क्या आप को पता है चुनाव के बाद नेता क्या कर रहे हें

सत्यता कुछ नही है AI द्वारा बनया गया हैं चित्र हें 

Jun 16, 2024 - 09:13
Jun 16, 2024 - 09:18
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क्या आप को पता है चुनाव के बाद नेता क्या कर रहे हें

केवल एक व्यंग है 

सत्यता कुछ नही है AI द्वारा बनया गया हैं चित्र हें 

चुनाव का शोर थम चुका है, जनता ने अपना निर्णय दे दिया है, और नेतागण अब विभिन्न गतिविधियों में व्यस्त हो गए हैं। चुनाव के दौरान जो नेतागण जनता के बीच मसीहा बने घूम रहे थे, वे अब अपने असली रूप में लौट आए हैं। आइए, देखते हैं कि चुनाव के बाद नेतागण क्या-क्या कर रहे हैं।

विजयी नेता का जीवन बदल गया है 

विजयी नेतागण अब "जनता का सेवक" से "जनता का मालिक" बन चुके हैं। इनके दिन अब वीआईपी ट्रीटमेंट में बीतते हैं। काफिले में गाड़ियों की लंबी कतार, लाल बत्ती वाली गाड़ी और चारों तरफ पुलिस का कड़ा पहरा। जनता के मुद्दे अब इनके एजेंडे में कहीं नहीं हैं, क्योंकि अब तो जीत हासिल हो चुकी है। इनके कार्यक्रमों में शाही दावतें होती हैं, और योजनाएं बनाने की जगह याचिकाएं बनाने पर जोर रहता है।

हारे हुए नेता मुह नहीं दिखा पा रहे हें 

हार का सामना करने वाले नेतागण अब आत्ममंथन में व्यस्त हैं, लेकिन यह आत्ममंथन खुद के नहीं, बल्कि जनता के फैसले का होता है। वे कहते हैं, "जनता को समझ नहीं आया, हमने तो बहुत मेहनत की थी।" ये नेता अब सोशल मीडिया पर हार का दोष ईवीएम मशीन पर डालते हैं और खुद को फिर से जनता का मसीहा साबित करने की कोशिश में जुट जाते हैं। अगले चुनाव की रणनीति अभी से ही बनने लगती है।

गठबंधन के नेता पूछा छुड़ाना चाह रहे हें 

गठबंधन के नेता अब गठबंधन तोड़ने की जुगाड़ में लग गए हैं। चुनाव के दौरान जो गठबंधन "जनता की भलाई" के नाम पर किया गया था, वह अब "हमारे हिस्से की भलाई" में बदल गया है। इन नेताओं की बैठकें अब समझौतों और वाद-विवादों से भरपूर होती हैं।

निर्दलीय नेता भी  हार  चुके हैं 

निर्दलीय नेता जो कभी बड़े-बड़े दावे कर रहे थे, अब फिर से अपने छोटे से ऑफिस में लौट आए हैं। इनका काम अब "हमने तो कोशिश की थी" का प्रचार करना है। जनता से संवाद अब सिर्फ चुनाव के समय ही होगा, अगली बार जब वे निर्दलीय नहीं रहेंगे।

जनता क्या बोलती है नेता के बारे में 

और अब बात करें जनता की। चुनाव के समय जिनके लिए नेता दर-दर भटकते थे, वही जनता अब फिर से अपने मुद्दों को लेकर संघर्ष कर रही है। नेतागण तो अपने-अपने ऐशो-आराम में व्यस्त हो गए हैं, और जनता फिर से उसी गड्ढे वाली सड़क, पानी की कमी और बिजली की कटौती से जूझ रही है।

इस व्यंग्य के माध्यम से हमें यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि नेतागण चाहे किसी भी पार्टी के हों, चुनाव के बाद उनका असली चेहरा सामने आ ही जाता है। और जनता, जिसे हर बार नए वादों के साथ लुभाया जाता है, वही असली नायक है, जो हर बार नई उम्मीदों के साथ फिर से संघर्ष करती है।

 

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