जनसंख्या दिवस: बढ़ती आबादी और सतत विकास की चुनौती

विश्व जनसंख्या दिवस की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने 1989 में की थी। इसका उद्देश्य 1987 में हुई एक बड़ी घटना की याद दिलाना था

Jul 10, 2025 - 18:50
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जनसंख्या दिवस: बढ़ती आबादी और सतत विकास की चुनौती

जनसंख्या दिवस: बढ़ती आबादी और सतत विकास की चुनौती


हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। यह दिन विश्व भर में जनसंख्या से जुड़ी समस्याओं की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने और इनसे निपटने के उपायों पर विचार करने के लिए समर्पित होता है। भारत जैसे विकासशील देशों के लिए यह दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहां जनसंख्या वृद्धि के प्रभाव समाज, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर व्यापक रूप से देखे जा सकते हैं।

जनसंख्या दिवस की शुरुआत

विश्व जनसंख्या दिवस की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने 1989 में की थी। इसका उद्देश्य 1987 में हुई एक बड़ी घटना की याद दिलाना था — जब विश्व की जनसंख्या ने 5 अरब का आंकड़ा पार किया। 11 जुलाई 1987 को "फाइव बिलियन डे" के रूप में जाना गया और इसके दो साल बाद इस दिन को जनसंख्या दिवस के रूप में मान्यता दी गई।

भारत में जनसंख्या की स्थिति

भारत की आबादी 2023 में 142 करोड़ के पार पहुंच गई है और यह चीन को पीछे छोड़कर विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है। इतनी विशाल जनसंख्या जहां एक ओर मानव संसाधन की दृष्टि से संभावनाओं से भरी हुई है, वहीं दूसरी ओर यह संसाधनों पर अत्यधिक दबाव डालती है। रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा, जल, बिजली, और भूमि जैसे संसाधनों पर बोझ बढ़ रहा है।

जनसंख्या वृद्धि के कारण

भारत में जनसंख्या वृद्धि के कई कारण हैं:

  1. कम मृत्यु दर और बढ़ती जीवन प्रत्याशा: चिकित्सा सुविधाओं में सुधार के कारण मृत्यु दर घटी है और लोगों की औसत आयु बढ़ी है।

  2. कम शिक्षा स्तर: विशेषकर महिलाओं में शिक्षा की कमी से परिवार नियोजन की जागरूकता कम है।

  3. प्रजनन दर अधिक होना: विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक बच्चे होना सामाजिक सुरक्षा और सांस्कृतिक मान्यता से जुड़ा है।

  4. शादी की कम उम्र: कम उम्र में विवाह होने से संतान उत्पत्ति की अवधि लंबी हो जाती है।

जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम

  1. बेरोजगारी: रोजगार के अवसर सीमित हैं लेकिन काम के इच्छुक लोगों की संख्या बहुत अधिक है।

  2. गरीबी: अधिक जनसंख्या संसाधनों का बंटवारा करती है, जिससे प्रति व्यक्ति आय घटती है।

  3. शिक्षा पर प्रभाव: सरकारी स्कूलों में शिक्षक और संसाधनों की कमी हो जाती है।

  4. स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव: अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ जाती है जिससे इलाज की गुणवत्ता घटती है।

  5. पर्यावरणीय संकट: अधिक जनसंख्या का मतलब है अधिक प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, जिससे जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण की समस्याएं बढ़ती हैं।

समाधान और उपाय

1. शिक्षा का प्रसार

महिलाओं की शिक्षा विशेष रूप से परिवार नियोजन में जागरूकता लाने के लिए आवश्यक है। शिक्षित महिलाएं अधिक जागरूक होती हैं और छोटे परिवार को प्राथमिकता देती हैं।

2. परिवार नियोजन के साधनों की उपलब्धता

सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि गर्भनिरोधक साधन और स्वास्थ्य सेवाएं सभी वर्गों को आसानी से उपलब्ध हों।

3. सरकारी योजनाएं और जागरूकता अभियान

सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं जैसे मिशन परिवार विकास, जननी सुरक्षा योजना आदि का प्रचार-प्रसार होना चाहिए।

4. कानूनी उपाय

कुछ विशेषज्ञ यह सुझाव देते हैं कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए दो बच्चों की नीति को कानून के रूप में लागू किया जाए। हालांकि, यह संवेदनशील मुद्दा है और इसके सामाजिक प्रभावों को ध्यान में रखते हुए विवेकपूर्ण निर्णय लिया जाना चाहिए।

5. महिलाओं का सशक्तिकरण

जब महिलाएं स्वयं निर्णय लेने में सक्षम होती हैं, तो वे परिवार के आकार को नियंत्रित कर सकती हैं। इसके लिए महिलाओं को आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक रूप से सक्षम बनाना आवश्यक है।

भारत की जनसंख्या को अवसर के रूप में देखना

हालांकि अधिक जनसंख्या को अक्सर समस्या के रूप में देखा जाता है, लेकिन यदि सही तरीके से प्रबंधन किया जाए, तो यह देश की सबसे बड़ी ताकत भी बन सकती है। युवा जनसंख्या भारत का सबसे बड़ा संसाधन है। यदि उन्हें शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण और रोजगार प्रदान किए जाएं, तो वे देश की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं।

तकनीकी नवाचार और जनसंख्या नियंत्रण

डिजिटल माध्यमों और मोबाइल एप्स के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में भी परिवार नियोजन की जानकारी पहुंचाई जा सकती है। टेलीमेडिसिन, ई-हेल्थ और मोबाइल हेल्थ क्लिनिक जैसे नवाचारों से दूर-दराज के क्षेत्रों तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाई जा सकती हैं।

जनसंख्या दिवस हमें याद दिलाता है कि बढ़ती जनसंख्या केवल एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि यह एक गंभीर चुनौती है जिससे निपटना जरूरी है। यह सरकार, समाज और प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह इस दिशा में अपनी भूमिका निभाए।

जहां एक ओर हमें परिवार नियोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए, वहीं दूसरी ओर हमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी जनसंख्या विकास का साधन बने, न कि बाधा।

"छोटा परिवार, सुखी परिवार" केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक समृद्ध भविष्य की कुंजी है।

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार- विचार और कार्य से आने वाले समय में अपनी मेहनत के प्रति लगन से समाज को बेहतर बना सकते हैं। जरूरत है कि वे अपनी ऊर्जा, साहस और ईमानदारी से र्काय के प्रति सही दिशा में उपयोग करें , Bachelor of Journalism And Mass Communication - Tilak School of Journalism and Mass Communication CCSU meerut / Master of Journalism and Mass Communication - Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University पत्रकारिता- प्रेरणा मीडिया संस्थान नोएडा 2018 से केशव संवाद पत्रिका, प्रेरणा मीडिया, प्रेरणा विचार पत्रिका,