24 सितंबर का इतिहास, बलिदान दिवस, युवा क्रांतिकारी प्रीतिलता वादेदार का आत्मोसर्ग,
अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार ने उनके मन में स्वतंत्रता की चिंगारी भड़का दी। कोलकाता में पढ़ाई के दौरान, प्रीतिलता ने ‘छात्र संघ’ और ‘दीपाली संघ’ जैसे क्रांतिकारी संगठनों से जुड़कर हथियार चलाने का प्रशिक्षण लिया।
बलिदान दिवस: युवा क्रांतिकारी प्रीतिलता वादेदार का आत्मोसर्ग
24 सितंबर 1932 का दिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक वीरांगना के अद्वितीय आत्मबलिदान के लिए जाना जाता है। इस दिन, युवा क्रांतिकारी प्रीतिलता वादेदार ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष करते हुए अपने जीवन का अंतिम बलिदान दिया।
प्रीतिलता का जन्म 1911 में चटगांव के गोलपाड़ा में हुआ था। उनके परिवार में लड़कियों की शिक्षा को अधिक महत्व नहीं दिया जाता था, लेकिन उन्होंने जिद्दपूर्वक अपने भाइयों के साथ पढ़ाई शुरू की और जल्दी ही अपनी बुद्धिमत्ता से परिवार को प्रभावित किया। अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार ने उनके मन में स्वतंत्रता की चिंगारी भड़का दी। कोलकाता में पढ़ाई के दौरान, प्रीतिलता ने ‘छात्र संघ’ और ‘दीपाली संघ’ जैसे क्रांतिकारी संगठनों से जुड़कर हथियार चलाने का प्रशिक्षण लिया।
चटगांव में मास्टर सूर्यसेन से संपर्क के बाद, उन्होंने 'इंडियन रिपब्लिक आर्मी' में शामिल होकर क्रांतिकारी गतिविधियों में पूरी तरह से संलग्न हो गईं। उनके नेतृत्व में क्रांतिकारी योजनाओं का क्रियान्वयन और जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानियों के साथ संदेशों का आदान-प्रदान होता रहा।
24 सितंबर 1932 की रात को प्रीतिलता ने चटगांव के पहारताली यूरोपियन क्लब पर हमला करने का साहसिक निर्णय लिया। यह क्लब ब्रिटिश अधिकारियों के षड्यंत्र का केंद्र था, जहां भारतीयों के दमन की योजनाएं बनाई जाती थीं। क्रांतिकारी दल ने सैनिक वेशभूषा में पहुंचकर क्लब पर बम फेंककर हमला किया, जिसमें एक वृद्ध अंग्रेज की मौत हो गई और कई घायल हो गए।
इस हमले में प्रीतिलता गंभीर रूप से घायल हो गईं। अपने बचने की संभावना न देखते हुए, उन्होंने अपने साथियों को सुरक्षित निकलने का आदेश दिया और खुद को ब्रिटिश गिरफ्त में आने से बचाने के लिए साइनाइड की गोली खाकर आत्मोसर्ग कर लिया।
प्रीतिलता वादेदार का बलिदान स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भूमिका और उनके साहस का एक अमर उदाहरण है। आज भी उनका यह आत्मत्याग युवा पीढ़ी को प्रेरणा देता है।
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