उर्दू के छात्रों को पढ़ाए जाएंगे संत कबीर के दोहे
उर्दू विभाग के पाठ्यक्रम प्रोस्पेक्टस में कहा गया है कि इस कदम का उद्देश्य विद्यार्थियों को दक्षिण और उत्तर भारत की प्रारंभिक साहित्यिक परंपराओं से परिचित कराना है। इसमें कहा गया है, इस पाठ्यक्रम के पूरा होने पर, छात्र प्रारंभिक साहित्यिक उर्दू परंपराओं के संदर्भ में शास्त्रीय कविता और गद्य को समझने और सराहने में सक्षम होंगे।
उर्दू के छात्रों को पढ़ाए जाएंगे संत कबीर के दोहे
दिल्ली विश्वविद्यालय के उर्दू स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में संत कबीर के दोहे पढ़ाए जाएंगे। इसको लेकर संशोधन प्रस्ताव 27 जुलाई को प्रस्तावित कार्यकारी परिषद की बैठक में लाया जाएगा। डीयू के एक अधिकारी ने कहा कि कला संकाय की ओर से अनुशंसित संशोधनों के हिस्से के रूप में विद्यार्थियों को पहले सेमेस्टर में 'कबीर बानी' के 40 दोहों को चयनित कर पढ़ाया जाएगा। इस उद्देश्य के लिए एमए उर्दू प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में दो पाठ्य सामग्री शामिल करने का प्रस्ताव है।
इसमें सुझाए गए पाठों में अली सरदार जाफरी लिखित कबीर बानी और प्रभाकर मांचवे लिखित कबीर शामिल हैं। यदि मंजूरी मिल जाती है, तो पाठ्यक्रम में बदलाव अगस्त में शुरू होने वाले 2024-25 शैक्षणिक सत्र से लागू किया जा सकता है। कला संकाय ने उर्दू विभाग में पढ़ाए जाने वाले "बेसिक टेक्स्टः अर्ली उर्दू लिटरेचर नामक पेपर के पाठ्यक्रम में इन संशोधनों की सिफारिश की है। परिवर्तन लाने का निर्णय संकाय द्वारा 19 फरवरी को आयोजित एक बैठक में लिया गया था। इसे विश्वविद्यालय की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था कार्यकारी परिषद के समक्ष अनुमोदन के लिए रखा गया है।
उर्दू विभाग के पाठ्यक्रम प्रोस्पेक्टस में कहा गया है कि इस कदम का उद्देश्य विद्यार्थियों को दक्षिण और उत्तर भारत की प्रारंभिक साहित्यिक परंपराओं से परिचित कराना है। इसमें कहा गया है, इस पाठ्यक्रम के पूरा होने पर, छात्र प्रारंभिक साहित्यिक उर्दू परंपराओं के संदर्भ में शास्त्रीय कविता और गद्य को समझने और सराहने में सक्षम होंगे। प्रस्तावित संशोधनों के तहत, प्रथम वर्ष के विद्यार्थी पाठ्यक्रम कबीर के मुंतखब दोहे से शुरू करेंगे। कबीर बानी से 40 दोहे पाठ्यक्रम की इकाई का हिस्सा बन जाएगा। पंचकूला में नौकरी करते हुए जेएनयू में पीएचडी की नहीं मिली छूट
जेएनयू अकादमिक परिषद के फैसले को बरकरार रखते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि उच्च शिक्षा व अनुसंधान में शैक्षणिक अनुशासन अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऐसा करना किसी छात्र के लिए सुविधा का विषय नहीं हो सकता। पीएचडी छात्र की याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों का मतलब व्यक्ति पैदा करने वाली मशीन नहीं है।
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