राज्य को अनुसूचित जाति की सूचियों में छेड़छाड़ का हक नहीं: सुप्रीम कोर्ट

तांती-तंतवा' जाति को अनुसूचित जाति सूची में शामिल करने का बिहार सरकार का प्रस्ताव रद संसद द्वारा बनाए गए कानून के बिना केंद्र सरकार भी नहीं कर सकती अनुसूचित जाति की सूचियों में बदलाव

Jul 17, 2024 - 19:56
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राज्य को अनुसूचित जाति की सूचियों में छेड़छाड़ का हक नहीं: सुप्रीम कोर्ट

राज्य को अनुसूचित जाति की सूचियों में छेड़छाड़ का हक नहीं: सुप्रीम कोर्ट 

तांती-तंतवा' जाति को अनुसूचित जाति सूची में शामिल करने का बिहार सरकार का प्रस्ताव रद संसद द्वारा बनाए गए कानून के बिना केंद्र सरकार भी नहीं कर सकती अनुसूचित जाति की सूचियों में बदलाव, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य को अनुसूचित जाति की सूचियों के साथ छेड़छाड़ का कोई अधिकार नहीं है। शीर्ष अदालत ने बिहार सरकार के 2015 के उस प्रस्ताव को रद कर दिया है जिसके तहत राज्य सरकार ने 'तांती तंतवा' जाति को अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) से हटाकर अनुसूचित जाति सूची में 'पान/सवासी' जाति के साथ शामिल किया गया था।


जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि राज्य सरकार के पास संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत प्रकाशित अनुसूचित जाति की सूची के साथ छेड़छाड़ करने की कोई क्षमता या अधिकार नहीं है। पीठ ने कहा कि राज्य की कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण और संवैधानिक प्रविधानों की अवहेलना करने वाली है। राज्य को उसके द्वारा की गई शरारत के लिए माफ नहीं किया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत सूची में शामिल अनुसूचित जातियों के सदस्यों को वंचित करना गंभीर मुद्दा है।


पीठ ने कहा, अधिसूचना के खंड-1 के तहत निर्दिष्ट अनुसूचित जाति सूची में केवल संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा संशोधन या बदलाव किया जा सकता है। पीठ ने कहा, पटना हाई कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 341 का हवाला दिए बिना पूरी तरह से गलत आधार पर 2015 की अधिसूचना को बरकरार रखकर गंभीर गलती की है। अनुच्छेद 341 के अनुसार राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों के संबंध में जातियों को निर्दिष्ट करने वाले संसद द्वारा बनाए गए कानून के बिना केंद्र सरकार या राष्ट्रपति खंड 1 के तहत जारी अधिसूचना में कोई संशोधन या परिवर्तन नहीं कर सकते हैं।

पीठ ने सोमवार को सुनाए गए अपने फैसले में कहा, हमें यह मानने में कोई झिझक नहीं है कि एक जुलाई, 2015 का प्रस्ताव स्पष्ट रूप से अवैध था क्योंकि राज्य सरकार के पास संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत प्रकाशित अनुसूचित जातियों की सूचियों के साथ छेड़छाड़ करने की कोई क्षमता/ अधिकार/शक्ति नहीं थी। राज्य सरकार का यह कहना कि एक जुलाई, 2015 का प्रस्ताव केवल स्पष्टीकरण था पूरी तरह से अस्वीकार्य है। पीठ
ने कहा कि बिहार सरकार अच्छी तरह से जानती थी कि उसके पास कोई अधिकार नहीं है। इसलिए उसने 2011 में 'तांती-तंतवा' को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने के लिए अपना अनुरोध केंद्र को भेज दिया था। अनुरोध को स्वीकार नहीं किया गया और समीक्षा के लिए वापस कर दिया गया था। इसे अनदेखा करते हुए राज्य ने एक जुलाई, 2015 को सर्कुलर जारी किया।

बिहार सरकार ने एक जुलाई 2015 को अनुसूचित जाति सूची के लाभ को तांती-तंतवा समुदाय तक पहुंचाने के लिए अत्यंत पिछड़ी जातियों (ईबीसी) की सूची में शामिल 'तांती-तंतवा' को अनुसूचित जाति की सूची में दूसरे समुदाय यानी 'पान, सवासी, पनर' के साथ विलय करने की अधिसूचना जारी की थी।

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