शंकराचार्य प्राण प्रतिष्ठा में क्यों नहीं हो रहे समिलित?

सनातन हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए आदि शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की थी। शंकराचार्य का शाब्दिक अर्थ होता है 'शंकर के मार्ग के शिक्षक'। एक धार्मिक उपाधि है। हिंदू धर्म में सर्वोच्च धर्मगुरु शंकराचार्य ही माने जाते हैं।

Jan 18, 2024 - 00:57
Jan 18, 2024 - 08:22
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शंकराचार्य प्राण प्रतिष्ठा में क्यों नहीं हो रहे समिलित?

शंकराचार्य प्राण प्रतिष्ठा में क्यों नहीं हो रहे समिलित?

वरिष्ठ पत्रकार करण थापर से चर्चा वार्ता में ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने बताया कि, उन्हें रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के लिए निमंत्रण भेजा ही नहीं गया है। साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट तौर पर बताया कि, अगर उन्हें आमंत्रित किया भी गया होता, तब भी वहां नहीं जाते। उन्होंने कहा, "मैं बस भगवन के दरबार से आए आमंत्रण का सम्मान करते हुए अयोध्या तक चला जाता, लेकिन कार्यक्रम में शामिल नहीं होता।"  

ज्योतिर्मठ शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने आगे कहा, "मैं नहीं जाना चाहता। क्योंकि अगर शंकराचार्यों के सामने शास्त्रों के विपरीत कोई आचरण होता है, तो वह स्वीकार नहीं किया जा सकता है। हम लोग यह चाहते हैं कि, जो भी धर्म का कार्य हो, वह शास्त्रों के निर्देश अनुसार हो।"

क्या मंदिर निर्माण कार्य पूर्ण हुए बिना की जा सकती है, प्राण प्रतिष्ठा?

इस सवाल के जवाब में अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने वरिष्ठ पत्रकार करण थापर को बताते हैं, "देखिए, अपने जितने भी वास्तुशास्त्र के ग्रंथ हैं, किसी को भी उठा लीजिए। वहां स्पष्ट रूप से कहा गया है कि, मंदिर भगवान का शरीर होता, मूर्ति उसकी आत्मा होती है। जैसे हमारे शरीर में अन्यत्र अंग होते हैं, वैसे ही मंदिर में अंगो की कल्पना की गई है। मंदिर का कलश भगवान का सिर होता है। मंदिर का शिखर भगवान की आंखें होती हैं। प्राण प्रतिष्ठा वाले दिन सभी अंगों की प्रतिष्ठा होती है। अभी वहां सिर बना नहीं, आंख बना नहीं, मुख बना नहीं, बाल (ध्वजा) बना नहीं। ऐसी स्थिति में जब सिर बना ही नहीं, बिना सिर का केवल धड़ बना है और उसी धड़ में आप कहते हैं कि, हम प्राण डाल देंगे। ये कितना गलत होगा। ये कोई सामान्य गलती नहीं है।" शंकराचार्य ने यह भी स्पष्ट किया कि, केवल गर्भगृह तैयार होने पर प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो सकती है।

"प्राण प्रतिष्ठा का महूर्त 22 जनवरी को किसी पंचांग में नहीं है"

शंकराचार्य ने 22 जनवरी के मुहूर्त की प्राण प्रतिष्ठा से संबंधित सवाल पर यह कहा कि वह काशीजी के विद्वानों को मानते हैं, लेकिन पूरे देश में किसी ने उस मुहूर्त को नहीं पकड़ा है। उन्होंने कहा कि यदि मुहूर्त इतना श्रेष्ठ था, तो बाकी ज्योतिषी भी उसे पहचान सकते थे। क्या पूरे देश के किसी ज्योतिषी ने इस मुहूर्त को पकड़ा ही नहीं। केवल एक व्यक्ति आ गया और उसने मुहूर्त को पकड़ लिया। अगर यह मुहूर्त इतना उत्तम था तो बाकी ज्योतिष क्यों नहीं पकड़ पाए। हमने तो बहुत सारे पंचांग मंगा कर देख लिया, विश्लेषण किया। पर मुझे तो 22 जनवरी को मुहूर्त नहीं दिखा। जिन्होंने यह मुहूर्त निकाला है, वह काशी जी यानि वाराणसी के रहने वाले हैं। अच्छे विद्वान और सज्जन व्यक्ति हैं। हम भी उनका आदर सम्मान करते हैं। हमने उनका एक इंटरव्यू देखा। जिसमें वह बताते हैं कि, उनसे जनवरी महीने में मुहूर्त निकालने को कहा गया। इसलिए उन्होंने मुहूर्त निकाल दिया।"

शंकराचार्य आगे कहते हैं, "इसका अर्थ है कि, कोई उन्हें प्रेरित कर रहा था कि आपको इसी टाइम फ्रेम में मुहूर्त देना है। उसमें उन्हें जो अच्छा लगा, उन्होंने बता दिया। इसमें मैं ज्योतिषी का दोष नहीं मानता।"  

शंकराचार्य का मतलब क्या?

सनातन हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए आदि शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की थी। शंकराचार्य का शाब्दिक अर्थ होता है 'शंकर के मार्ग के शिक्षक'। एक धार्मिक उपाधि है। हिंदू धर्म में सर्वोच्च धर्मगुरु शंकराचार्य ही माने जाते हैं।

कहां-कहां मठ और कौन हैं शंकराचार्य?

हिंदू धर्म की दार्शनिक व्याख्या करने वाले आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित मठ वर्तमान भारत के चार अलग-अलग राज्यों (कर्नाटक, ओडिशा, गुजरात और उत्तराखंड) में हैं।

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राज्य-मठ शंकराचार्य

कर्नाटक श्रृंगेरी मठ शंकराचार्य भारतीतीर्थ महाराज

ओडिशा (पुरी) गोवर्धन मठ शंकराचार्य निश्चलानन्द सरस्वती महाराज

गुजरात (द्वारका) शारदा मठ शंकराचार्य सदानंद महाराज

उत्तराखंड (बदरिका) ज्योतिर्मठ शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद महाराज

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शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती का बयान:

4 जनवरी को पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंदिर का उद्घाटन करेंगे, वह मूर्ति को छूएंगे, तो मैं वहां क्या करूंगा? खड़े होकर ताली बजाऊंगा? 13 जनवरी को निश्चलानंद सरस्वती ने कहा था कि, धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में राजनीतिक हस्तक्षेप उचित नहीं है।

टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक शारदा पीठ यानि द्वारका, गुजरात के शंकराचार्य सदानंद महाराज ने 12 जनवरी को मीडिया से बातचीत में प्राण प्रतिष्ठा में शामिल न होने कारण बताया। उन्होंने कहा था, "अगर कोई धार्मिक स्थल किसी विवाद में फंसा हो और उस पर धर्म विरोधी ताकतों का कब्जा हो, तो वहां पूजा करना प्रतिबंधित होता है।"

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Abhishek Chauhan भारतीय न्यूज़ का सदस्य हूँ। एक युवा होने के नाते देश व समाज के लिए कुछ कर गुजरने का लक्ष्य लिए पत्रकारिता में उतरा हूं। आशा है की आप सभी मुझे आशीर्वाद प्रदान करेंगे। जिससे मैं देश में समाज के लिए कुछ कर सकूं। सादर प्रणाम।