योगी आदित्यनाथ की मां सावित्री देवी

संन्‍यास के बाद संन्‍यासी का अपने पूर्वाश्रम के संबंधियों से रिश्‍ता नहीं रह जाता...लेकिन इसके बाद भी एक संबंध है जो तोड़े नहीं टूटता...और वो है जन्‍म देने वाली मां का रिश्‍ता...क्‍योंकि हाड़-मांस की देह देने के अलावा मां...ज्ञान का पहला सूत्र भी देती है।

Jun 18, 2024 - 19:08
Jun 18, 2024 - 20:48
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योगी आदित्यनाथ की मां सावित्री देवी

संन्‍यास के बाद संन्‍यासी का अपने पूर्वाश्रम के संबंधियों से रिश्‍ता नहीं रह जाता...लेकिन इसके बाद भी एक संबंध है जो तोड़े नहीं टूटता...और वो है जन्‍म देने वाली मां का रिश्‍ता...क्‍योंकि हाड़-मांस की देह देने के अलावा मां...ज्ञान का पहला सूत्र भी देती है। इसी सूत्र में बंधे आदिगुरु शंकराचार्य ने अपनी मां को दिया वचन निभाया और अंत समय में उनसे मिलने पहुंचे...योगी आदित्‍यनाथ भी अपनी मां की पुकार को अनसुना नहीं कर पाए|

जिन्हें याद करके सख्त से दिखने वाले योगी भी मोम की तरह पिघल जाते हैं..रो पड़ते हैं...भावनाओं पर काबू नहीं रख पाते.. सोचिए..2 साल से बात नहीं हुई..योगी की परिवार से मुलाकात नहीं हुई...योगी के सियासी विरोधी अक्सर उनपर तंज कसते हैं...आरोप लगाते हैं..कि योगी ने अपने परिवार को छोड़ दिया..जो अपने परिवार का नहीं हुआ..वो राज्य के लोगों का क्या होगा।

योगी के सियासी विरोधी खुले मंच से उनके परिवार का ज़िक्र करके...अपने पॉलिटिकल हितों के लिए योगी के परिवार पर टीका टिप्पणी करते हैं..मगर ऐसा करने से पहले वो ये नहीं सोचते..कि वो मर्यादा की सारी सीमाएं लांघ रहे हैं..योगी के लिए उनका परिवार क्या है..ये समझने के लिए उनके विरोधियों को योगी की कही ये बात बहुत ध्यान से सुन लेनी चाहिए...योगी के आंसु देख लेने चाहिए।

वो ज़माना और था..जब योगी अपने परिवार के साथ रहते थे...उनका सुख दुख बांटा करते थे...मगर योगी के लिए उनका परिवार सिर्फ मां..बाप..भाई..बहन नहीं थे..योगी को तो कुछ और करना था..अपने परिवार को बहुत बड़ा करना था...इसकी शुरुआत 1993 में हुई..उत्तराखंड के गांव से निकला एक लड़का महंत अवैद्यनाथ के संपर्क में आया...योगी गोरखपुर चले गए...दीक्षा प्राप्त की और संन्यासी बन गए..अवैद्यनाथ ने 1998 में राजनीति से संन्यास लिया और योगी आदित्यनाथ को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।

1998 में ही योगी की पॉलिटिकल एंट्री हुई...योगी नेता तो बन चुके थे..मगर बहुत सख्त थे..योगी संत तो हैं..मगर योद्धा वाले संत हैं..योगी संन्यासी भी हैं..मगर लड़ने वाले संन्यासी हैं..संत..महंत..बाबा जी..महाराज जी..योगी की यही पहचान है..वो मठाधीस भी हैं..और सत्ताधीश भी।

योगी के सार्वजनिक जीवन को 24 साल हो चुके हैं...इन 24 सालों में राजनीतिक तौर पर योगी ने कई क़ामयाबियां देखीं..सबसे कम उम्र का सांसद बनने से लेकर गोरखपुर लोकसभा सीट से लगातार 5 बार सांसद चुने जाने तक..और फिर 2017 के बाद 2022 में लगातार दूसरी बार यूपी का सीएम बनने तक...इन 26 सालों के दौरान योगी का परिवार भी पहले से काफी बड़ा होता चला गया..योगी को अपनों का भी ख्याल रखना था..रखा भी..देश के सबसे बड़े सूबे की ज़िम्मेदारी भी निभानी थी..बखूबी निभाई..और आज भी यूपी को योगी ने संभाल रखा है..परिवार से मिलने का वक्त योगी भले ही ना निकाल पाए हों..मगर बहन को कोई गिला शिक्वा नहीं है।

मां से मिलने के लिए योगी आदित्यनाथ जितनी देर भी ऋषिकेश के इस एम्स में रहे.. अपनी मां का हाथ पकड़े रहे.. आंखों में इन्फेक्शन की वजह से मां की आंखों पर चश्मा लगा हुआ था... थोड़ी देर बाद वो चश्मा भी उतार दिया गया.. योगी बनने से पहले वो पौड़ी गढ़वाल के पंचुर गांव के अजय सिंह बिष्ट थे.. लेकिन अब योगी आदित्यनाथ हैं... योगी के घर में कोई भी उन्हें उनके नाम से नहीं.... बल्कि महाराज जी ही कहते हैं.. उनके घर में तो मां को छोड़कर बाकी सब पैर भी छूते हैं। 

इसीलिए जब ऋषिकेश में हॉस्पिटल में भर्ती मां से योगी मिले तो एक बार मां ने हाथ भी जोड़े..जिसके बाद योगी ने मां के हाथ पकड़े और नीचे कर दिये.. वो करीब 30 मिनट तक अस्पताल में रहे.. मां का हाल चाल जानते रहे.. योगी आदित्यनाथ ने डॉक्टरों से भी बात की। 

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Abhishek Chauhan भारतीय न्यूज़ का सदस्य हूँ। एक युवा होने के नाते देश व समाज के लिए कुछ कर गुजरने का लक्ष्य लिए पत्रकारिता में उतरा हूं। आशा है की आप सभी मुझे आशीर्वाद प्रदान करेंगे। जिससे मैं देश में समाज के लिए कुछ कर सकूं। सादर प्रणाम।