असम का शाही कब्रस्थल मैदाम बनेगा विश्व धरोहर
असम के चराईदेव जिले में अहोम राजवंश का शाही कब्रस्थल है, भारत सरकार ने वर्ष 2014 में यूनेस्को के पास भेजा था प्रस्ताव, 21 जुलाई से होने जा रही बैठक में मिल सकती है मान्यता
असम का शाही कब्रस्थल मैदाम बनेगा विश्व धरोहर
विश्व धरोहर समिति की 21 जुलाई से दिल्ली में होने जा रही बैठक में इस बार मैदाम या मोइदाम (असम के शाही कब्रस्थल) को विश्व धरोहर घोषित की जा सकता है। इसके लिए प्रक्रिया पूरी चुकी है। बैठक में इस प्रस्ताव पर मुहर लगने की पूरी संभावना है। भारत सरकार की ओर इस बार की बैठक में यह प्रस्ताव रखा गया है। असम के चराईदेव जिले में ये शाही कब्रस्थल है। यह भारत के महत्वपूर्ण मध्यकालीन आहोम राजवंश के शाही परिजनों के लिए बनी कब्रगाह है। इस स्थल को देखने के लिए अब पर्यटक पहुंच रहे हैं। माना जा रहा है विश्व धरोहर घोषित होने पर पर्यटप के लिहाज से भारत को लाभ मिलेगा।
शाही मैदाम केवल असम राज्य के चराईदेव में चीन से आई ताई-अहोम जनजातियों के राजाओं का कब्र स्थल हैं। इन जनजातियों के राजाओं ने 12वीं से 18वीं ईसवीं के बीच उत्तर-पूर्व भारत में ब्रह्मपुत्र नदी घाटी के विभिन्न हिस्सों में अपनी राजधानी स्थापित की थी। इससे पहले एशिया में किसी कब्रस्थल को विश्व धरोहर घोषित नहीं किया गया है। इसे विश्व धरोहर घोषित कराने के लिए भारत सरकार पिछले 10 वर्षों से कोशिश कर रही है। असम के शिवसागर जिले में स्थित इस मैदाम को विश्व धरोहर घोषित कराने का प्रस्ताव भारत सरकार ने 15 अप्रैल 2014 को यूनेस्को के पास भेजा था। मैदाम को वर्ष 2014 में ही यूनेस्को विश्व धरोहर की अस्थायी सूची में शामिल कर लिया गया था। जनवरी 2023 में इसका भारत की तरफ से आधिकारिक नामांकन किया गया। पहले तकनीकी मिशन टीम आई थी,
जिनसे इस प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी थी। इसका डोजियर तैयार किया था। इसके बाद यूनेस्को के लिए काम कर रही टीम ने यहां का दौरा किया। टीम अपनी रिपोर्ट यूनेस्को को सौंप चुकी है। चाओ लुंग सिउ-का-फा ने 1253 ईसवीं में की थी स्थापना असम का यह चराइदेव मैदाम असम के पुराने राजवंश अहोम से संबंधित है। इसकी स्थापना चाओ लुंग सिउ-का-फा ने 1253 ईसवी में की थी।
इन्हें असम के पिरामिड के रूप में भी जाना जाता है। यह ऐतिहासिक स्थल शिवसागर शहर से लगभग 28 किमी दूर स्थित है। चराइदेव अहोम राजवंश की टीले वाली दफन प्रणाली के रूप में जाना जाता है। यह अहोम सम्राट की कब्रगाह थी और अहोम समुदाय के लिए एक पवित्र स्थान है। अहोम समुदाय से जुड़े लोगों ने 18वीं शताब्दी के हिंदू रीतिरिवाजों से दाह संस्कार की पद्धति को अपनाना शुरू कर दिया था। इन लोगों के लिए चराइदेव का मैदाम पूज्यनीय है।
मिट्टी के टीले के अंदर दो मंजिला होता है मैदाम
मिट्टी के टीले के अंदर मैदाम दो मंजिला होता है, जिसमें धनुषाकार मार्ग से प्रवेश किया जाता है। अर्धगोलाकार मिट्टी के टीले के ऊपर ईंटों और मिट्टी की परतें बिछाई गई है, जहां टीले का आधार एक बहुभुज दीवार और पश्चिम में एक धनुषाकार प्रवेश द्वार से मजबूत किया जाता
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