संपादकीय: जुडिशरी करे पहल, जिम्मेदार न्यायपालिका सर्वोपरि

Delhi HC Judge Cash Haul Case: दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से कथित जले हुए नोटों की गड्डियां बरामद होने के बावजूद न्यायपालिका की स्वतंत्रता और भ्रष्टाचार का मुद्दा सुर्खियों में है। मामले की जांच शुरू हो चुकी है और न्यायपालिका में आत्म-जवाबदेही को मजबूत करने के उपायों का समर्थन बढ़ रहा है।

Mar 27, 2025 - 06:20
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संपादकीय: जुडिशरी करे पहल, जिम्मेदार न्यायपालिका सर्वोपरि
दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से कथित तौर पर जले हुए नोटों की गड्डियां बरामद होने की खबरों के बाद जहां इस मामले की जांच शुरू हो गई है, वहीं इससे जुड़ी बहस का दायरा भी फैलता जा रहा है। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा कि अगर जजों की नियुक्ति से जु़ड़ा NJAC एक्ट लागू होने दिया गया होता तो आज ऐसी स्थिति नहीं होती। जाहिर है, इस घटना ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और उसके उत्तरदायित्व से जुड़ी पुरानी बहसों को नया रूप दे दिया है।भ्रष्टाचार बड़ा मसला : न्यायपालिका के वरिष्ठ सदस्यों के आचरण को लेकर विवाद पहले भी होते रहे हैं। लेकिन आर्थिक भ्रष्टाचार से जुड़े मामले अक्सर बड़ा मुद्दा बन जाते हैं। मिसाल के तौर पर, कलकत्ता हाईकोर्ट के सिटिंग जज अभिजीत गंगोपाध्याय का पद से इस्तीफा देकर बीजेपी के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ना या इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर यादव का एक खास समुदाय के खिलाफ कथित तौर पर आपत्तिजनक बयान देना उतना बड़ा मुद्दा नहीं बना। किसी बार असोसिएशन ने उन मामलों में ऐसा मुखर विरोध नहीं किया जैसा जस्टिस वर्मा के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट बार असोसिएशन कर रहा है।महाभियोग प्रक्रिया : जजों पर लगने वाले गंभीर आरोपों के संदर्भ में देखें तो अब तक के अनुभव से साफ हो गया है कि महाभियोग लाना व्यवहार में कोई कारगर विकल्प नहीं रह गया है। आरोप कितने भी गंभीर हों, इस प्रक्रिया का तार्किक परिणति तक पहुंचना काफी हद तक राजनीतिक दलों के रुख पर निर्भर करता है।दायित्व बनाम स्वतंत्रता : मौजूदा विवाद ने न्यायपालिका के उत्तरदायित्व की जरूरत को रेखांकित किया है तो उसी अनुपात में उसकी स्वतंत्रता पर मंडराते खतरे को लेकर आगाह भी। ध्यान रखना जरूरी है कि इस विवाद से बने माहौल का कोई प्रतिकूल असर न्यायपालिका की स्वतंत्रता और जजों को हासिल संवैधानिक संरक्षण पर न पड़े।बीच की राह : ऐसे में बीच की राह यही हो सकती है कि न्यायपालिका को उत्तरदायी बनाने के प्रयास न्यायपालिका के भीतर से ही किए जाएं। चाहे जजों की संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक करने की अनिवार्यता हो या हितों के टकराव के मामले समय रहते उजागर करना बाध्यकारी हो या जुडिशल ऑम्बड्समैन जैसे किसी पद का सृजन हो - ऐसे तमाम विकल्पों पर विचार करने की जरूरत है क्योंकि लोकतंत्र में स्वतंत्र, निष्पक्ष, विश्वसनीय और जिम्मेदार न्यायपालिका का कोई विकल्प नहीं होता।
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