हनुमान प्राकट्योत्सव Hanuman Jayanti 2024
हनुमान प्राकट्योत्सव पर्व इस वर्ष 06 अप्रैल 2024
हनुमान प्राकट्योत्सव
"अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातात्मजं नमामि ॥"
अर्थात
मैं श्री हनुमान जी को प्रणाम करता हूँ | जो अतुलित शक्ति एवं बल के स्वामी हैं और जिनका विशाल शरीर स्वर्ण मेरु के समान है|
जो दुष्टात्माओं के जंगल पर धधकती हुई आग के समान है और विद्वानों में सर्वश्रेष्ठ है| जो समस्त गुणों के भण्डार और वानरों के स्वामी है| जो रघुपति श्री राम के प्रिय भक्त और वायु देव के पुत्र है; मैं उन श्री हनुमान जी को प्रणाम करता हूँ।
हनुमान प्राकट्योत्सव पर्व इस वर्ष 06 अप्रैल 2023 को है | हनुमान जी की जयंती वर्ष में दो बार मनायी जाती है।
प्रथम चैत्र माह की पूर्णिमा को तथा दूसरा कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है।पौराणिक ग्रंथों में भी दोनों तिथियों का उल्लेख मिलता है।
प्रथम तिथि को जन्म दिवस के रूप में तथा दूसरी तिथि को विजय अभिनंदन महोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
हनुमान जयंती की दो कथाएं प्रचलित हैं:-
1- चैत्र माह की पूर्णिमा को हनुमान जी का जन्म हुआ था। ऐसा माना जाता है कि आज के दिन माता अंजनी के उदर से हनुमान जी प्रकट हुए थे।
2-वहीं दूसरी कथा के अनुसार सीता माता अपनी माँग में सिंदूर लगा रहीं थीं जिसे देखकर हनुमान जी को जिज्ञासा हुई माँ ऐसा क्यों कर रही हैं ?हनुमान जी ने जब उनसे पूछा कि आप अपनी माँग में सिंदूर क्यों लगाती हैं तो माता सीता ने कहा कि इससे मेरे स्वामी श्री राम की आयु और सौभाग्य में वृद्धि होती है राम भक्त हनुमान ने सोचा जब माता सीता के चुटकी भर सिंदूर लगाने से प्रभु श्री राम का सौभाग्य और आयु बड़ती है तो पूरे शरीर पर सिंदूर लगाने लगे उन्होंने ऐसा ही किया इसके बाद माता सीता ने उनकी और समर्पण को देखकर महावीर हनुमान को अमरता का वरदान दिया माना जाता है कि यह दीपावली का दिन था इसलिए इस दिन को भी हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है। हनुमान जी की माता का नाम अंजनी तथा पिता का नाम केसरी नंदन था। भस्मासुर नामक राक्षस ने अपनी प्रयोजन सिद्दी हेतु भगवान शिव की अनेक वर्षों तक कठोर तपस्या की।
अनेक वर्षों की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव उसके सामने प्रकट हुए और उसे वरदान माँगने को कहा।भस्मासुर ने यह वरदान माँगा कि वह जिसके भी सर पर हाथ रखे वह भस्म हो जाये।भगवान शिव ने तथास्तु कहकर उसे मनोवांछित वर प्रदान किया। उसे जैसे ही वर प्राप्त हुआ वह भोलेनाथ को भस्म करने हेतु उनके पीछे दौड़ने लगा । भगवान भोलेनाथ विष्णु जी की शरण में गये। भगवान विष्णु जी ने भस्मासुर को समाप्त करने के लिये मोहिनी रूप धारण किया। मोहिनी रूप धारण किये हुए विष्णु जी उसके सामने आकर खड़े हो गये ,भस्मासुर मोहिनी का रूप देखकर मोहित हो गया तथा विवाह करने का प्रस्ताव देने लगा।मोहिनी बोली मैं उसी से विवाह करूँगी जिसे नृत्य आता होगा।
भस्मासुर को नृत्य नहीं आता था अतः उसने मोहिनी को नृत्य सिखाने के लिये कहा।मोहिनी उसे नृत्य सिखाने के लिये तैयार हो गयी।नृत्य सिखाते हुये मोहिनी ने अपना हाथ अपने सिर पर रखा जिसका अनुकरण भस्मासुर ने भी किया और वह स्वयं भस्म हो गया। विष्णु भगवान के मोहिनी रूप के कारण भगवान भोलेनाथ की विकट समस्या का समाधान हो गया। भस्मासुर भस्म हो गया।इससे प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने कहा कि आज आपने मेरी सहायता की है आपके मनुष्य अवतार में मैं आपके भक्त रूप में अवतार लूँगा और राक्षसों, दुष्टों का संहार करूँगा।
भगवान शिव का यह 11 वां रुद्र अवतार माता अंजनी के गर्भ से हुआ।जिसमें पवन देव के द्वारा शिव का रुद्र माँ अंजनी के कान से उनके गर्भ में प्रवेश करके उन्हें वरदान प्रदान किया। पवनदेव ने बताया कि तुम्हें सूर्य, अग्नि एवं स्वर्ण के समान तेजस्वी, सभी वेदों का ज्ञाताशक्तिशाली, महाबली पुत्र की प्राप्ति होगी । यह बालक शिव का अवतार होगा।
माँ अंजनी ने 12 वर्ष तक शिव की कठोर तपस्या की थी।वह एक अप्सरा थीं जो श्रापवश धरतीलोक पर आयीं थीं।
यही कारण है कि हनुमान जी के तीन पिता हैं।शंकर सुवन,केसरी नंदन व पवन पुत्र। हनुमत रहस्य,हनुमन नाटक आदि पुस्तकों में हनुमान जी की कथा बतायी गयी है।
वरदान प्राप्ति के बाद माँ अंजनी एक दिन भगवान शिव की आराधना कर रहीं थी और दूसरी ओर अयोध्या में राजा दशरथ अपनी तीनों रानियों कौशल्या,कैकयी व सुमित्रा के साथ पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिये यज्ञ करवा रहे थे।पूर्णाहुति पर स्वयं अग्निदेव ने प्रकट होकर राजा दशरथ को एक पात्र दिया और कहा यह तीनों रानियों को खिला दीजिये।आपकी इच्छा अवश्य पूर्ण होगी।उसी समय एक चमत्कारी घटना हुई एक चील ने उस खीर का कुछ भाग लिया और ले जाकर तपस्या में लीन अंजनी के हाथ में उसे रख दिया यह सब भगवान शिव की इच्छा से पवन देव ने किया था और अंजलि ने उस खीर को भगवान शिव का प्रसाद समझकर ग्रहण कर लिया।
सूर्योदय होते ही हनुमान जी को भूख लगने लगी अब लाल रंग के सूर्य को फल समझकर हनुमान जी उसे लेने के लिए आकाश में पहुँच गए। एक ही छलांग में हनुमान जी ने उन्हें पकड़ कर रख लिया वह सूर्य ग्रहण का दिन था राहु सूर्य को ग्रसित करने के लिए उनके पास पहुंच ही रहा था कि हनुमानजी ने सोचा यह कोई काला फल है इसलिए वह राहु की ओर देखने लगे राहु भयभीत होकर देवराज इंद्र के पास पहुँच गया और उसने कांपते स्वर में इंद्रदेव से कहा देवराज आपने मुझे अपनी क्षुधा शांत करने के लिए सूर्य और चंद्र दिए थे आज अमावस्या के दिन जब मैं ग्रसित करने गया तब देखा कोई दूसरा राहु सूर्य को पकड़े हुए हैं भगवान आपने यह कौनसा राहु भेजा है यदि मैं भागा ना होता तो वह मुझे भी खा लेता राहु की बातें सुनकर इंद्रदेव को बड़ी हैरानी हुई अपने हाथी पर सवार होकर हाथ में वज्र लेकर बाहर निकले उन्होंने देखा कि एक बालक सूर्य को मुँह में दबाकर आकाश में खेल रहा है यह देखकर देवराज इंद्र बहुत क्रोधित हो गए सूर्य को छुड़ाने के लिए उन्होंने हनुमान जी के ठोड़ी पर वज्र से प्रहार किया ,
प्रहार से हनुमानजी बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर गए और हनुमान जी के गिरते ही उनके पिता पवन देव वहां पर पहुंच गए अपने बेहोश पुत्र को उठाकर उन्होंने उसे छाती से लगा लिया माता अंजनी भी वहां दौड़ती हुई पहुंच गई हनुमान को बेहोश देखकर वह रोने लगी वायु देव ने क्रोधित होकर बहना ही बंद कर दिया हवा के रुक जाने के कारण लोगों में हाहाकार मच गया पशु पक्षी बेहोश होकर गिरने लगे पेड़ पौधे और फसलें को अकुलाने लगी। ब्रह्मा जी इंद्र आदि सभी देवताओं को लेकर पवन देव के पास गए उन्होंने अपने हाथों से छूकर हनुमान जी को जीवित कर दिया और पवन देव ने कहा आप तुरंत ही बहना शुरू करें वायु के बिना कभी के प्राण संकट में पड़ गए हैं यदि आपने बहने में देर की तीनों लोकों के प्राणी मौत के मुँह में चले जायेंगे आपके पुत्र को आज सभी देवताओं से वरदान मिलेगा ब्रह्मा जी की बात सुनकर सभी देवताओं ने कहा आज से इस बालक पर किसी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र का कोई प्रभाव नहीं होगा। इंद्रदेव बोले मेरे वज्र का प्रभाव भी इस पर नहीं पड़ेगा मेरे वज्र के प्रहार के कारण इसकी छोटी टूट गई थी इसलिए इसका नाम आज से हनुमान होगा ।
हनुमान शब्द का अर्थ है ऐसा व्यक्ति जिसका मुख बिगड़ा हुआ हो। ब्रह्माजी ने कहा यह पुत्र बल बुद्धि और विद्या में सबसे आगे होगा । तीनों लोगों की बराबरी करने वाला कोई दूसरा नहीं मिलेगा इसका ध्यान करते हैं सभी प्रकार के दुख दूर हो जायेंगे। यह ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से मुक्त होगा वरदान से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी एवं देवताओं की प्रार्थना सुनकर पवन देव ने पहले की तरह बहना शुरू कर दिया और तीनों लोकों के प्राणी प्रसन्न हो गये। हनुमान जी अष्ट सिद्धि (अणिमा,महिमा, लघिमा,गरिमा,प्राप्ति,प्राकाम्य,ईशित्व,वशित्व) व नव निधियो (पद्म निधि,महापद्म निधि,नील निधि,मुकुंद निधि,नन्द निधि,मकर निधि,कच्छप निधि,शंख निधि,खर्व या मिश्रित निधि) को प्रदान करने वाले हैं। आयें हम सभी मिलकर हनुमान प्राकट्योत्सव पर हनुमान जी के विभिन्न चरित्रों का अध्धयन ,चिंतन, मनन,अनुकरण करें।
मनोज कुमार गुप्ता
शोधार्थी
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