Ayodhya Ram Mandir History in Hindi

साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, राम मंदिर बनकर तैयार है और श्रीराम की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा होने जा रही है। इस मौके पर हम उस इतिहास के बारे में जान लेते हैं जिसने आज के राम मंदिर के स्वरूप की नींव रखी।

Jan 22, 2024 - 09:24
Jun 16, 2024 - 09:26
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Ayodhya Ram Mandir History in Hindi

Historical Facts and Timeline of Ram temple

Ayodhya Ram Mandir History in Hindi:  1528 से 2024 तक की कहानी, इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं राम जन्मभूमि से जुड़े किस्से

Ram Mandir History in Hindi: साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, राम मंदिर बनकर तैयार है और श्रीराम की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा होने जा रही है। इस मौके पर हम उस इतिहास के बारे में जान लेते हैं जिसने आज के राम मंदिर के स्वरूप की नींव रखी।

 

 

Historical Facts and Timeline of Ram temple

Ayodhya Ram Mandir History in Hindi: अयोध्या नगरी कितनी पुरानी है क्या आपको इसका अंदाजा है? भारतीय वेदों और शास्त्रों में भी अयोध्या का जिक्र मिलता है। अथर्ववेद में भी इस नगरी का साक्ष्य मिलता है। हमारी मान्यताओं में अयोध्या नगरी हमेशा से ही श्री राम की जन्मभूमि रही है। अयोध्या का धार्मिक इतिहास तो हमने रामायण में पढ़ा है, लेकिन इसके इतिहास का एक पन्ना विवादित भी है। हम बात कर रहे हैं बाबरी मस्जिद और इससे जुड़ी घटनाओं की। इस वक्त पूरा भारत श्रीराम की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर खुशियों में सराबोर है। ऐसे में क्यों ना इतिहास के गलियारों में एक बार घूम लिया जाए।

 

आज हम उन तारीखों की बात करते हैं, जिन्होंने मौजूदा समय में राम मंदिर का स्वरूप निर्धारित करने में मदद की है। अधिकतर लोगों को लगता है कि यह विवाद 70 सालों से चला आ रहा है, लेकिन इसकी नींव असल में 16वीं सदी में ही रख दी गई थी। हालांकि, उससे पहले भी अयोध्या नगरी में मंदिर और मस्जिद के विवाद रहे हैं, लेकिन आधुनिक इतिहास को हम साल 1528 से ही देख सकते हैं।

 

 

साल 1528-29 के बीच बनाई गई थी बाबरी मस्जिद

अयोध्या का विवाद बाबरी मस्जिद से घिरा हुआ है। इसकी शुरुआत हुई साल 1528 में जब बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद बनवाया। इस मस्जिद को मुगल काल की एक महत्वपूर्ण मस्जिद माना जाता था। वैसे बाबरी मस्जिद का मॉर्डन दस्तावेजों में भी जिक्र है, जैसे साल 1932 में छपी किताब 'अयोध्या: ए हिस्ट्री' में भी बताया गया है कि मीर बाकी को बाबर ने ही हुक्म दिया था कि अयोध्या में राम जन्मभूमि है और यहां के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण करवाना होगा।

 

how babri masjid was made

 

 

बाबर के सिपाही द्वारा बनाई गई इस मस्जिद का नाम बाबरी रख दिया गया। हालांकि, इसे लेकर अभी भी विवाद है कि बाबरी मस्जिद को मंदिर तोड़कर ही बनाया गया था, लेकिन कई किताबें इसका जिक्र जरूर करती हैं कि मंदिर की सामग्री से ही मस्जिद का निर्माण शुरू किया गया था। उस वक्त क्या हुआ था इसे लेकर कई दावे मिलते हैं।

 

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300 साल बाद शुरू हुआ विवाद

मस्जिद के बनने के 300 साल बाद इसे लेकर विवाद की पहली झलक दिखाई दी। अब जो इतिहास शुरू होने वाला था वह लंबी लड़ाई के साथ-साथ विध्वंस की कहानी कहने वाला था।

 

1853 से 1855 के बीच में अयोध्या के मंदिरों को लेकर विवाद शुरू होने लगे। Indian history collective की रिपोर्ट बताती है कि उस वक्त सुन्नी मुसलमानों के एक गुट ने हनुमानगढ़ी मंदिर पर हमला कर दिया था। उनका दावा था कि यह मंदिर मस्जिद को तोड़कर बनाया गया है। हालांकि, इसका कोई भी साक्ष्य नहीं मिला। 

 

सर्वपल्ली गोपाल की किताब 'एनाटॉमी ऑफ अ कन्फ्रंटेशन: अयोध्या एंड द राइज ऑफ कम्युनल पॉलिटिक्स इन इंडिया' में भी इसका जिक्र है। किताब में यह भी कहा गया है कि उस वक्त हनुमानगढ़ी मंदिर बैरागियों के अधीन था और उन्होंने आसानी से मुसलमानों के गुट को हटा दिया था।

 

ram mandir controversy in

 

तत्कालीन नवाब वाजिद अली शाह से इसके बारे में शिकायत भी की गई। अयोध्या तब नवाबों के अधीन थी और इस मामले को सुलझाने के लिए कमेटी बनाई गई। उस कमेटी की जांच रिपोर्ट में सामने आया कि वहां कोई भी मस्जिद था ही नहीं। उस वक्त नवाब वाजिद अली शाह ने हनुमानगढ़ी मंदिर पर एक और हमला रोका था।

 

अंग्रेजी सरकार ने की सुलह की कोशिश

एक रिपोर्ट कहती है कि साल 1858 में निहंग सिखों के एक दल ने बाबरी मस्जिद के अंदर घुसकर हवन-पूजन किया था। उस वक्त इस घटना के खिलाफ पहली बार एफआईआर की गई थी और लिखित में यह विवाद सामने आया था। उसमें लिखा गया था कि अयोध्या में मस्जिद की दीवारों पर राम का नाम लिख दिया गया है और उसके बगल में एक चबूतरा बना है।

 

साल 1859 में अंग्रेजी सरकार ने इसके बीच एक दीवार खड़ी कर दी, जिससे हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष शांति से अलग-अलग स्थान पर पूजा और इबादत कर सकें। यहीं से पहली बार राम चबूतरा शब्द प्रचलन में आया था।

 

साल सन 1885 में पहली बार कोर्ट पहुंचे थे राम लला

Supreme Court Observer (SCO) की रिपोर्ट बताती है कि यह पहली बार था जब राम मंदिर विवाद कोर्ट पहुंचा था।

 

यहां महंत रघुवीर दास ने राम चबूतरे पर मंदिर बनवाने की याचिका दायर की थी। फैजाबाद डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने यह याचिका खारिज कर दी थी, तब फैजाबाद कोर्ट में रघुवीर दास की याचिका गई थी। उस वक्त केस की सुनवाई कर रहे जज पंडित हरि किशन ने इस याचिका को रद्द कर दिया था।

 

उस वक्त पहली बार निर्मोही अखाड़ा सामने आया था और लोगों को उसके बारे में पता चला था। महंत रघुवीर दास उसी अखाड़े से थे।

 

इसके बाद भी रघुवीर दास ने हार नहीं मानी और अंग्रेजी सरकार के जज से गुहार लगाई, लेकिन यहां भी याचिका को खारिज कर दिया गया।

 

यह मामला यहीं दब गया और अगले 48 सालों तक मामला ठंडे बस्ते में रहा और छुट-फुट शांतिपूर्ण विरोध होते रहे।

 

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साल 1930 का दौर, जब शुरू हुआ अयोध्या का नया अध्याय

सबसे पहले साल 1936 में मुसलमानों के दो समुदाय शिया और सुन्नी की लड़ाई हुई। दोनों ही बाबरी मस्जिद पर अपना हक जता रहे थे। इसकी बात दोनों समुदायों के वक्फ बोर्ड तक पहुंची और दोनों की लड़ाई 10 साल तक खिंच गई। इस लड़ाई में जज द्वारा जो फैसला आया उसमें शिया समुदाय के दावों को खारिज कर दिया गया।

 

babri masjid demolition

 

साल 1947 के बाद से बदल गई अयोध्या की राजनीति

मॉर्डन समय में जब भी अयोध्या की बात होती है, तो उसमें राजनीति शब्द जरूर सामने आता है। हालांकि, इसकी शुरुआत बंटवारे के बाद ही हुई। पाकिस्तान का वजूद बना और अयोध्या में अब हिंदू महासभा का हस्तक्षेप सामने आया।

 

कृष्णा झा और धीरेन्द्र के झा की किताब 'अयोध्या- द डार्क नाइट' सहित कई किताबें इस बारे में कहती हैं कि 1947 का अंत होते-होते हिंदू महासभा द्वारा एक मीटिंग रखी गई थी जिसमें बाबरी मस्जिद पर कब्जे की बात कही गई थी। इसके बाद के चुनावों में पहली बार कांग्रेस पार्टी ने राम मंदिर को मुद्दा बनाया था।

 

कांग्रेस के इस मुद्दे के बाद कोई और पार्टी  कहीं टिक नहीं पाई और फैजाबाद में भी कांग्रेस जीत गई।

 

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साल 1949 में बाबरी मस्जिद में मिली राम लला की मूर्ति

अब तक हालात काफी खराब हो चुके थे। गाहे-बगाहे खबरें आती रही कि हिंदू पक्ष ने बाबरी मस्जिद पर कब्जा कर लिया है, लेकिन तब तक ऐसा नहीं हुआ था। वहां के हालात को सुधारने के लिए कानूनी मदद ली गई, लेकिन साल 1949 की एक रात वहां राम मूर्ति मिलने का दावा किया गया।

 

babri masjid and ram statue

 

इस घटना के बाद हालात इतने गंभीर हो गए कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संज्ञान लिया। महज 6 दिनों के अंदर ही बाबरी मस्जिद पर ताला लगा दिया गया। उस वक्त हिंदू पक्ष ने दावा किया था कि राम लला की मूर्ति अपने- आप वहां प्रकट हुई है, लेकिन इस दावे को खारिज कर दिया गया।

 

साल 1950 में एक बार फिर से किया गया केस

दो अलग-अलग केस फैजाबाद कोर्ट में दाखिल किए गए और हिंदू पक्ष ने रामलला की पूजा की आज्ञा मांगी। हालांकि, कोर्ट ने इजाजत तो दे दी, लेकिन अंदरूनी गेट को बंद ही रखा गया।

 

साल 1959 में निर्मोही अखाड़े ने एक तीसरा लॉ सूट फाइल किया, जिसमें उन्होंने बाबरी मस्जिद की जमीन पर अधिकार मांगा। ऐसे ही साल 1961 में मुस्लिम पक्ष ने एक केस फाइल किया जिसमें यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा कि उन्हें बाबरी मस्जिद ढांचे पर हक चाहिए और राम की मूर्तियों को यहां से हटा दिया जाना चाहिए। 

 

साल 1984 से एक बार फिर से गरमाया राम जन्मभूमि का विवाद

इस समय अयोध्या ने अपना सबसे बड़ा राजनीतिक दौर देखा। यह वक्त था, जब राम मंदिर आंदोलन की शुरुआत हुई थी। इसी समय बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी को इस आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए चुना गया था।

 

साल 1986 में राजीव गांधी सरकार के आदेश पर बाबरी मस्जिद के अंदर का गेट खोला गया। दरअसल, उस वक्त लॉयर यूसी पांडे ने फैजाबाद सेशन कोर्ट में याचिका दायर की थी कि फैजाबाद सिटी एडमिनिस्ट्रेशन ने इसका गेट बंद करने का फैसला सुनाया था, इसलिए इसे खोला जाना चाहिए। तब हिंदू पक्ष को यहां पूजा और दर्शन की अनुमति भी दे दी गई और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने इसके खिलाफ प्रोटेस्ट भी किया।

 

साल 1989 में रखी गई थी राम मंदिर की नींव

उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विश्व हिंदू परिषद को विवादित जगह पर शिलान्यास करने की अनुमति दे दी थी। इसके बाद, पहली बार रामलला का नाम इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा था, जिसमें निर्मोही अखाड़ा (1959) और सुन्नी वक्फ बोर्ड (1961) ने रामलला जन्मभूमि पर अपना दावा पेश किया।

 

ayodya rath yatra by l k advani

 

साल 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर से लेकर अयोध्या तक रथ यात्रा की शुरुआत की। यह बहुत ही विवादित दौर था।

 

अयोध्या वासियों ने बताई उस वक्त की आंखों देखी

हमने दिल्ली यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल साइंस प्रोफेसर और अयोध्या के निवासी शिवपूजन पाठक से बात की। उन्होंने हमें बताया, "उस दौरान अयोध्या वासियों के ऊपर ही कारसेवकों के लिए व्यवस्था का कार्यभार था। चारों तरफ पुलिस तैनात रहती थी और रातों- रात कार सेवकों को रहने के लिए जगह दी जाती थी। स्कूलों में भी उन्हें रुकवाया गया था। उस वक्त चारों तरफ सिर्फ परेशानी का माहौल रहता था और समझ नहीं आता था कि आने वाले पल में क्या हो जाएगा।"

 

साल 1992 में गिराई गई बाबरी मस्जिद

6 दिसंबर 1992 का वो दिन जब बाबरी मस्जिद को गिराया गया था। भारत के इतिहास में यह दिन दर्ज है। कारसेवकों ने यहां एक अस्थाई मंदिर की स्थापना भी कर दी थी।

 

मस्जिद गिराने के 10 दिन बाद प्रधानमंत्री ने रिटायर्ड हाई कोर्ट जस्टिस एम.एस. लिब्रहान को लेकर एक कमेटी बनाई, जिसमें मस्जिद को गिराने और सांप्रदायिक दंगों को लेकर एक रिपोर्ट बनानी थी। 

 

जनवरी 1993 आते-आते अयोध्या की जमीन को नरसिम्हा राव की सरकार ने अपने अधीन ले लिया और 67.7 एकड़ जमीन को केंद्र सरकार की जमीन घोषित कर दिया गया।

 

साल 1994 में इस्माइल फारूकी जजमेंट आया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट SC ने 3:2 के बहुमत से अयोध्या में कुछ क्षेत्रों के अधिग्रहण अधिनियम की संवैधानिकता को बरकरार रखा। इस जजमेंट में यह भी कहा गया था कि कोई भी धार्मिक जगह सरकारी हो सकती है।

 

साल 2002 में बढ़ने लगी राम मंदिर की मांग

अप्रैल 2002 में अयोध्या टाइटल डिस्प्यूट शुरू हुआ और इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में हियरिंग शुरू हुई।

 

अगस्त 2003 में ASI (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) ने मस्जिद वाली जगह पर खुदाई शुरू की और यह दावा किया कि इसके नीचे 10वीं सदी के मंदिर के साक्ष्य मिले हैं।

 

साल 2009 में अपने गठन के 17 सालों बाद लिब्राहन कमीशन ने रिपोर्ट सबमिट की। हालांकि, इस रिपोर्ट में क्या था वह सामने नहीं आया।

 

30 सितंबर 2010 अयोध्या मामले का ऐतिहासिक फैसला

अब तक अयोध्या की जमीन को हर पक्ष अपने लिए मांग रहा था, लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस जमीन को तीन हिस्सों में बांट दिया। इसके तहत 1/3 हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को, 1/3 हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को और 1/3 हिस्सा राम लला विराजमान को दिया गया।

 

इस फैसले ने पूरे देश में विवादों को जन्म दिया। इसके खिलाफ एक बार फिर से याचिका दायर हुई और साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की रूलिंग को रोक दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस हियरिंग को लेकर कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट का जजमेंट अजीब है, क्योंकि तीनों में से किसी भी पार्टी ने इसके लिए गुहार नहीं लगाई थी।

 

साल 2017 आते-आते चीफ जस्टिस खेहर ने तीनों पार्टियों को आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट के बारे में कहा। इसपर एक बार फिर से बहस शुरू हुई।

 

साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला दिया। हालांकि, तो लेकिन उसे जगजाहिर नहीं किया गया। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बेंच के तहत उनके फैसले की जांच करने को मना कर दिया था।

 

साल 2019 में आखिरकार आया ऐतिहासिक फैसला

चीफ जस्टिस गोगोई ने साल 2019 में 5 जजों की बेंच बनाई और पुराने 2018 वाले फैसले को खारिज कर दिया। 8 मार्च 2019 को दो दिन की सुनवाई के बाद जमीनी विवाद को आपसी सहमति से सुलझाने की बात एक बार फिर से कही गई।

 

नवंबर 2019 आते-आते सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू पक्ष के हित में फैसला सुनाया और राम मंदिर को एक ट्रस्ट के जरिए बनवाने का आदेश दिया। इसके साथ सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन दी गई, जहां अयोध्या में मस्जिद बनवाया जाना था। दिसंबर तक इस मुद्दे पर कई पिटीशन फाइल की गई और सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को खारिज कर दिया।

 

फरवरी 2020 को श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की स्थापना हुई। लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी घोषणा की।

 

सुन्नी वक्फ बोर्ड ने 5 एकड़ जमीन को स्वीकार किया और अगस्त 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर का शिलान्यास किया।

 

साल 2020 में शुरू हुआ राम मंदिर का निर्माण

आधिकारिक रूप से शुरू हो गया। 5 फरवरी 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाया गया। अगस्त 2020 में राम मंदिर की आधारशिला रखी गई।

 

साल 2023 में हुआ राम मंदिर का उद्घाटन

आखिरकार, 22 जनवरी 2024 आ गया और इस दिन राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा भी हो गई। अब यह मंदिर आम लोगों के लिए खोल दिया जाएगा और अयोध्या में आकर लोग श्री राम के बाल रूप के दर्शन कर पाएंगे।

 

अब 22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ही रामलला की मूर्ति का प्राण-प्रतिष्ठा किया जाना है।

 

नोट: इस स्टोरी में किसी भी तरह का धार्मिक या राजनीतिक ओपिनियन नहीं दिया गया है। यहां सिर्फ तथ्यों की चर्चा की गई है। इन तथ्यों को DU के प्रोफेसर द्वारा सत्यापित भी किया गया है। अगर आपको इससे जुड़ी कोई भी आपत्ति है, तो हमें कमेंट बॉक्स में बताएं।

 

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पाठ- २

अयोध्या राम मंदिर: जानें इस भव्य मंदिर से जुडी हर छोटी-बड़ी जानकारी

 

आइए अयोध्या राम मंदिर के ऐतिहासिक महत्व, निर्माण लागत, विशेषताओं इत्यादि के बारे में जानें।

उत्तर प्रदेश के अयोध्या ज़िले में स्थित राम जन्मभूमि मंदिर हिन्दू धर्म के अनुयायिओं के लिए काफी मान्यता रखता है। प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 135 किलोमीटर दूर स्थित इस भव्य मंदिर का उद्घाटन 22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों किया गया। अपने इस लेख में, हम अयोध्या राम जन्मभूमि मंदिर के बारे में आपको हर छोटी बड़ी जानकारी देंगे।

 

Table of Contents

अयोध्या जन्मभूमि राम मंदिर: मुख्य तथ्य

अयोध्या राम जन्मभूमि मंदिर का इतिहास (History of Ram Temple)

राम मंदिर शिलान्यास समारोह (Ram Mandir foundation stone laying ceremony)

राम मंदिर का डिजाइन (Ram Mandir Design)

अयोध्या राम मंदिर के वास्तुकार (Architect of Ram Mandir)

अयोध्या राम मंदिर में इस्तेमाल हुआ बिल्डिंग मटेरियल

अयोध्या राम मंदिर का आकार (Ayodhya Ram mandir size)

अयोध्या राम मंदिर भगवान की मूर्ति (Idol of God)

अयोध्या राम मंदिर: टाइमलाइन (Ayodhya Ram Mandir: Timeline)

अयोध्या में हो रहा है चहुमुखी विकास

अयोध्या राम मंदिर की ताज़ा तसवीरें

अयोध्या राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा समारोह की तस्वीरें

रामलला की मूर्ति

अयोध्या राम मंदिर गर्भगृह फोटो

अयोध्या राम मंदिर का रात्रि दृश्य

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

अयोध्या जन्मभूमि राम मंदिर: मुख्य तथ्य

वास्तुकला     नागर वास्तुकला शैली

निर्माण की देखरेख करने वाली एजेंसी  श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट

बिल्डर्स लार्सन एंड टुब्रो, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज

डिजाइनर     चंद्रकांत भाई सोमपुरा

पूर्ण होने का वर्ष      2024

उद्घाटन की तिथि    22 जनवरी 2024

क्षेत्रफल 2.7 एकड़

नींव   14 मीटर मोटी

प्लिंथ  21 फुट ऊंचा

मंजिल 3

लंबाई  380 फुट

चौड़ाई  235 फुट

ऊंचाई  161 फुट

मंदिर के गर्भगृह का आकार   अष्टकोणीय

संरचना परिधि का आकार     गोलाकार

मंदिर में प्रयुक्त सामग्री सफेद राजस्थान मकराना संगमरमर

चार्माउथी बलुआ पत्थर

 

राजस्थान के बंसी पहाड़पुर से गुलाबी बलुआ पत्थर

 

उत्तर प्रदेश से पीतल के बर्तन

 

महाराष्ट्र से पॉलिश की गई सागौन की लकड़ी

 

मंडपों की संख्या 5

मंडपों के नाम  नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप, कीर्तन मंडप

स्तम्भों की संख्या     392

दरवाजों की संख्या     44

रामलला की नई मूर्ति का साइज 51 इंच

रामलला की मूर्ति के लिए प्रयुक्त सामग्री      काला पत्थर

रामलला की मूर्ति के डिजाइनर अरुण योगीराज

अनुमानित लागत     1,400 करोड़ रुपये से 1,800 करोड़ रुपये के बीच.

अयोध्या राम जन्मभूमि मंदिर का इतिहास (History of Ram Temple)

सनातन धर्म में श्रीराम को भगवान विष्णु (Lord Vishnu) का सातवां अवतार माना जाता है। वो दुनिया में व्यापक रूप से पूजे जाने वाले राजा हैं। प्राचीन महाकाव्य वाल्मीकि रामायण (Valmiki Ramayana) में बताया गया है कि प्रभु श्रीराम का जन्म त्रेतायुग में अयोध्या में हुआ था। अयोध्या में जहां पर उनका जन्म हुआ था उस जगह को राम जन्मभूमि (Ram janmbhoomi) के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि 15वीं शताब्दी में मुगल शासकों ने राम जन्मभूमि पर एक मस्जिद का निर्माण करवाया था। सनातन धर्म के अनुयाइयों का कहना है कि इस मस्जिद का निर्माण मुगलों ने राम जन्मभूमि पर मंदिर को खंडित करके करवाया था। हिंदुओं के इस दावे के बाद साल 1850 से इस मामले में विवाद होना शुरू हो गया था।

 

इसके बाद कई बार विश्व हिन्दू परिषद् ( Vishwa Hindu Parishad) ने विवादित जगह पर राम मंदिर बनाने की घोषणा की। इसके लिए 1990 के दशक में विश्व हिन्दू परिषद् ने “श्री राम” लिखी ईंटें और धनराशि एकत्रित की। एक समय पर सरकार ने  विश्व हिन्दू परिषद् को मंदिर बनाने की अनुमति दे दी थी। लेकिन कुछ कारणों की वजह से वहां मंदिर का निर्माण शुरू नहीं हो सका। इस बीच मंदिर को लेकर विवाद बढ़ता गया और साल 1992 में इस विवाद ने हिंसक रूप ले लिया। साल 1992 में बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिरा दिया गया। इसके बाद साल 2019 में भारत के सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने फैसला सुनाया कि विवादित जगह को सरकार एक ट्रस्ट को सौंप दे। जिसके बाद सरकार ने श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट (Shri Ram Janmbhoomi Teerth Kshetra Trust) का गठन करके वह जमीन ट्रस्ट को सौंप दी है। ट्रस्ट ने मार्च 2020 से राम मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया है। जिसके आगामी साल 2024 में पूरा होने की संभावना है।

 

 

 

राम मंदिर शिलान्यास समारोह (Ram Mandir foundation stone laying ceremony)

श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का शिलान्यास भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त 2020 को दोपहर 12 बजे किया। इस दौरान आधारशिला के रूप में पीएम नरेंद्र मोदी ने चांदी की ईंट की स्थापना की। इसके पहले श्रीराम जन्मभूमि पर पंडितों ने तीन दिवसीय वैदिक अनुष्ठान किए। इस दौरान भगवान राम की पूजा की गई और मंदिर के शिलान्यास में सभी प्रमुख देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया। भारत के कई धार्मिक स्थानों से मिट्टी और पवित्र पानी लाया गया। इस दौरान पाकिस्तान की शारदा पीठ से भी मिट्टी लाई गई। साथ ही गंगा, सिन्धु, यमुना, सरस्वती और कावेरी नदी का जल अर्पित किया गया। शिलान्यास समारोह के उत्सव में अयोध्या में मंदिरों में 7 हजार से ज्यादा दिए जलाए गए।

 

अयोध्या में भगवान राम का मंदिर 2.7 एकड़ भूमि में बन रहा है। जिसमें 54,700 वर्गफुट भूमि शामिल है। राम का मंदिर का पूरा परिसर लगभग 70 एकड़ भूमि में तैयार हो रहा है। इस परिसर में इतनी जगह होगी कि लाखों भक्त एकसाथ मंदिर में भगवान राम के दर्शन कर सकेंगे। राम मंदिर का निर्माण कार्य श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के देखरेख में लार्सन एंड टूब्रो कंपनी कर रही है। इस मंदिर का निर्माण राजस्थान के बंसी पर्वत के बलुआ पत्थरों से हो रहा है।

 

 

 

राम मंदिर का डिजाइन (Ram Mandir Design)

मंदिर का डिजाइन चंद्रकांत सोमपुरा (Chandrakant sompura) ने अपने बेटों के साथ बनाई है। चंद्रकांत सोमपुरा को इस मंदिर का डिजाइन बनाने के लिए साल 1992 में नियुक्त किया गया था। चंद्रकांत सोमपुरा ने बताया है कि नागर शैली में बनाए जा रहे इस मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व की ओर बनाया जाएगा जो गोपुरम शैली में होगा। यह द्वार दक्षिण के मंदिरों का प्रतिनिधित्व करेगा। मंदिर की दीवारों पर भगवान राम के जीवन को दर्शाने वाली कलाकृतियां प्रदर्शित होंगी।

 

अयोध्या राम मंदिर के वास्तुकार (Architect of Ram Mandir)

सबसे पहले राम मदिर की डिजाइन साल 1988 में अहमदाबाद के सोमपुरा परिवार के द्वारा तैयार की गई थी। सोमपुरा परिवार के लोग पिछले 15 पीढ़ियों से मंदिरों की डिजाइन बना रहे हैं और अब तक 100 से ज्यादा मंदिरों की डिजाइन बना चुके हैं। साल 2020 में जब राम मंदिर का निर्माण शुरू हुआ तो मंदिर के पुराने डिजाइन में कुछ बदलाव करके उसे स्वीकार कर लिया गया और उसी के अनुसार मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। राम मंदिर  235 फीट चौड़ा, 360 फीट लंबा और 161 फीट ऊंचा होगा। यह मंदिर नागर शैली में बनाया जा रहा है। नागर शैली भारतीय मंदिर निर्माण की वास्तुकला के प्रकारों में से एक है। इस मंदिर के मुख्य वास्तुकार चंद्रकांत सोमपुरा और उनके दो बेटे निखिल सोमपुरा और आशीष सोमपुरा हैं।

 

वास्तुकारों ने मंदिर परिसर में प्रार्थना कक्ष, राम कथा कुंज, वैदिक पाठशाला, संत निवास, यति निवास, संग्रहालय और कैफेटेरिया को डिजाइन किया है। मंदिर के साथ इनका निर्माण भी किया जा रहा है। अयोध्या का राम मंदिर बेहद विशाल होगा। कहा जा रह है कि जब यह मंदिर पूरी तरह से बनकर तैयार हो जाएगा तो यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हिंदू मंदिर होगा।

 

 

 

अयोध्या राम मंदिर में इस्तेमाल हुआ बिल्डिंग मटेरियल

मंदिर का मुख्य भाग राजसीठाठ-बाट लिए हुए है। यह राजस्थान के मकराना संगमरमर की प्राचीन श्वेत शोभा से सुसज्जितहै। इस मंदिर में देवताओं की उत्कृष्ट नक्काशी कर्नाटक के चर्मोथी बलुआ पत्थर पर की गई है। जबकि, प्रवेश द्वार की भव्य आकृतियों में राजस्थान के बंसी पहाड़पुर के गुलाबी बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है। मंदिर में गुजरात की उदारता उपहार स्वरूप 2100 किलोग्राम की शानदार अष्टधातु घंटी के रूप में दिखती हैजो इसके हॉलों में दिव्य धुन के रूप में गूंजेगी। इस दिव्य घंटी के साथ, गुजरात ने एक विशेष ‘नगाड़ा’ ले जाने वाला अखिल भारतीय दरबार समाज द्वारा तैयार 700 किलोग्राम का रथ भी उपहार स्वरूपदिया है। भगवान राम की मूर्ति बनाने में इस्तेमाल किया गया काला पत्थर कर्नाटक से आया है। हिमालय की तलहटी से अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा ने जटिल नक्काशीदार लकड़ी के दरवाजे और हस्तनिर्मित संरचना पेश किए हैं,जो दिव्य क्षेत्र के प्रवेश द्वार के रूप में खड़े हैं। पीतल के बर्तन उत्तर प्रदेश से तो पॉलिश की हुई सागौन की लकड़ी महाराष्ट्र से आई है।

 

अयोध्या राम मंदिर का आकार (Ayodhya Ram mandir size)

मंदिर का आकार मौजूदा ढांचे से तीन गुना बड़ा होगा। मंदिर का गर्भगृह अष्टकोणीय आकार का होगा, जबकि संरचना की परिधि गोलाकार होगी। गर्भगृह का निर्माण मकराना मार्बल से किया जा रहा है। मंदिर 161 फीट ऊंचा होगा जिसमें पांच गुंबद और एक टावर होगा। मंदिर को तीन मंजिला बनाया जा रहा है। गर्भ गृह को ऐसे डिजाइन किया गया है ताकि सूर्य की किरणें सीधे रामलला पर पड़ें। रामलला भगवान श्रीराम के शिशु अवतार हैं। मंदिर में गर्भ गृह की तरह गृह मंडप पूरी तरह से ढंका होगा, जबकि कीर्तन मंडप, नृत्य मंडप, रंग मंडप और दो प्रार्थना मंडप खुले रहेंगे।

 

मंदिर में खिड़कियां और दरवाजे भी लगाए जाएंगे। मंदिर में लगने वाले सभी दरवाजे और खिड़कियां सागौन की लकड़ी से बनाए जाएंगे। यह बेहद मजबूत लकड़ी होती है जिसकी उम्र लगभग 100 साल के आस पास होती है। इन लकड़ियों को महाराष्ट्र के चंद्रपुर से मंगवाया गया है। लकड़ियों की पहली खेप अयोध्या पहुंच चुकी है। 26 से 30 जून के बीच अनुष्ठान के बाद मंदिर के लिए खिड़कियां और दरवाजे बनाने का कार्य प्रारंभ किया जाएगा। खिड़की और दरवाजे कुशल कारीगरों के हाथों से बनाए जाएंगे।

 

अयोध्या राम मंदिर भगवान की मूर्ति (Idol of God)

मंदिर में भगवान की 2 मूर्तियां रखी जाएंगी। एक वास्तविक मूर्ति होगी जो 1949 में मिली थी और दशकों तक तंबू में रही है। दूसरी नयी विशाल प्रतिमा काफी दूर से दिखाई देगी। निर्माण कार्य की देखरेख करने वाले ट्रस्ट ने 15 जनवरी को कहा कि अरुण योगीराज द्वारा बनाई गई भगवान राम की एक गहरे रंग की मूर्ति को अयोध्या राम मंदिर के गर्भगृह में स्थापना के लिए चुना गया है। राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अनुसार सचिव चंपत राय, ट्रस्ट के 15 सदस्यों में से 11 ने मैसूर के कलाकार योगीराज द्वारा बनाई गई मूर्ति के पक्ष में मतदान किया। “भगवान श्री राम लला की बनी मूर्ति पांच साल के बच्चे के रूप में है। यह प्रतिमा 51 इंच ऊंची है, जो काले पत्थर से बनी है और बहुत ही आकर्षक ढंग से बनाई गई है, ” राय ने मीडिया को बताया। राय ने कहा मूर्ति तीन-मंजिला मंदिर के भूतल पर रखी जाएगी।

 

मंदिर में 2,100 किलो का एक विशाल घंटा लगाया जाएगा। जो 6 फुट ऊंचा और 5 फुट चौड़ा होगा। इसके अलावा मंदिर में विभिन्न आकार के 10 छोटे घंटे भी लगाए जाएंगे। जिनका वजन 500, 250, 100 किलो होगा। घंटों का निर्माण पीतल के साथ अन्य धातुओं को मिलाकर किया जाएगा। इन घंटों का निर्माण  जलेसर, एटा की फर्म सावित्री ट्रेडर्स कर रही है। एटा का जलेसर पूरी दुनिया मे घुंघरू और घंटी उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। यहां के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी इन चीजों का निर्माण कर रहे हैं। देश के कई  मंदिरों में जलेसर के बने हुए घंटे लगे हैं।

 

 

 

अयोध्या राम मंदिर: टाइमलाइन (Ayodhya Ram Mandir: Timeline)

1528-1529: मुगल बादशाह बाबर ने बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया।

 

1850: जमीन को लेकर सांप्रदायिक हिंसा की शुरुआत हुई।

 

1949: मस्जिद के अंदर राम की मूर्ति मिली, सांप्रदायिक तनाव तेज हुआ।

 

1950: मूर्ति पूजा की अनुमति के लिए फैजाबाद सिविल कोर्ट में दो मुकदमे दायर किए गए।

 

1961: यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने मूर्ति को हटाने की मांग की।

 

1986: जिला अदालत ने हिंदू उपासकों के लिए स्थल खोला।

 

1992: 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद को गिराया गया।

 

2010: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित क्षेत्र को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया।

 

2011: उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाई।

 

2016: सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, राम मंदिर के निर्माण की मांग की।

 

2019: सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया कि अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि थी, पूरी 2.77 एकड़ विवादित भूमि ट्रस्ट को सौंप दी और सरकार को वैकल्पिक स्थल के रूप में सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया।

 

2020: पीएम मोदी ने भूमि पूजन किया और शिलान्यास किया।

 

 

 

अयोध्या में हो रहा है चहुमुखी विकास

भगवान श्रीराम के दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो, इसको ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश की सरकार ने कमर कस ली है। अभी तक उत्तर प्रदेश सरकार ने अयोध्या में 32 हजार करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं का शुभारंभ किया है। इसके तहत अयोध्या को एक सुंदरतम नगरी के रूप में विकसित किया जा रहा है। साथ ही अयोध्या में अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बनाया जा रह अहै ताकि यात्रियों को आने में परेशानी न हो। इसके साथ ही अयोध्या के रेलवे स्टेशन को आधुनिक स्टेशन के रूप में विकसित किया जा रहा है। इनके अलावा मठ-मदिरों का सुंदरीकरण किया जा रहा है और शहर में फोर लेन और सिक्स लेन मार्गों का निर्माण किया जा रहा है।

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