भारतीय समाज में सकारात्मक और रचनात्मक परिवर्तन लाना है – आलोक कुमार जी

हल्द्वानी, उत्तराखंड। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य पर रविवार को एमबी इंटर कॉलेज मैदान में शताब्दी शंखनाद का आयोजन किया गया। स्वयंसेवकों ने बांसुरी वादन के साथ कुमाऊंनी लोक गीत दैणा होया खोली का गणेशा हे… की मधुर ध्वनि पर योग और आसन का प्रदर्शन किया। शताब्दी शंखनाद कार्यक्रम में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय […] The post भारतीय समाज में सकारात्मक और रचनात्मक परिवर्तन लाना है – आलोक कुमार जी appeared first on VSK Bharat.

Oct 6, 2025 - 15:30
 0

हल्द्वानी, उत्तराखंड।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य पर रविवार को एमबी इंटर कॉलेज मैदान में शताब्दी शंखनाद का आयोजन किया गया। स्वयंसेवकों ने बांसुरी वादन के साथ कुमाऊंनी लोक गीत दैणा होया खोली का गणेशा हे… की मधुर ध्वनि पर योग और आसन का प्रदर्शन किया।

शताब्दी शंखनाद कार्यक्रम में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह आलोक कुमार जी ने कहा कि यह दिन अधर्म पर धर्म, अन्याय पर न्याय और असत्य पर सत्य की जीत का दिन है। महिषासुर से लेकर रावण का वध आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को हुआ। भारत की परंपरा में इस दिन शस्त्रों की पूजा का विधान होने के साथ ही राजाओं द्वारा सीमा उलंघन कर दूसरे की सीमा में प्रवेश के रूप में भी मनाया जाता था। तभी से शस्त्र पूजन कर राज्य विस्तार की परंपरा प्रारम्भ हुई।

यह माना जाता है कि विजयादशमी के दिन प्रारम्भ किये जाने वाले कार्य में विजय निश्चित है। इसी भाव के साथ डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार जी ने संघ की स्थापना के लिए चुना। संघ की स्थापना को 100 पूरे हो चुके हैं और 101वें वर्ष में प्रवेश हो चुका है। स्वयंसेवकों ने इन वर्षों में देश और समाज के लिए जो किया, वह एक लंबी गाथा है। उसे कहना भी उचित नहीं है क्योंकि संघ में निश्वार्थ भाव से समाज और देश की सेवा करना सिखाया जाता है, इसलिए सेवा को गाया नहीं जाता है, समाज स्वतः समझ लेता है।

आलोक जी ने कहा कि 100 वर्ष के दौरान क्या कर पाए और क्या नहीं, उसे छोड़कर जो काम अभी अधूरे हैं, आगे उन्हें पूरा करने का संकल्प लिया गया है। जैसा समाज होना चाहिए, अभी वैसा नहीं बन पाया है। हिन्दू समाज में अभी भी कई सारी कुरीतियां हैं, लोगों में अभी भी जैसी जागरूकता होनी चाहिए, वैसी नहीं है। समाज को संगठित करने, सेवा और स्वावलंबन आदि विभिन्न पहलुओं को देखते हुए पंच परिवर्तन के बिंदु बनाए गए। जिसमें कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, स्वदेशी, पर्यावरण और नागरिक कर्तव्य बोध शामिल हैं। पंच परिवर्तन के विषय को लेकर संघ अभी 5.25 लाख परिवारों तक पहुंचा है, लेकिन आगामी वर्षों में प्रत्येक घर तक पहुंचने का लक्ष्य रखा गया है।

आलोक जी ने कहा कि हम परम वैभव की ओर बढ़ रहे हैं और इसमें समाज के प्रत्येक नागरिक का योगदान है। उन्होंने कहा कि अगले 10 से 15 वर्षों में हमने देश में पंच परिवर्तन के लिए समाज में काम करना है और इसकी शुरुआत सबसे पहले स्वयं से करनी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ‘पंच परिवर्तन’ पांच प्रमुख सामाजिक और वैचारिक बदलावों का एक कार्यक्रम है, जिसे हर घर तक पहुंचाना है और जिसका उद्देश्य भारतीय समाज में सकारात्मक और रचनात्मक परिवर्तन लाना है।

  1. कुटुंब-प्रबोधन

कुटुंब (परिवार) को समाज की सबसे छोटी लेकिन सबसे प्रभावी इकाई माना गया है। ऋग्वेद और अथर्ववेद में परिवार को आनंद और समृद्धि का केंद्र बताया गया है। परिवार में हिन्दू जीवन-शैली, संस्कार और कर्तव्यों का पोषण कर ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना को जीवित रखना। संघ का मानना है कि स्वस्थ परिवार से ही स्वस्थ समाज और अंततः एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण संभव है।

प्रत्येक परिवार को सामाजिक शिक्षा और संस्कारों की पहली इकाई मानकर परिवार के सदस्यों के बीच संवाद, संस्कार, सहयोग को बढ़ावा देना आवश्यक है। तभी हम दादा, दादी, ताऊ, चाचा, बुआ आदि रिश्तों को संजो कर रख पाएंगे। पांच आयामों के जरिए संघ सामाजिक समरसता, पर्यावरण सुरक्षा, देशभक्ति, परिवार और राष्ट्रीय कर्तव्यों को समाज के हर स्तर पर मजबूत करना चाहता है। यही हमारा संघ शताब्दी वर्ष के बाद की योजना है।

  1. सामाजिक समरसता –

सामाजिक समरसता को संघ के विचार का केंद्रीय बिंदु माना गया है। संघ का मानना है कि हिन्दू समाज की स्वाभाविक विशेषता समरसता रही है, लेकिन समय के साथ जाति-भेद, ऊंच-नीच और अस्पृश्यता जैसी विकृतियां उत्पन्न हुईं, जिससे समाज के कुछ वर्गों को अन्याय और अपमान सहना पड़ा और हमारे पहाड़ों में आज भी यह समाज में व्याप्त है। इस बुराई को त्याज्य मानते हुए संघ का आग्रह है कि समाज में सब समान हैं – इस भावना से सभी को जोड़कर एकत्व की स्थापना की जाए। संतों और समाज सुधारकों ने भी इसे पाप बताया है, और इसका समाप्त होना अत्यंत आवश्यक है।

  1. स्व-आधारित जीवन

हमारा खान, पान, भेष आदि स्वदेशी होना चाहिए। विदेशी दासता से मुक्त होकर अब स्व-भाषा, स्व-भूषा, स्व-संस्कृति और स्वदेशी उद्योगों पर बल देना आवश्यक है। आत्मनिर्भरता का अर्थ दुनिया से अलग होना नहीं है, बल्कि स्वाभिमान के साथ व्यापार और उत्पादन करना है। संघ रक्षा, विज्ञान और तकनीक में आत्मनिर्भर भारत को प्रेरणास्रोत मानता है। स्थानीय व कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन देकर रोजगार और आत्मनिर्भरता दोनों को बढ़ाना इस परिवर्तन का मुख्य ध्येय है।

  1. पर्यावरण संरक्षण

दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन का असर दिखाई दे रहा है, आने वाले समय में प्राकृतिक आपदाएं बहुत होंगी। ऐसा भविष्य वक्ताओं ने संकेत दिए हैं। धरती पर जितनी आबादी होनी चाहिए, उससे अधिक हो गई है। प्रकृति अपना संतुलन खुद बनाती है। प्रकृति के प्रति उत्तरदायित्वपूर्ण जीवनशैली अपनाना और पृथ्वी, जल, वायु जैसे संसाधनों की रक्षा करना, जल, जंगल जमीन को कैसे सम्भल कर रखे, ऐसी चर्चा और प्रयास, परिवार में समाज में होने चाहिए। संघ मानता है कि मानव जीवन पंचतत्वों (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश) पर आधारित है, और इनका संतुलन बिगड़ने से ही आज की पर्यावरणीय चुनौतियाँ खड़ी हुई हैं। भारतीय परंपरा में पेड़-पौधों और प्रकृति की पूजा का जो भाव है, वही सच्चे अर्थों में पर्यावरण संरक्षण का आधार है। संघ हर नागरिक से जल-बचत, वृक्षारोपण, स्वच्छता और ऊर्जा-संरक्षण को अपना कर्तव्य मानने का आग्रह करता है। यही भाव नव राष्ट्र-निर्माण की आवश्यकता है।

  1. नागरिक कर्तव्य बोध

संविधान ने जहाँ हमें अधिकार दिए हैं, वहीं मौलिक कर्तव्यों का भी आग्रह किया है। राष्ट्रभक्ति केवल बड़े अवसरों पर नहीं, बल्कि दैनिक आचरण में झलकनी चाहिए – जैसे पानी-बिजली की बचत, ईंधन का संयमित उपयोग, हेलमेट का नियमित उपयोग, अनुशासन, ईमानदारी और शिष्टाचार भी राष्ट्रसेवा है। संघ का मानना है कि अच्छे और जिम्मेदार नागरिक ही किसी भी देश की आंतरिक शक्ति और स्थायी विकास का आधार होते हैं।

इन पाँचों परिवर्तनों को समाज जीवन में समय के अनुकूल लाकर ही हम राष्ट्रहित के महान कार्य को समग्रतापूर्वक कर सकते हैं।

 

The post भारतीय समाज में सकारात्मक और रचनात्मक परिवर्तन लाना है – आलोक कुमार जी appeared first on VSK Bharat.

UP HAED सामचार हम भारतीय न्यूज़ के साथ स्टोरी लिखते हैं ताकि हर नई और सटीक जानकारी समय पर लोगों तक पहुँचे। हमारा उद्देश्य है कि पाठकों को सरल भाषा में ताज़ा, विश्वसनीय और महत्वपूर्ण समाचार मिलें, जिससे वे जागरूक रहें और समाज में हो रहे बदलावों को समझ सकें।