शिक्षा के क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता Artificial Intelligence in Education
Artificial Intelligence in Education के क्षेत्र में निस्संदेह एक क्रांतिकारी प्रादुर्भाव हुआ है।
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शिक्षा के क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता
आर्टिफिशियल पहली एआइ इंटेलिजेंस Artificial Intelligence in Education
शिक्षिका मिली है। निश्चित रूप से तकनीकी के क्षेत्र में यह देश की अभूतपूर्व उपलब्धि है। केरल के तिरुअनंतपुरम के एक स्कूल में पेश की गई इस रोबोट शिक्षिका का नाम 'आइरिस' है। यह रोबोट शिक्षिका चैटजीपीटी जैसे एआइ प्रोग्रामों से लैस है और इसके पास गणित एवं विज्ञान जैसे विषयों के प्रश्नों का उत्तर देने की क्षमता भी है। तीन भाषाओं में बात कर सकने वाली यह एआइ शिक्षिका साड़ी पहनकर स्कूल पहुंची और उसने बच्चों से हाथ भी मिलाया। शिक्षा के क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के प्रयोग का यह अपने आप में एक अनूठा उदाहरण है। यूं तो कृत्रिम बुद्धिमत्ता अथवा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की शुरुआत 1950 में हुई थी, किंतु इसका तीव्रतर विकास 1970 के बाद आरंभ हुआ।
हाल की बात की जाए तो नवंबर 2022 में चैटजीपीटी नामक ओपन एआइ वैटबाट के अस्तित्व में आने के बाद कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में निस्संदेह एक क्रांतिकारी प्रादुर्भाव हुआ है। चैटजीपीटी में उच्च स्तरीय एल्गोरिदम एवं प्रोग्रामिंग का प्रयोग करके प्रश्नों के उत्तर देने एवं मानव के उन सभी कार्यों को सहज एवं सरल बनाने का प्रयास किया जाता है, जिनको पूर्ण करने के लिए उसे अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करना पड़ता है। इसी चैटजीपीटी को रोबोट के साथ संयुक्त करके कृत्रिम शिक्षिका को अस्तित्व में लाया गया है। यहां पर एक विचारणीय प्रश्न यह उठता है कि शिक्षा के क्षेत्र में कृत्रिम मेधा का प्रयोग कहां तक उचित है? कुछ दिनों पहले इंग्लैंड के एक स्कूल ने भी एआइ चैटबाट को प्रिंसिपल हेड टीचर बनाया है एवं विद्यार्थियों को एआइ टीचर बनाया है एवं विद्यार्थियों को एआइ आधारित पर्सनल असिस्टेंट दिए हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में कृत्रिम मेधा का समावेश आखिरकार किस सीमा तक उचित है? क्या किसी विद्यालय अथवा महाविद्यालय को पूर्णतया कृत्रिम मेधा से लैस रोबोट शिक्षकों के हवाले किया जा सकता है? ऐसा कदम उठाकर क्या विद्यार्थियों के भविष्य को लेकर चिंतामुक्त हुआ जा सकता है? इन प्रश्नों पर अगर हम गहन वैचारिक मंथन करें तो हमें इनका उत्तर नकारात्मक ही प्राप्त होगा। कारण यह है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित यह रोबोट शिक्षक महज एक उच्च्च कोटि की एल्गोरिदम एवं सूचनाओं की उच्च भंडारण क्षमता से युक्त मशीन है। यह प्रश्नों का उत्तर तो कदाचित दे सकती है, किंतु जब बात जिज्ञासाओं एवं रचनात्मकता की होगी तब निश्चित रूप से यह औंधे मुंह गिर पड़ेगी। वजह स्पष्ट है कि स्मृति क्षमता एवं तर्कशक्ति में जमीन आसमान का अंतर है। एआइ युक्त रोबोट शिक्षक वास्तविक शिक्षक का स्थान कभी नहीं ले सकते, क्योंकि किसी भी विषय पर सोचने, समझने एवं तर्क प्रस्तुत करने की क्षमता फिलहाल उनके पास नहीं है। किसी भी विषय को बेहतर ढंग से समझने के लिए उस पर अपनी विचारशक्ति एवं तर्क क्षमता का प्रयोग करना नितांत आवश्यक होता है।
आंकड़े यह कहते हैं कि एआइ तकनीक वर्ष 2030 तक 30 करोड़ नौकरियां खत्म कर देगी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा कृत्रिम बुद्धिमत्ता के संबंध में की गई टिप्पणी भी यह कहती है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता एक ऐसी तकनीकी क्रांति है, जो हमारी उत्पादकता, वैश्विक आय एवं विकास को बढ़ाएगी, किंतु यही तकनीकी क्रांति कई नौकरियां लील सकती है एवं असमानता की खाई को और अधिक बढ़ा सकती है। आखिर इन सभी रिपोर्ट का क्या मतलब है? क्या भविष्य में शिक्षक अपनी नौकरी से हाथ थी बैठेंगे एवं उन्हें प्रतिस्थापित करने वाली निर्जीव मशीनें होंगी? संभवतः ऐसा अनुमान इसलिए लगाया जा रहा है, क्योंकि मशीनी शिक्षकों को कोई तनख्वाह नहीं चाहिए। उन्हें केवल अपने अंदर लगाई गई बैट्री की चार्जिंग की आवश्यकता है।
वहीं दूसरी तरफ बजट का एक अच्छा खासा हिस्सा शिक्षकों के वेतन पर खर्च होता है। दूसरा बिंदु यह है कि मानव शिक्षकों द्वारा समय-समय पर अपनी विभिन्न मांगों को प्रस्तुत किया जाता है। उनके पूर्ण न होने की दशा में विरोध प्रदर्शन भी किया जाता है, जबकि मशीनी शिक्षक कभी किसी तरह की कोई मांग प्रस्तुत नहीं करेंगे, विरोध प्रदर्शन ती बहुत दूर की बात हो गई। कुछ अन्य अंतरों पर गौर करें तो मशीनी शिक्षक विद्यार्थियों को एक ही विषय चाहे जितनी बार पढ़ा सकते हैं, जबकि मानव शिक्षक को एक ही बिंदु अथवा अध्याय की बार बार पुनरावृत्ति करने के लिए कहने पर उन्हें मानसिक तनाव अथवा झुंझलाहट का अनुभव हो सकता है।
इन तकों से तो यही प्रतीत होता है कि एआइ आधारित मशीनी शिक्षक वास्तविक बुद्धि पर आधारित मानव शिक्षकों से हर मामले में बेहतर साबित होंगे, किंतु यह केवल और केवल कोरी कल्पना है। सत्य यही है कि मानवता का स्थान मशीन ले सकती। हां, यदि किसी प्रकार से मशीनों में मानवता एवं भावनाओं का भी समावेश किया जा सके तब उस स्थिति में निस्संदेह हम सब खतरे के दायरे में आ जाएंगे, किंतु ऐसा कर पाना फिलहाल संभव नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि एआइ को शिक्षा के क्षेत्र में किस हद तक दखल देने की अनुमति दी जाए कि वह अपने सकारात्मक पहलुओं का उपयोग करते हुए शिक्षा की प्रगति के उच्चतम स्तर तक ले जाने में सफल हो सके तकनीक के सदैव से ही दो पहलू रहे हैं
सकारात्मक एवं नकारात्मक अथवा वरदान एवं अभिशाप। शिक्षा के क्षेत्र में भी हमें कृत्रिम मेधा के सकारात्मक पहलओं का ही इस्तेमाल करना चाहिए। शिक्षकों की मशीन से प्रतिस्थापित कर देना तो अनुचित है, क्योंकि यह कदम बेरोजगारी जैसी गंभीर समस्या को बढ़ाने का काम करेगा। इससे देश का विकास किया जा सकता है कि शिक्षकों एवं विद्यार्थियों की सहायता के लिए एआइ आधारित सहायक उपलब्ध करा दिए जाएं, किंतु यह भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, क्योंकि विद्यार्थियों की एआइ जैसी सुविधा की खुली छूट मिल जाने पर वे जरा सी समस्या के हल के लिए, एआइ का ही मुंह ताकेंगे। स्वयं कोशिश करके हल ढूंढने एवं रचनात्मक ढंग से कार्यों को अंजाम देने की प्रतिभा धीरे- धीरे उनसे दूर जाने लगेगी।
एक दिन ऐसा होगा, जब वे किसी भी विषय पर अपना स्वतंत्र सीच एवं तर्क प्रस्तुत कर पाने में असमर्थ हो जाएंगे। इसके लिए विद्यार्थियों को स्वयं अच्छे एवं बुरे की पहचान करते हुए सकारात्मक एवं प्रगति की और ले जाने वाली दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए। उन्हें एआइ का प्रयोग केवल आवश्यकता की स्थिति में ही करना चाहिए। शिक्षकों द्वारा कृत्रिम बुद्धिमता का सहारा केवल अपने ज्ञानवर्धन एवं विषय की अद्यतन जानकारी के लिए ही लेना चाहिए। अनुप्रयोगों एवं नवाचारों के माध्यम से शिक्षकों को हमेशा यह सिद्ध करते रहना चाहिए कि मशीनें चाहे कितनी ही उन्नत दशा में क्यों न पहुंच जाएं, वे एक जीते जागते शिक्षकों का मुकाबला कदापि नहीं कर सकतीं।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता को एक वरदान के रूप में देखते हुए हमें इसका उपयोग विषम परिस्थितियों एवं ऐसी स्थिति में करना चाहिए जहां पर मानव सामान्य रूप से कार्य करने में समर्थ नहीं है। उदाहरण के लिए, हमने तीन वर्ष पहले कोविड जैसी महामारी को झेला है। इस महामारी ने प्रत्येक मनुष्य को किसी न किसी रूप में प्रभावित किया है। ऐसे तिरुअनंतपुरम के एक स्कूल में छात्रों से संवादरत आइरिस नामक एआइ शिक्षिका।
पूर्णतया संकटों के समय में शिक्षा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए कृत्रिम मेधा का सहारा लिया जाना चाहिए। निष्कर्षतः यही कहा जा सकता है कि शिक्षा के क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग शिक्षा के स्वरूप एवं स्तर में आमूलचूल परिवर्तन कर सकता है, बशर्ते कि वह प्रयोग बुद्धिमत्ता से किया जाए।
नए दौर में एआइ
एआइ तकनीक आज जीवन के हर आयाम को प्रभावित कर रही है। अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित अर्ध स्पीशीज प्रोजेक्ट (ईएसपी) के तहत किए जा रहे शोध के अनुसार विज्ञानी अब जानवरों के संचार को समझने के लिए एआइ तकनीक का विकास कर रहे हैं। इसके लिए वे मशीन लर्निंग सिस्टम विकसित कर रहे हैं। वर्षों से मशीन लर्निंग का उपयोग मानव भाषाओं का विश्लेषण करने या प्राचीन संचार को समझाने के लिए किया जाता रहा है। इस अध्ययन से पशुओं के संचार को समझने में मदद मिलेगी। इससे दूसरी प्रजातियों के साथ दो तरफा संचार की संभावना भी बढ़ेगी। इस दिशा में साल 2018 में भी जर्मनी के विज्ञानियों ने एक रोबो-बी यानी कृत्रिम मधुमक्खी बनाया था।
प्रयोग के तहत उस कृत्रिम मधुमक्खी को असली मधुमक्खियों के बीच छोड़ा गया था। वह असली मधुमक्खियों को भ्रमित करने में सफल रही थी। उसकी उड़ान को असली मधुमक्खियों ने अनुसरण किया और छत्ते में जाने के लिए उन्होंने रोबोट मधुमक्खी की बात भी मानी। यह भी कहा जा रहा है कि जल्द ही इंसान भी जानवरों से संचार करने में सक्षम हो सकते हैं। इसके लिए विज्ञानी तकनीक के विकास में लगे हुए हैं। जानवरों से संचार करने वाली इस एआइ तकनीक को भविष्य में रोबोट्स में लगाया जा सकेगा, जिससे दो भिन्न प्रजातियों के बीच संचार संभव हो पाएगा।
जहां एक और यह एक बड़ी कामयाबी साबित हो सकती है वहीं इस तकनीक के संभावित नुकसान भी हो सकते हैं, क्योंकि इंसानी दिमाग में जंगली जानवरों को गलत तरीके से नियंत्रित करने और उनके रहन-सहन के साथ छेड़छाड़ करने की भावना आ सकती है। विज्ञानियों ने एक एआइ आधारित एक सिस्टम भी तैयार किया है, जो छह बुनियादी भावनाओं खुशी, आश्चर्य, गुस्सा, घृणा, उदासी और भय को व्यक्त करने वाले चेहरे को पहचानने में सक्षम पाया गया है।
कुल मिलाकर भविष्य में एआइ आधारित ऐसी मशीनें हमारे सामने होंगी, जो इंसानी भावनाओं को पहचानने में सक्षम होंगी। भविष्य में रोबोट और ड्रोन युद्ध के मैदान के अलावा स्वास्थ्य एवं शिक्षा सेवाओं में भी बड़ी भूमिका
निभाते दिखाई देंगे। (डायरेक्टर, मेवाड़ यूनिवर्सिटी
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