धार्मिक स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं, धर्मांतरण के लिए नहीं है अधिकार
उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2021 की धारा 3/5(1) के तहत मामला दर्ज है। आरोप है कि उसने एक लड़की को इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर किया और उसका यौन शोषण किया।
हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी: धार्मिक स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं, धर्मांतरण के लिए नहीं है अधिकार
इलाहाबाद: धर्मांतरण के मुद्दे पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। अदालत ने कहा है कि संविधान के तहत मिली धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ धर्म परिवर्तन के लिए नहीं है। यह टिप्पणी हाई कोर्ट ने एक लड़की के जबरन धर्मांतरण के आरोपी अज़ीम की जमानत याचिका खारिज करते हुए की।
मामले का विवरण:
अज़ीम पर बदायूं जिले के कोतवाली पुलिस थाने में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 323/504/506 और उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2021 की धारा 3/5(1) के तहत मामला दर्ज है। आरोप है कि उसने एक लड़की को इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर किया और उसका यौन शोषण किया।
कोर्ट ने कहा है की
न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने अपने आदेश में कहा कि यद्यपि संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपना धर्म मानने और उसका प्रचार करने का अधिकार देता है, यह अधिकार किसी को धर्म परिवर्तन कराने का सामूहिक अधिकार नहीं देता। अदालत ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता दोनों पक्षों—धर्म परिवर्तन करने वाले और धर्मांतरित होने वाले—को समान रूप से प्राप्त होती है।
वकीलों की दलीलें है
याचिकाकर्ता अज़ीम ने दलील दी कि उसे फंसाया गया है और लड़की ने अपनी मर्जी से घर छोड़ा था। उसने सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत दिए गए बयान में शादी की पुष्टि की है। दूसरी ओर, राज्य सरकार के वकील ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि लड़की ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दिए बयान में जबरन इस्लाम कबूल कराने का आरोप लगाया है।
लड़की का बयान पढ़े
लड़की ने अपने बयान में कहा कि अज़ीम और उसके परिवार वाले उस पर इस्लाम स्वीकार करने का दबाव बना रहे थे। उसे बकरीद पर पशु की कुर्बानी देखने के लिए और मांसाहारी भोजन पकाने के लिए मजबूर किया गया। अदालत ने पाया कि लड़की को घर में कैद करके रखा गया और इस्लामी रिवाज अपनाने के लिए मजबूर किया गया।
अदालत का निर्णय जानिए
अदालत ने अज़ीम की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश धर्मांतरण विरोधी कानून का उद्देश्य सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देना और भारत में धर्मनिरपेक्षता की भावना को बनाए रखना है।
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