गणेशधोषी आनंद गुप्त  गणेश घोष  जीवन घोषाल  लोकनाथ बल

घोष और अनंतसिंह चटगाँव में ही रहकर सूर्यसेन के प्रमुख दल से संपर्क स्थापित करने का प्रयत्न करते रहे; पर इस कार्य में उन्हें सफलता नहीं मिली । जब उन्होंने देखा कि चटगाँव उनके लिए सुरक्षित स्थान नहीं रह गया है, तो उन्होंने उसे छोड़ने का निश्चय कर डाला। इस समय तक कलकत्ता

Aug 9, 2024 - 05:53
Aug 9, 2024 - 06:34
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गणेशधोषी आनंद गुप्त  गणेश घोष  जीवन घोषाल  लोकनाथ बल

गणेशधोषी आनंद गुप्त  गणेश घोष  जीवन घोषाल  लोकनाथ बल

परिलाहाट नामक स्थान पर पुलिस को यह सूचना मिली कि आंदोलनकारियों ने पुलिस के कुछ लोगों को पकड़कर कहीं बंद कर रखा है। उनकी खोज में थानेदार काफी आदमियों को साथ लेकर चला। पुलिस दल ने दो राजवंशियों को गिरफ्तार करके उनसे यह जानना चाहा कि पुलिस के आदमियों को कहाँ बंद किया गया है। उन राजवंशियों की गिरफ्तारी का समाचार फैल गया और धनुष-बाण से सज्जित संथाल लोगों ने पुलिस दल को घेर लिया | पुलिसवालों को उन राजवंशियों को छोड्ने के लिए विवश होना पड़ा। वहाँ से पुलिस दल ने पलायन किया। लेकिन काफी दूर पहुँचकर उन्होंने गोलियाँ चलाई। पुलिस की गोली से सत्तर वर्षीय आधार मंडल तथा दो अन्य व्यक्ति मारे गए।

घोष और अनंतसिंह चटगाँव में ही रहकर सूर्यसेन के प्रमुख दल से संपर्क स्थापित करने का प्रयत्न करते रहे; पर इस कार्य में उन्हें सफलता नहीं मिली । जब उन्होंने देखा कि चटगाँव उनके लिए सुरक्षित स्थान नहीं रह गया है, तो उन्होंने उसे छोड़ने का निश्चय कर डाला। इस समय तक कलकत्ता के "NE NM) लिए रेल यातायात पुन: प्रारंभ हो गया 'गणेशधोषी था। उन्होंने कलकत्ता पहुँचने का ही निश्चय किया। क्रांतिकारी दूरदर्शिता के अनुसार, रेल में चटगाँव से सवार न होकर वे निकट के एक छोटे स्टेशन से सवार हुए और उन्होंने कलकत्ता का टिकट न.लेकर फैनी स्टेशन का टिकट लिया। इन क्रांतिकारियों में गणेश घोष, अनंतसिंह, जीवन घोषाल और आनंद गुप्त थे। जिस स्टेशन से वे रेल में सवार हुए, उसके स्टेशन मास्टर को उनपर कुछ शक हुआ और उसने फैनी के स्टेशन मास्टर को तार द्वारा सूचना दे दी। चार क्रांतिकारियों का यह दल जब-रेल से फैनी स्टेशन पहुँचा तो पुलिस का एक बहुत बड़ा दल वहाँ उनके स्वागत के लिए तैयार था। बताए हुए हुलिए के अनुसार पुलिस को उन्हें पहचानने में देर नहीं लगी। स्टेशन पर भीड़भाड़ नहीं थी। पुलिस ने उन्हें एक तरफ जाने का अवसर दिया और जब वे ऐसे स्थान पर पहुँच गए,

जो एक प्रकार से सुनसान जगह थी, तो पुलिस ने उन्हें खड़ा रहने और हाथ ऊँचे करने का आदेश दिया। भला क्रांतिकारी लोग पुलिस के आदेश का पालन क्यों करने चले! उन्होंने अपने रिवॉल्वरों से पुलिस पर गोलियों की वर्षा प्रारंभ कर दी। जब-जब पुलिस और क्रांतिकारियों के बीच मुठभेड़ हुई है, पुलिस के लोगों ने ही सदैव अपनी जान बचाने की कोशिश की है .और क्रांतिकारियों ने सदैव ही अपने प्राणों की चिंता न करके युद्ध किया है। फैनी युद्ध में भी यही हुआ। क्रांतिकारियों ने बढ़-बढ़कर पुलिस दल पर हमले किए और उसे पीछे खदेड़ दिया। जब पुलिस और क्रांतिकारियों के बीच फासला अधिक हो गया, तो क्रांतिकारी लोग पुलिस को चकमा देकर भाग निकले। पहले तो वे चारों अलग-अलग दिशाओं में भागे; पर शीघ्र ही गणेश घोष अपने दो साथियों से जा मिले और अनंतसिंह ने अपना रास्ता अलग बनाया | अंततोगत्वा चारों कलकत्ता में फिर मिल गए। अधिक सुरक्षा की दृष्टि से चारों क्रांतिकारी कलकत्ता छोड़कर चंद्रनगर (फ्रांसीसी अधिकार-क्षेत्र) पहुँच गए। उनमें से अनंतसिंह ने पार्टी के निर्देश पर ही अपने विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए कलकत्ता पहुँचकर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। अनंतसिंह के आत्मसमर्पण के पश्चात्‌ लोकनाथ बल चंद्रनगर में अपने दल से जा मिला।

लोकनाथ बल का व्यक्तित्व बहुत भव्य और प्रभावशाली था। उसका शरीर ऊँचा और सुगठित तथा रंग बहुत गोरा था। चटगाँव में फौज का शस्त्रागार लूटने के लिए वह फौजी ड्रेस में शस्त्रागार पहुँचा था और शस्त्रागार प्रहरी ने उसे अपने विभाग का अंग्रेज अफसर समझकर सैल्यूट मारा था। फिर तो क्रांतिकारी लोग पूरी स्थिति पर हावी हो गए थे। २२ अप्रैल को जलालाबाद पहाड़ी पर ब्रिटिश फौज के दो हजार कुशल और अनुभवी सैनिकों के साथ जिन पचास क्रांतिकारियों ने आमने-सामने का युद्ध किया था, उनका नेतृत्व लोकनाथ बल ने ही किया था। लोकनाथ का दल रात के अँधेरे का लाभ उठाकर बच निकला था। उस घटना के पश्चात्‌ लोकनाथ बल चंद्रनगर में अपने चार क्रांतिकारी साथियों से जा मिला। कलकत्ता पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी सर चार्ल्स टेगार्ट ने जब यह सुना कि कुछ क्रांतिकारियों ने चंद्रनगर में प्रश्रय लिया है, तो वह उन्हें अपने जाल में फाँसने के लिए वहाँ जा पहुँचा। बहुत गुप्त रूप से उसने चंद्रनगर पुलिस के महानिरीक्षक से अपने अभियान की अनुमति ले ली थी। सर चार्ल्स टेगार्ट क्रांतिकारियों का दमन करने के लिए कुख्यात था। क्रांतिकारी लोग भी कई बार उसपर अपना दाँव आजमा चुके थे; लेकिन टेगार्ट बचता ही रहा था।

जैसे ही ३१ अगस्त, १९३० की तारीख ने रात के बारह बजे अपना स्थान १ सितंबर को दिया, सर चार्ल्स रेगार्ट अपने विशाल पुलिस दल के साथ चंद्रनगर जा पहुँचा। उसके दल में गोरे सैनिकों के अतिरिक्त एक भी भारतीय नहीँ था। उसके दल के किसी भी व्यक्ति को यह मालूम नहीं था कि वे लोग कहाँ जा रहे हैं और उन्हें क्या करना है। संपूर्ण योजना एकदम गोपनीय रखी गई थी । चंद्रनगर के जिस मकान में क्रांतिकारी ठहरे हुए थे, वह एकांत में था और उसके चारों ओर तीन फीट ऊँची कच्ची दीवार का अहाता था। अहाते के अंदर पानी से भरा हुआ एक कुंड था और अहाते के बाहर भी एक तालाब था, जिसके किनारे पर घनी झाड़ियाँ थीं। मकान दुमंजिला था और उसकी छत पर एक कोठरी थी, जिसमें बारी-बारी से क्रांतिकारी लोग जागकर पहरा देते थे। 

घनी अंधेरी रात में टेगार्ट ने दल-बल सहित क्रांतिकारियों के प्रश्रय स्थल को घेर लिया । उसके दल के कुछ लोग चुपचाप दीवार फाँदकर अहाते के अंदर जा पहुँचे और कुछ बाहर ही रहे । स्वयं टेगार्ट फ्रांसीसी पुलिस अफसर से मिलने के इरादे से थोड़ी दूर गया था कि उसे गोलियाँ चलने की आवाज सुनाई दी। हुआ यह था कि उस रात ऊपर को कोठरी में लोकनाथ बल पहरा दे रहा था। उसे अँधेरे में कुछ परछाइयाँ दीवार फाँदती हुई दिखाई दीं । उसने तुरंत नीचे उतरकर, साथियों को जगाकर उन्हें खतरे की सूचना दी। बस फिर क्या था,

क्रांतिकारियों ने गोलियों की बरसात प्रारंभ कर दी। भागकर टेगार्ट घटनास्थल पर पहुँचा। गोलियाँ चलाते हुए क्रांतिकारी लोग पिछले दरवाजे से बाहर निकले और अहाते की दीवार फाँदकर बाहर जा पहुँचे । जैसे ही वे दीवार के नीचे कूदे, उनपर टॉर्च की तेज रोशनी पड़ी और गोलियों की एक बौछार भी ऊपर बरस पड़ी। एक गोली जीवन घोषाल को लगी और वह बाहर तालाब में कूद पड़ा। शेष तीन क्रांतिकारी गिरफ्तार कर लिये गए। जो गिरफ्तार हुए, वे थे--गणेश घोष, लोकनाथ बल और आनंद गुप्त । तलाशी के पश्चात्‌ जीवन घोषाल का शव तालाब से बरामद कर लिया गया।

'चटगाँव शस्त्रागार कांड' के अंतर्गत चंद्रनगर का यह कांड 'मिडनाइट ड्रामा' के नाम से मशहूर हुआ। मुकदमा चलने पर गणेश घोष, लोकनाथ बल और आनंद गुप्त को आजीवन कारावास के दंड सुनाए गए।

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