प्रकृति का शासन: धरती पर कोई नहीं टिक सका
हिंदू आख्यान शास्त्र को समझने के लिए हमें वन को एक रूपक की तरह समझना होगा। वन वह अनियंत्रित संसार है, जहां केवल शक्तिशाली जीवों का राज चलता है। दूसरे शब्दों में कहना हो तो चूंकि यह प्रकृति का रूप है, इसलिए यहां बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है अर्थात यहां ‘मत्स्य न्याय’ लागू होता है।
हिंदू धर्म में वनों की प्रारंभिक समझ हमें इस सूक्त में मिलती है। यह सूक्त तैत्तिरीय ब्राह्मण में दोहराया गया है। अरण्यानि को बिहार के आरा नगर में अरण्य देवी मंदिर में पूजा जाता है। रामायण और महाभारत महाकाव्यों में वनों की महत्वपूर्ण भूमिका है। राम को चौदह वर्ष के वनवास और पांडवों को तेरह वर्ष के वनवास के लिए जाना पड़ता है। वे एक ऐसे संसार में पहुंचते हैं, जहां कोई राजा नहीं होता है। वहां बलवान बलहीन पर हावी होते हैं, अर्थात वहां अधर्म होता है। इस प्रकार रामायण और महाभारत में यह विचार प्रस्तुत किया गया है कि राजाओं को मत्स्य न्याय को वश में करके धर्म स्थापित करना चाहिए।
साभारः दैनिक भास्कर
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