रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर 'दहन' किया जाएगा अकबर
500वें जन्मशती वर्ष में नई परंपरा की शुरुआत, अकबर के सेनापति का भी पुतला जलाया जाएगा
रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर 'दहन' किया जाएगा अकबर
500वें जन्मशती वर्ष में नई परंपरा की शुरुआत, अकबर के सेनापति का भी पुतला जलाया जाएगा
मध्य प्रदेश के गढ़ मंडला की वीरांगना रानी दुर्गावती का 500वें जन्मशती समारोह यादगार बनाने के लिए पहली बार उनके बलिदान दिवस (24 जून) पर मुगल शासक अकबर और उनके सेनापति आसफ खां के पुतलों का दहन किया जाएगा। इसे एक नई परंपरा के रूप में शुरू किया जा रहा है। इसके बाद हर वर्ष इस दिन विशेष पर पुतलों का दहन किया जाएगा।
बालाघाट जिले में पुतला दहन जनजातीय बहुल क्षेत्र बैहर में होगा। बता दें कि उत्तर प्रदेश के महोबा के राजा कीर्ति सिंह चंदेल की सुपुत्री रानी दुर्गावती का विवाह 1542 में मध्य प्रदेश के गढ़ मंडला के राजा दलपत शाह के साथ हुआ था। रानी दुर्गावती ने मुगल साम्राज्य के विस्तार का विरोध किया था और अकबर और उनके सेनापति आसफ खां से युद्ध लड़कर अपना परचम लहराया था।
गौरवशाली इतिहास का प्रचार है मकसद: जनजातीय समाज अपने गौरवशाली इतिहास को जान और समझ सके, इसके लिए बिरसा मुंडा ट्राइबल स्टडी सर्कल व महारानी दुर्गावती पंचशती जयंती समारोह समिति बलिदान दिवस को मध्य प्रदेश के साथ ही पूरे देश में मनाने की कवायद कर रही है। आयोजक इस प्रयास में भी हैं कि 24 जून को देशभर में अकबर व आसफ खां के पुतले जलाए जाएं। समिति के प्रदेश महामंत्री डा. घनश्याम परते ने बताया कि रानी दुर्गावती व आसफ खां के बीच हुए युद्ध का नाटकीय मंचन भी किया जाएगा।
रानी दुर्गावती के नाम का खास महत्वः पांच अक्टूबर, 1524 में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में राजा कीर्ति सिंह चंदेल के घर जन्मी दुर्गावती का जन्म दुर्गा अष्टमी के दिन हुआ था। यही वजह है कि उनका नाम भी दुर्गावती रखा गया। रानी अपने पिता की इकलौती संतान थीं। उन्हें बचपन से ही घुड़सवारी, तलवारबाजी, तीरंदाजी जैसी युद्ध कलाओं की शिक्षा मिली थी। 18 वर्ष की उम्र में उनका विवाह गोंड राजवंश के राजा संग्राम शाह के बड़े बेटे दलपत शाह से हो गया था। 24 जून 1564 को उन्होंने प्राणोत्सर्ग कर लिया था।
तीन बार किया मुगल सेना का सामना यह पहला मौका था, जब किसी राजपूत राजकुमारी का गोंड वंश में विवाह हुआ था। 1545 में बेटे वीर नारायण का जन्म हुआ। 1550 में पति का निधन हो गया। पांच साल के राजकुमार को सिंहासन पर बैठाकर रानी ने कामकाज का जिम्मा संभाल लिया। दो वर्ष बाद ही सुल्तान बाज बहादुर को रानी ने युद्ध में पराजित कर दिया। इसके बाद अकबर की सेना के प्रमुख आसफ खां ने 1562 में राज्य पर हमला बोला। रानी ने बेटे के साथ तीन बार मुगल सेना का सामना किया।
उनकी हजारों की फौज के सामने रानी के 500 सिपाही कम पड़ गए। युद्ध में रानी का सेनापति मारा गया तो रानी ने खुद को सेनापति घोषित कर दिया। अगले वर्ष फिर हुए मुगलों के हमले में रानी के पास सिर्फ 300 सैनिक ही शेष थे। बाद के युद्ध में उनके और सैनिक कम हो गए। हार नजदीक देख रानी ने प्राणोत्सर्ग कर लिया था।
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