हित हरिवंश महाप्रभु राधावल्लभ संप्रदाय के जनक

जानिए कौन थे राधावल्लभ संप्रदाय की नींव डालने वाले। और उनके जीवन के विषय में इस छोटे से लेख के जरिए, संक्षिप्त शब्दों में।

हित हरिवंश महाप्रभु राधावल्लभ संप्रदाय के जनक
हित हरिवंश महाप्रभु

सहारनपुर का सबसे पहला लेखक या कवि यदि किसी को माना जाए तो वह हित हरिवंश महाप्रभु हैं। जिन्होंने 500 साल पूर्व राधा और कृष्ण की भक्ति को शब्दों में बांधकर पाठकों के सामने लेकर आए। 

हित हरिवंश महाप्रभु का जन्म बैसाख शुक्ल एकादशी, विक्रम संवत् 1530 को मथुरा से 12 कि॰मी॰ दूर आगरा-दिल्ली राजमार्ग पर स्थित 'बाद' गांव में हुआ था। हरिवंश महाप्रभु के देववन (सहारनपुर, उ० प्र०)निवासी पिता पं. व्यास मिश्र जब ब्रज भ्रमण हेतु आए, उस समय उनकी पत्नी श्रीमती तारा रानी गर्भवती थीं। उनकी पत्नी को प्रसव पीडा के कारण 'बाद' ग्राम में ठहरना पडा। यहीं पर एक सरोवर के पास बरगद के पेड़ के नीचे हरिवंश महाप्रभु का जन्म हुआ।

उनके पिता पंडित व्यास मिश्र संस्कृत के बड़े विद्वान थे। हित हरिवंश की शिक्षा उनके घर में ही हुई थी,पिता ही इनके गुरु थे, वह हरिवंश जी को ब्रज की कहानी सुनाते थे। हित हरिवंश संस्कृत के साथ ही बृज भाषा के बड़े ज्ञाता थे।

श्री हित हरिवंश चन्द्र महाप्रभु में अनेक प्रतिभाएं थीं। जब वे सिर्फ 7 वर्ष के थे, तो उन्होंने देववन के एक गहरे कुएं में छलांग लगाकर एक श्याम वर्ण विग्रह को पुनः प्राप्त किया, उन्होंने इसका नाम ठाकुर नवरंगीलाल रखा। ।यह विग्रह देववन के राधा नवरंगीलाल मंदिर में विराजित है।देवबंद में रहते हुए हित हरिवंश ने ठाकुर श्री राधा नवरंगीलाल मंदिर की स्थापना की। हित हरिवंश महाप्रभु अपने जीवन के शुरुआती 31 वर्ष देववन में ही रहे।

हरिवंश महाप्रभु राधारानी को अपनी इष्ट के साथ गुरु भी मानते थे। अपनी आयु के 32 वें वर्ष में उन्होंने श्री राधा रानी की प्रेरणा से वृंदावन चले गए। श्री हित महाप्रभु जी श्री राधावल्लभ लाल के श्री विग्रह को विक्रम संवत् 1562 की कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी को लेकर वृंदावन पहुंचे और श्री विग्रह को विधिवत् प्रतिष्ठित किया।उन्हीं ने राधावल्लभ सम्प्रदाय की नींव डाली। हित हरिवंश ने वृंदावन में श्रीकृष्ण से जुड़े स्थलों रास मंडल, सेवा कुंज, वंशीवट, धीर समीर, मान सरोवर, हिंडोल स्थल, शृंगार वट, वन लीला आदि स्थलों का परिचय लोगों को कराया।

हित हरिवंश महाप्रभु ने बृज भाषा के साथ ही संस्कृत में भी कई रचनाएं लिखीं। संस्कृत भाषा में राधा सुधा निधि लिखी, इसमें 270 श्लोक हैं। श्लोकों में राधा की वंदना, उपासना, सेवा, पूजा, भक्ति, सौंदर्य का वर्णन किया है। उन्होंने 'हित चौरासी' बृज भाषा में लिखी है, इसे राधा वल्लभ संप्रदाय का मूल ग्रंथ भी माना जाता है।