विश्व शांति के लिए समरस, संगठित हिन्दू समाज का होना समय की मांग – जे. नंदकुमार जी

नागपुर, २१ दिसम्बर। संघ शताब्दी वर्ष के निमित्त सोमलवाडा भाग में आयोजित प्रमुख जन गोष्ठी में प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक जे. नंदकुमार जी ने “विश्व शांति और समृद्धि के लिए समरस हिन्दू समाज के संगठन” को समय की मांग बताया। गोष्ठी का शुभारंभ जे. नंदकुमार जी और भाग संघचालक श्रीकांत चितले जी द्वारा […] The post विश्व शांति के लिए समरस, संगठित हिन्दू समाज का होना समय की मांग – जे. नंदकुमार जी appeared first on VSK Bharat.

Dec 24, 2025 - 17:39
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विश्व शांति के लिए समरस, संगठित हिन्दू समाज का होना समय की मांग – जे. नंदकुमार जी

नागपुर, २१ दिसम्बर।

संघ शताब्दी वर्ष के निमित्त सोमलवाडा भाग में आयोजित प्रमुख जन गोष्ठी में प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक जे. नंदकुमार जी ने “विश्व शांति और समृद्धि के लिए समरस हिन्दू समाज के संगठन” को समय की मांग बताया। गोष्ठी का शुभारंभ जे. नंदकुमार जी और भाग संघचालक श्रीकांत चितले जी द्वारा भारत माता के चित्र पर पुष्पांजलि से हुआ। मंच संचालन श्वेता गर्गे ने किया।

जे. नंदकुमार जी ने कहा कि संघ शताब्दी को एक उत्सव के रूप में नहीं, बल्कि आत्म-परीक्षण के क्षण के रूप में मनाया जा रहा है। जिस उद्देश्य के साथ संघ की स्थापना हुई थी, उस लक्ष्य को पूर्णतः प्राप्त करने के लिए निरंतर सक्रिय रहना आवश्यक है। केरल के ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता कवि अक्कितम अच्युतन नंबूदिरी का संदर्भ देते हुए उन्होंने संघ को भारत का ‘स्वरस’ यानी राष्ट्र की आत्मा बताया। साथ ही, केरल के न्यायमूर्ति के.टी. थॉमस के विचारों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भारत के चार मुख्य स्तंभ हैं – लोकतंत्र, संविधान, पराक्रमी सेना और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ।

नंदकुमार जी ने कहा कि ग्रीक, हूण और शक जैसे आक्रमणकारी अंततः भारतीय संस्कृति में विलीन हो गए, लेकिन बाद के मुस्लिम और ब्रिटिश आक्रमणों के दौरान सैन्य लड़ाई के साथ-साथ सांस्कृतिक और वैचारिक संघर्ष भी हुआ। उस कठिन कालखंड में रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, योगी अरविंद, दयानंद सरस्वती और रवींद्रनाथ टैगोर जैसे महापुरुषों ने समाज को जागृत करने का कार्य किया। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि जाति, पंथ और संप्रदाय से ऊपर उठकर संपूर्ण हिन्दू समाज को संगठित करना ही उनका उद्देश्य था। जब समाज अपनी परंपराओं, कृषि पद्धति और जीवनशैली के आधार पर चलेगा, तभी वास्तविक स्वतंत्रता प्राप्त होगी।

उन्होंने सत्ता-आधारित राष्ट्र और भाषा-आधारित बहु-राष्ट्रीयता जैसी धारणाओं के बीच भारत को अनादि काल से अस्तित्व में रहने वाला एक संपन्न ‘सांस्कृतिक राष्ट्र’ बताया। संघ शताब्दी वर्ष में ‘पंच-परिवर्तन’ पर उन्होंने संस्कारयुक्त परिवार व्यवस्था, सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी निष्ठा और नागरिक कर्तव्यों पर विशेष बल दिया। उन्होंने समाज से आह्वान किया कि मतभेदों को मिटाकर एकजुट हों, क्योंकि संघ में कभी किसी की जाति नहीं पूछी जाती।

कार्यक्रम का आभार प्रदर्शन संयोजक व्यंकटेश सोमलवार ने किया और राष्ट्रगान के साथ संगोष्ठी का समापन हुआ।

 

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