जलियाँवाला बाग नरसंहार: भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक काला अध्याय

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Apr 12, 2025 - 21:02
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जलियाँवाला बाग नरसंहार: भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक काला अध्याय

जलियाँवाला बाग नरसंहार: भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक काला अध्याय

13 अप्रैल 1919, भारतीय इतिहास का एक अंधकारमय दिन था, जब अमृतसर के जलियाँवाला बाग में ब्रिटिश साम्राज्य के अत्याचारों की एक भयावह घटना घटी। इस दिन, जनरल माइकल ओ'डायर की कमान में ब्रिटिश सैनिकों ने एक शांतिपूर्ण सभा में शामिल हजारों निर्दोष भारतीयों पर अंधाधुंध गोलियाँ बरसाईं, जिसके परिणामस्वरूप सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों लोग घायल हुए। यह घटना न केवल भारतीयों के लिए एक गहरी वेदना का कारण बनी, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ भी साबित हुई।

जलियाँवाला बाग: एक स्थल, एक संघर्ष

आज जलियाँवाला बाग वह स्थल है, जहां स्वतंत्रता संग्राम के इस काले अध्याय की यादें संजोयी जाती हैं। इस स्थान पर बना स्मारक 2000 भारतीयों की शहादत की याद में स्थापित किया गया है, जो इस नरसंहार में शहीद हुए थे। बाग की दीवार पर गोलियों के निशान आज भी मौजूद हैं, जो उस समय की भयावहता का जीवित प्रमाण हैं। बाग के बीचों-बीच स्थित एक कुआं भी संरक्षित है, जिसमें कई लोग जान बचाने के लिए कूद पड़े थे, और वे पानी में डूब गए थे। यह कुआं आज भी उस दिन की पीड़ा और त्रासदी को याद दिलाता है।

महात्मा गांधी और रवींद्रनाथ ठाकुर का प्रतिक्रियाएँ

जलियाँवाला बाग नरसंहार के बाद, महात्मा गांधी ने इस घटना पर अपनी गहरी नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने कहा था, “भारत के असंभव पुरुष उठेंगे और अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र कराएंगे।” इस घटना ने भारतीय जनमानस को आक्रोशित कर दिया और स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। महात्मा गांधी की ये बातें उस समय भारतीय समाज में एक नई जागरूकता और क्रांति का संकेत थीं।

नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ ठाकुर (रवींद्रनाथ टैगोर) ने इस घटना के विरोध में ब्रिटिश नाइटहुड की उपाधि वापस कर दी। उन्होंने इस क्रूरता को "सभ्य सरकार के इतिहास में बेमिसाल" बताया और अपनी असहमति व्यक्त की। रवींद्रनाथ टैगोर की यह कार्यवाही ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ भारतीय बौद्धिक और सांस्कृतिक प्रतिरोध का प्रतीक बन गई।

जलियाँवाला बाग: स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक

जलियाँवाला बाग नरसंहार ने भारतीयों के दिलों में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ गुस्से और आक्रोश को और भी बढ़ा दिया। यह घटना केवल एक मानवाधिकार उल्लंघन नहीं थी, बल्कि यह भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह की ज्वाला को भड़काने का कारण बनी। इस क्रूरता के बाद भारतीयों का आक्रोश चरम पर पहुंच गया और वे स्वतंत्रता की ओर और भी दृढ़ निश्चय के साथ बढ़ने लगे।

सम्बंधित शहीद गैलरी

जलियाँवाला बाग के भीतर एक शहीद गैलरी बनाई गई है, जहाँ उस दिन की घटनाओं का विवरण और शहीदों की यादें संरक्षित की गई हैं। गैलरी में प्रदर्शित चित्र, दस्तावेज़ और लेख उन असंख्य भारतीयों की शहादत को सम्मानित करते हैं जिन्होंने अपनी जान गंवाई थी। गैलरी में दीवार पर गोलियों के निशान और खून से सने उस दिन के दृश्यों की छायाएँ हैं, जो आज भी दिलों में उस रक्तपात की गहरी पीड़ा और क्रूरता की याद दिलाते हैं।

जलियाँवाला बाग नरसंहार भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण और काला अध्याय है। यह घटना न केवल स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई, बल्कि इसने भारतीय समाज को एकजुट करने और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया। जलियाँवाला बाग आज भी शहीदों की याद में खड़ा है और यह हमें यह सिखाता है कि स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए हमें कितने संघर्षों से गुजरना पड़ा था। यह स्थल भारत की स्वतंत्रता की महक और संघर्ष की गाथा को जीवित रखता है, और यह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार- विचार और कार्य से आने वाले समय में अपनी मेहनत के प्रति लगन से समाज को बेहतर बना सकते हैं। जरूरत है कि वे अपनी ऊर्जा, साहस और ईमानदारी से र्काय के प्रति सही दिशा में उपयोग करें , Bachelor of Journalism And Mass Communication - Tilak School of Journalism and Mass Communication CCSU meerut / Master of Journalism and Mass Communication - Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University पत्रकारिता- प्रेरणा मीडिया संस्थान नोएडा 2018 से केशव संवाद पत्रिका, प्रेरणा मीडिया, प्रेरणा विचार पत्रिका,