लोकसभा चुनाव में अभी तक के 5 जरूरी सबक
भारतीय पान व चाय की दुकान से लेकर TV स्टूडियो तक इस बात पर बहस कर रहा है कि अबकी बार 220 या 272 या 300 पार या 400 पार?
जिस चुनाव में 97 करोड़ पात्र मतदाता हों और 63 करोड़ से अधिक लोग EVM का बटन दबाने के लिए अपने निकटतम मतदान केंद्रों पर जाते हों, वहां नतीजों की भविष्यवाणी करना मुश्किल है। लेकिन मोटे तौर पर सभी भारतीय आज एक ही बात जानना चाहते हैं- क्या नरेंद्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनेंगे या नहीं।
अभी तक इस पर ज्यादा बहसें नहीं हुई हैं कि कांग्रेस कितनी सीटें जीत सकती है, लेकिन हर भारतीय पान व चाय की दुकान से लेकर TV स्टूडियो तक इस बात पर बहस कर रहा है कि अबकी बार 220 या 272 या 300 पार या 400 पार?
परिणाम चाहे जो हों,
हम सभी इस चुनाव-अभियान से निम्नलिखित सबक तो सीख ही रहे हैं।
लेकिन हाल ही के समय में एक TV चैनल को दिए साक्षात्कार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी बांसवाड़ा स्पीच को डिकोड किया। उन्होंने कहा कि, वे कांग्रेस के ‘छद्म सेकुलरिज्म’ को आड़े हाथों ले रहे थे। वाराणसी में 14 मई को अपना नामांकन दर्ज करने के बाद उन्होंने कहा था कि ‘‘मुझे यकीन है मेरे देश के लोग मेरे लिए वोट करेंगे। मैं जिस दिन हिंदू-मुस्लिम करना शुरू कर दूंगा, उस दिन सार्वजनिक जीवन में रहने योग्य नहीं रहूंगा।’’
इस बीच कई विश्लेषकों का मत भी सामने आया कि बांसवाड़ा स्पीच पर आई प्रतिक्रियाओं के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कथन की नई व्याख्या प्रस्तुत करने की कोशिश की है। शायद वे मुस्लिमों को समझाने-बुझाने की कोशिश भी कर रहे थे और उनसे पूछ रहे थे कि ‘आपको क्या फायदा हुआ कांग्रेस के साथ रहने से?’
भारतीय राजनीति जलेबी की तरह है। ये निर्विवाद सत्य है। यहां कुछ भी ना सीधा है, ना यहां कोई सत्य अंतिम है।लोकसभा का चुनाव भी उलझन में डालने वाली जलेबियां बनाने का महोत्सव बनता जा रहा है। जहां दिग्गजों के हर बयान उनके पिछले बयान से ज्यादा घुमावदार थे।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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