श्री राम की विनती
तुम्हारा दर्शन हूँ, तुम्हाराआदर्श हूँ , दुखों का संबल हूँ और प्रेम स्पर्श हूँ।
श्री राम की विनती
मैं राम हूँ , मैं तुम्हारी पहचान हूँ,
राष्ट्र का गौरव हूँ, राष्ट्र का मान हूँ।
घट-घट में मैं ही तो बसा हुआ हूँ ,
आती जाती श्वासों का धागा हूँ ।
तुम्हारा दर्शन हूँ, तुम्हाराआदर्श हूँ ,
दुखों का संबल हूँ और प्रेम स्पर्श हूँ।
मानव जीवन का मैं मूल मंत्र हूँ ,
बहती सनातनी धारा अनवरत हूँ।
मुझे अब तुम प्रतिष्ठित कर रहे हो,
मंदिर में तुम सुसज्जित कर रहे हो।
किंतु तनिक तो मेरे भक्तो ठहरो ,
कुछ मेरी विनती भी तुम सुन लो ।
मुझसे सदा ही तुमने भर भर माँगा,
आज बन जाओ तुम दाता के दाता।
न लाना तुम मेरा कोई स्वर्णाभूषण,
न माला , न कुंडल और न कंगन ।
कर दो अब ये प्रसारण भक्तों सर्वत्र ,
लेकर आने हैं मेरे लिए केवल शस्त्र।
न कदापि तुम हाथ जोड़े हुए आना ,
किंतु बन कर वीर रणबांकुरे आना ।
पदचापों में अपनीं खूब धमक लाना,
युद्ध की हृदय में लिए ललक आना ।
शस्त्रों से ही तुम प्रत्येक द्वार बनाना ,
शस्त्रों से ही खूब बंदनवार सजाना ।
शस्त्रों पर भजन और कीर्तन करना,
शस्त्रों पर नृत्य और गायन करना ।
नेत्र समस्त भक्तों के रक्ताभ हों ,
मुखमंडलों पर युद्धों के ताप हों ।
करबद्ध न मेरा कोई अनुयाई हो,
शस्त्र सुसज्जित प्रत्येक सनातनी हो।
मंदिर पर उठे यदि कोई भृकुटी ,
करना तुरंत उसकी तुम अंतति।
युद्धों के ही अब केवल त्योहार हों,
नगर - नगर और ग्राम - ग्राम हों ।
अब न तुम स्वर्णों के अंबार लगाना ,
अबके केवल तुम शस्त्रागार बनाना ।
शिराओं में खौलता हुआ रक्त रखना,
वीर प्रताप सा प्रत्येक भक्त बनना ।
यदि आए कोई कहीं से आततायी ,
कर देना उसे तुम तुरंत धराशायी।
अब मुझे श्री राम तुम रहने देना ,
मेरे मान - सम्मान को बढ़ने देना ।
जिन्होनें किया था कभी मुझे ध्वस्त,
कहाँ हुए हैं अभी वो तुमसे परास्त ?
घात गहरी जो तुम पर लगाए बैठें हैं,
विकट कपट क्रूरता से वो भरे हुए हैं।
मंदिर बनाना है तो शस्त्रों के बना लो,
कर प्रतिष्ठित उसी में मुझे सजा लो ।
शस्त्रों की ढ़ाल पे ढ़ाल तुम बना लेना,
और प्रहार प्रत्येक से मुझे बचा लेना ।
जन्म हो यहाँ सहस्रों शिवाजियों का ,
और लक्ष्मीबाई सी वीरांगनाओं का ।
अबके न योद्धा कोई भी एकाकी हो ,
अबके संगठित जाति यह समूची हो ।
द्वारा प्रीता पंवार फरीदाबाद, हरियाणा ।
( सर्वाधिकार सुरक्षित)
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