अब कट्टरपंथियों के हवाले
इमुजीबुर रहमान और उनके बीस करीबी रिश्तेदारों की हत्या की 49वीं वर्षगांठ है। नई दिल्ली स्थित बांग्लादेश के उच्चायोग ने उस दिन 'राष्ट्रीय शोक दिवस' मनाना तय किया था। लेकिन बाद में 'सूचित' किया गया कि वह 'कार्यक्रम अपरिहार्य कारणवश स्थगित कर दिया गयां है।
अब कट्टरपंथियों के हवाले
बांग्लादेश में अगर लोग शेख मुजीब की मूर्ति तोड़ रहे हैं और खुद को मुक्ति योद्धाओं से अलग देखते हुए अराजकता फैला रहे हैं, तो इससे यह संकेत मिलता है कि कौन-सी ताकतें इसके पीछे काम कर रही हैं। ऐसे में भारत को अतिरिक्त सावधान रहने की जरूरत है।
इमुजीबुर रहमान और उनके बीस करीबी रिश्तेदारों की हत्या की 49वीं वर्षगांठ है। नई दिल्ली स्थित बांग्लादेश के उच्चायोग ने उस दिन 'राष्ट्रीय शोक दिवस' मनाना तय किया था। लेकिन बाद में 'सूचित' किया गया कि वह 'कार्यक्रम अपरिहार्य कारणवश स्थगित कर दिया गयां है। ढाका में अचानक हुए सियासी बदलाव को बताने के लिए इससे ज्यादा मार्मिक और कुछ नहीं हो सकता।
हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बीच बांग्लादेश के संस्थापक मुजीब की बेटी शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से हटाना, 1971 में मुक्ति युद्ध से जन्मे बांग्लादेश और पूरी दुनिया के लिए सबसे नया सियासी घटनाक्रम है। 53 वर्ष पहले मुजीब के नेतृत्व में पाकिस्तान की सेना के खिलाफ जो आंदोलन शुरू हुआ था, उसकी परिणति एक और सैन्य तख्तापलट के रूप में हुई। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसा उस सैन्य जनरल ने किया है, जो शेख हसीना का दूर का रिश्तेदार है, और जिस पर वह भरोसा करती थीं। 15 वर्षों तक सैन्य शासन के बाद, जिसे शेख हसीना ने आर्थिक प्रगति और राजनीतिक स्थिरता से रोका था, बांग्लादेश अब फिर सेना के अधीन है।
पिछले सैन्य तख्तापलट की तरह सेना प्रमुख जनरल वकर-उज- जमान ने अंतरिम सरकार का वादा किया है, लेकिन इस बात का जिक्र नहीं किया है कि इसमें उनकी या सेना की कोई भूमिका होगी या नहीं। मगर इसमें जरा भी संदेह नहीं होना चाहिए कि फैसले कौन लेगा। उन्होंने 'न्याय' का भी वादा किया है। सबसे पहले रिहा होने वालों में शेख हसीना की राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बेगम खालिदा जिया भी हैं, जिन्हें भ्रष्टाचार के कई मामलों में दोषी ठहराया गया है। पिछली सदी के अंत में खालिदा जिया और उनके इस्लामी सहयोगी पश्चिमी लोकतंत्रों के लिए भी चिंता का कारण बन गए थे, जब बांग्लादेश इस्लामी आतंकवाद का केंद्र बन गया था। ये ताकतें भारत विरोधी हैं। बांग्लादेश में जो हुआ है, वह भारत के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। क्या बांग्लादेश फिर से आतंकवादियों का प्रमुख केंद्र बन जाएगा? शेख हसीना ने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को सुरक्षित बनाने में भारी योगदान दिया। बांग्लादेश की धरती से संचालित होने वाले आतंकी शिविरों को उखाड़ फेंका गया। भारत को अब फिर से बांग्लादेश द्वारा कबायली चरमपंथ को बढ़ावा दिए जाने के लिए तैयार रहना चाहिए। अब नगा, उल्फा एवं अन्य चरमपंथी गुटों के साथ केंद्र सरकार के शांति समझौते खतरे में पड़ सकते हैं। इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि ढाका के उथल- पुथल में खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के अलावा सामाजिक रूप से ताकतवर इस्लामी संगठनों के साथ पाकिस्तान समर्थक जमात-ए-इस्लामी की संलिप्तता है, जिसे हसीना प्रतिबंधित करना चाहती थीं, लेकिन नहीं कर पाई। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने कबायली आबादी के अलावा बढते व्यवसायी वर्ग एवं मदरसों के माध्यम से इस उथल-पुथल को हवा दी। पाकिस्तान में 'मुजीब युग' के अंत पर खुशियां मनाई जा रही हैं। भारत पर अपने पूर्व और पूर्वोत्तर सीमा पर निगरानी बढ़ाने का दबाव कई गुना बढ़ गया है।
भारत को कूटनीतिक विवादों को जन्म दिए बिना हसीना शासन के दौरान दी गई सभी आर्थिक मदद, व्यापार रियायतों और परियोजनाओं को संशोधित करना होगा। पाकिस्तान की तरह चीन भी ढाका में हुए बदलाव पर खुश है। बीजिंग इस बात से नाराज था कि हसीना ने भारत से ऐसी परियोजनाएं हासिल कीं, जिन्हें वह दक्षिण एशिया में अपना प्रभाव फैलाने के लिए चाहता है। रिपोर्ट बताती हैं कि हसीना को चीनी नेतृत्व ने तवज्जो नहीं दिया था। आर्थिक रिश्तों और सीमा प्रबंधन के अलावा, जो किसी भी दो पड़ोसी देशों के लिए ज्यादा मायने रखता है, भारत को गंगा जल संधि पर कूटनीतिक विवाद के लिए तैयार रहना होगा, जिसका नवीनीकरण होना है। अतीत में खालिदा जिया सरकार ने 1990 के दशक में इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र महासभा में उठाया था। एक अन्य विवादास्पद मुद्दा तीस्ता जल बंटवारे और उसके बेसिन के विकास का है, जो उत्तर बंगाल में 23 किलोमीटर लंबे संकरे 'चिकेन नेक' के पास है।
भारत ने हसीना सरकार को आश्वस्त किया था कि वह चीन को इससे दूर रखेगा, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस समझौते का विरोध किया। ढाका की नई सरकार अब चीन को इसमें शामिल कर सकती है, जो धन और प्रौद्योगिकी में निवेश करने के लिए तैयार है। इससे भारत के क्षेत्रीय और नदी संबंधी हित खतरे में पड़ सकते हैं। इस्लामी और कबायली चरमपंथियों के अलावा, भारत को बांग्लादेश के हिंदू एवं बौद्ध अल्पसंख्यकों के लिए भी चिंता करनी होगी, जिनके ऊपर वहां अक्सर हमले होते रहते हैं। बांग्लादेश अब भारत को रेडिमेड गारमेंट्स जैसे क्षेत्रों में विरोधी के रूप में देखेगा, जहां दोनों विश्व बाजार में एक- दूसरे के प्रतिस्पर्धी हैं। बांग्लादेश के साथ भारत 4,096 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है, जो किसी भी पड़ोसी देश की तुलना में सबसे लंबी सीमा है। इन सीमा रेखाओं से पशुओं, मनुष्यों और नशीले पदार्थ की तस्करी रिश्तों को खराब कर सकती हैं, जिसे अब तक दोनों पक्षों ने कम महत्व दिया था। बांग्लादेश अब गरीब नहीं, बल्कि अपेक्षाकृत बेहतर आर्थिक स्थिति वाला मुल्क है और अब वह भारत के लिए चुनौती पेश कर सकता है। विश्व समुदाय छोटे से बांग्लादेश के साथ सहानुभूति रख सकता है। कूटनीतिक, आर्थिक और यहां तक कि लोगों के बीच आपसी संबंधों का एक नया युग शुरू होने वाला है।
हसीना के नेतृत्व में भारत ने 'पड़ोसी पहले' की अपनी नीति के तहत बांग्लादेश को दोस्ताना पड़ोसी बताया था। कूटनीतिक व सुरक्षा कारणों से भारत न तो अपने छोटे पड़ोसियों से लड़ सकता है और न ही उनकी अनदेखी कर सकता है। बांग्लादेश उन दक्षिण एशियाई देशों में शामिल हो गया है, जो लगातार सत्ता परिवर्तन से गुजरते हैं, जैसे नेपाल, अशांत श्रीलंका और मालदीव, जहां सत्ता में परिवर्तन को इस आधार पर देखा जाता है कि कौन भारत समर्थक है और कौन चीन समर्थक। बांग्लादेश तख्तापलट इस क्षेत्र की भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है। भारत की तरह पश्चिम को भी दक्षिण एशिया में बढ़ती चीनी भूमिका से निपटना होगा, क्योंकि चीन को 'रोकने' के लिए अमेरिका दक्षिण एशिया को एक 'धुरी' बनाना चाहता है।
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