां अपनी राजनीतिक दुकान लगाए नेता उनका विरोध करते हैं, पर कुछ समय बाद बस्ती वाले उन नेताओं को ही भगा देते हैं क्योंकि सेवा के कार्य से उस बस्ती वालों का ही भला होता है। राजनेता और संघ विरोधी चाहे जितना चिल्लाएं; पर संघ का काम इन बस्तियों में लगातार बढ़ रहा है।

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