राष्ट्रवादी पत्रकारिता के अग्रदूत के.नरेन्द्र   

श्री के.नरेन्द्र के घर का वातावरण स्वाधीनता आंदोलन से अनुप्राणित था।  कांग्रेस के बड़े नेता तथा क्रांतिकारी वहां आते रहते थे। लाला लाजपत राय तथा भाई परमानंद से प्रेरित होकर इनके बड़े भाई

Apr 23, 2024 - 09:40
Apr 22, 2024 - 09:01
 0

राष्ट्रवादी पत्रकारिता के अग्रदूत के.नरेन्द्र   



श्री के.नरेन्द्र उन राष्ट्रवादी पत्रकारों में अग्रणी थे, जो देश और धर्म पर होने वाले आक्रमणों के विरुद्ध आजीवन अपने पाठकों को जाग्रत करते रहे। उनका जन्म 24 अप्रैल, 1914 को लाहौर में उर्दू के प्रखर पत्रकार महाशय कृष्ण जी के घर में हुआ था। अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए उन्होंने उर्दू के साथ ही हिन्दी पत्रकारिता में भी नये मानदंड स्थापित किये।

श्री के.नरेन्द्र के घर का वातावरण स्वाधीनता आंदोलन से अनुप्राणित था।  कांग्रेस के बड़े नेता तथा क्रांतिकारी वहां आते रहते थे। लाला लाजपत राय तथा भाई परमानंद से प्रेरित होकर इनके बड़े भाई श्री वीरेन्द्र खुलकर क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे। उन्होंने भगतसिंह के साथ अनेक अभियानों में भाग लिया। भगतसिंह की फांसी वाले दिन वे लाहौर जेल में ही थे। 

महाशय जी लाहौर के एक प्रमुख आर्य समाजी नेता थे। हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुस्थान के प्रबल समर्थक होने के कारण उन्हें जेहादियों की ओर से प्रायः हत्या की धमकियां मिलती रहती थीं; पर वे कभी उनसे भयभीत नहीं हुए। अप्रैल, 1926 में ‘रंगीला रसूल’ के प्रकाशक श्री राजपाल जी की हत्या के बाद उन्होंने सबसे पहले इसकी निंदा में अपने पत्र ‘प्रताप’ में लेख लिखा था।

अपने पिता और बड़े भाई के प्रभाव से श्री नरेन्द्र भी स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय हो गये। पुलिस से लुकाछिपी चलती रहने के कारण उनके विद्यालय के अंग्रेज प्राचार्य ने उन्हें प्रवेश देने से मना कर दिया।विभाजन के बाद महाशय जी को लाहौर छोड़ना पड़ा। उन्होंने दिल्ली आकर हिन्दी में ‘वीर अर्जुन’ तथा उर्दू में ‘प्रताप’ समाचार पत्र निकाले। थोड़े ही समय में ये दोनों पत्र लोकप्रिय हो गये। पिताजी के बाद इनका काम श्री नरेन्द्र ने संभाल लिया।

लाहौर में रहते हुए ही श्री नरेन्द्र का सम्पर्क संघ से हुआ। विभाजन के समय उन्होंने संघ तथा आर्य समाज द्वारा संचालित शिविरों में जाकर सेवा तथा सुरक्षा कार्य में सहयोग दिया। गांधी जी की हत्या के बाद जब शासन ने संघ पर झूठे आरोप लगाये, तो श्री नरेन्द्र ने अपने पत्रों में उनका विरोध किया। 

1952 में जब डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में जनसंघ ने ‘कश्मीर आंदोलन’ चलाया, तब भी श्री नरेन्द्र ने अपने पत्रों द्वारा उनका समर्थन किया। इतना ही नहीं, वे अनेक सभाओं में इसके पक्ष में भाषण देने भी गये।

श्री के.नरेन्द्र पर महर्षि दयानंद सरस्वती, स्वामी श्रद्धानंद, भाई परमानंद और वीर सावरकर का बहुत प्रभाव था। अंग्रेजों ने वीर सावरकर के मुंबई स्थित मकान को जब्त कर लिया था। आजादी के बाद भी शासन ने उन्हें यह नहीं लौटाया। ऐसे में श्री नरेन्द्र ने एक अभियान चलाकर धनसंग्रह किया तथा यह राशि वीर सावरकर को भेंट की, जिससे वे अपना पुश्तैनी मकान फिर से ले सकें।

अनुशासनप्रिय नरेन्द्र जी प्रतिदिन ठीक दस बजे कार्यालय आ जाते थे। जब हाथ से लिखना संभव नहीं रहा, तो वे बोल-बोलकर लिखवाते थे। पंजाब में आतंकवाद, मुस्लिम तुष्टीकरण, कश्मीर में हिन्दुओं की दुर्दशा आदि पर वे बड़ी प्रखरता से सरकार को कटघरे में खड़ा करते थे। जब कांग्रेस शासन ने हिन्दू आतंकवाद का शिगूफा छेड़ा, तब भी उनकी लेखनी इसके विरुद्ध चली। 

शासन ने उन पर अनेक मुकदमे ठोके, उनकी गिरफ्तारी के वारंट निकाले; पर उन्होंने अपनी कलम को झुकने नहीं दिया। ऐसे तेजस्वी पत्रकार का 96 वर्ष की सुदीर्घ आयु में 27 अक्तूबर, 2010 को दिल्ली में देहांत हुआ।

What's Your Reaction?

like

dislike

wow

sad

Bharatiyanews हमारा अपना समाचार आप सब के लिए|