हिन्दुत्व की प्राण-प्रतिष्ठा
भक्ति का वर्णन वेद पुकार-पुकार कर करता है। उसे बारम्बार सुनो और घर-घर में प्रभु को ज्योति देखो।
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हिन्दुत्व की प्राण-प्रतिष्ठा
अपने यहाँ भक्ति का स्रल मार्ग जनता को समझाया गया है। इसके द्वारा जीवन पवित्र बनता है। गुरुनानक देव कहते हैं- रेश अंधारी निरमल जोति, नाम बिना झूठे कुचल कदोति। वेदु पुकारे भक्ति सरोति, मुणि-सुणि मानै देखखै जोति।।
(श्रीगुरुग्रंथ साहब, पृ.831) (अज्ञानपूर्ण अंधेरी राधि में निर्मल नाग जाप से प्रकाश होता है। विना नाम जपै नो जीच झूठा, कुचैला और अपवित्र है। भक्ति का वर्णन वेद पुकार-पुकार कर करता है। उसे बारम्बार सुनो और घर-घर में प्रभु को ज्योति देखो।)
श्रीराम प्रभु का नाम बार बार जपते हुए, महर्षि वल्मीकि स्वयं ब्रह्म समान हो गये थे। कलियुग में तो वैसे ही नाम एकमात्र अधार है। कलियुग केवल नाम अधारा।" अतः राम-कृष्णा-गोविन्द राघव-गौतम कोई भी एक नाम वाणी द्वारा या मन में बारम्बार स्मरण करते हुए जीवन को पवित्र विकासमान बनाना चाहिये। राम मन्दिर के निर्माण से उक्त हिन्दू विचार प्रभावशाली बनेगा। प्रतिदिन दो लाख से अधिक भक्तों ने पहले एक मास मेंअयोध्या में दर्शन किये। आगे यह संख्या और बढ़ने लगी है। अनुमान है कि पूरे वर्ष में 1 करोड़ से अधिक रामभक्त रामनगरी में पहुंचेंगे। राम मंदिर राष्ट्र मंदिर के रूप में वास्तव में प्रतिष्ठित होगा। अब तक सिलसिला सैकड़ों-हजारों वर्ष यूं ही चलने जाने वाला है। वैष्णों देवी, तिरुपति बालाजी, जगनाथ स्वामी, पदमनाभ स्वामी आदि प्राचीन देवालयों के समान रामलला मंदिर की स्थिति बननी प्रारम्भ हो चुकी है। यही है हिन्दुत्व का पुनरोदय। संसार को इसी से राह मिली है।
राम मन्दिर अयोध्या में बालकराम की नवनिर्मित प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हो गयी है। यह हिन्दुत्व की ही प्राण प्रतिष्ठा है। यह उन शहीदों के प्राणों की प्रतिष्ठा है, जिन्होंने पाँच सौ सालों में अपनी आन इस सपने के लिये न्यौछावर की। टाट के बने मंदिर में बने अपने रामलला को निष्पाप नेत्रों से निहारते करोड़ों रामभक्तों के प्राणों को मिली संजीवनी है। उस दृश्य को अनगिनत अश्रुपूरित आंखों ने साक्षात् अथवा टेलीविजन समाचार पत्रों द्वारा देखा।
हजारों-लाखों वर्षों से भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व राम के नाम से सम्मोहित हैं उनकी जीवनयात्रा को रामलीलाओं के माध्यम में दोहराता हुआ देखता सुनता रहा है। बरसों बरस बार-बार देखते हुए भी तृप्त नहीं होता। राम के इस विचनायक स्वरूप की व्याख्या अपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 22 जनवरी को अयोध्या जी की एक जनसभा में की। उस अलौकिक भाषण में कुछ अंश वहीं प्रस्तुत करने की इच्छा से रोक नहीं पा रहा हूं।
मोदी जी बोले-"यह मन्दिर मात्र एक देव मंदिर नहीं है। यह भारत की दृष्टि का भारत के दर्शन का, भारत के दिग्दर्शन का मंदिर है। यह राम के रूप में राष्ट्र चेतना का मंदिर है। राम भारत की आस्था है, राम भारत का आधार है, राम भारत का विचार है, राम भारत का चिंतन है, राम भारत की प्रतिष्ठा है, राम भारत का प्रताप है, राम प्रभाव है, राम प्रवाह है, राम नेति भी है, राम नीति भी है. राम नित्यता है, निरन्तरता है, राम व्यापक है, विश्व है, विश्वात्मा है, इसलिये जब राम की प्रतिष्ठा होती है तो उसका प्रभाव शताब्दियों तक नहीं होता, हजारों वर्षों तक होता है। आज हमारे राम आ गये हैं। राम सदियों की प्रतीक्षा के बाद आये हैं। इस मौके पर मेरा कंठ अवरुद्ध है। अब रामलला टेंट में नहीं, बल्कि दिव्य मंदिर में रहेंगे। आज से हजार साल बाद भी लोग इस तारीख की आज के इस पल की चचर्चा करेंगे। ये कितनी बड़ी राम की कृपा है कि हम सब इस पल को जी रहे हैं, घटित होते देख रहे हैं।
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