हिमालयी राज्यों में बार-बार बादल क्यों फट रहे, झीलें-गाद कैसे तबाही लाती हैं? किश्तवाड़ में मचा कोहराम

Cloud Burst in Kishtwar: उत्तरखंड और हिमाचल प्रदेश के बाद जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में बादल फटने से तबाही मची है. तस्वीरें और वीडियो डराने वाले हैं. अब सवाल है कि हिमालयी राज्यों में बार-बार बादल क्यों फट रहे? क्या इसकी भविष्यवाणी का कोई सिस्टम देश में उपलब्ध है? बादल तो फटते रहते हैं लेकिन हादसा कैसे और क्यों बड़ा हो जाता है? बादल फटने के बाद अक्सर पहाड़ों पर झीलें कैसे बन जाती हैं? जानिए इनके जवाब.

Aug 15, 2025 - 18:37
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हिमालयी राज्यों में बार-बार बादल क्यों फट रहे, झीलें-गाद कैसे तबाही लाती हैं? किश्तवाड़ में मचा कोहराम
हिमालयी राज्यों में बार-बार बादल क्यों फट रहे, झीलें-गाद कैसे तबाही लाती हैं? किश्तवाड़ में मचा कोहराम

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में धराली में बादल फटने की घटना के पीड़ितों को मरहम अभी लग भी नहीं पाया है कि जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ में बादल फटने से भारी तबाही हुई है. हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड समेत पहाड़ी राज्यों में बारिश के मौसम में बादल फटने की वारदातें इस साल कुछ ज्यादा ही सुनाई दे रही हैं. कहने की जरूरत नहीं कि जब बादल फटते हैं तो वे अपने साथ भारी तबाही लेकर आते हैं.

बादल फटने के क्या मायने हैं? ये बादल पहाड़ी इलाकों में ही क्यों फटते हैं? क्या इसकी पूर्व चेतावनी का कोई सिस्टम देश में अभी तक उपलब्ध नहीं है? बादल तो फटते रहते हैं लेकिन हादसा कैसे और क्यों बड़ा हो जाता है? बादल फटने के बाद अक्सर पहाड़ों पर झीलें कैसे बन जाती हैं? आइए आसान भाषा में समझते हैं.

किसे कहते हैं बादल फटना?

कल्पना कीजिए कि बादल का एक टुकड़ा पानी से भरा एक बहुत बड़ा गुब्बारा है. जब यह गुब्बारा इतना भर जाता है कि अपने भीतर और पानी नहीं रोक पाता तब अचानक से एक ही जगह पर बहुत कम समय में सारा पानी जोर से एक ही जगह गिरा देता है. एक घंटे में 10 सेंटीमीटर या उससे ज़्यादा बारिश किसी एक बहुत छोटी जगह पर होने की स्थिति को बादल फटना कहा जाता है. यह पहाड़ों पर ज़्यादा होता है क्योंकि पहाड़ बादलों को ऊपर धकेलते हैं, जिससे वे तेज़ी से ठंडे होते हैं और पानी की बूंदें बहुत बड़ी हो जाती हैं और वही एक साथ नीचे गिरकर तबाही मचाती हैं.

यह बारिश बहुत तेज़ होती है, जिससे अचानक बाढ़ जैसी स्थिति बन जाती है. अचानक जमीन पर गिर यही पानी तेज रफ्तार से रास्ते में पड़ने वाले पेड़-पौधे, घर, पत्थर के साथ ही रास्ते में जो कुछ भी पड़ता है, उसे लेकर नीचे की ओर रास्ता बनाते हुए निकलता है. रफ्तार ऐसी कि किसी को संभलने का मौका नहीं देता.

Kishwad Cloud Burst

बादल फटने की घटना बहुत छोटे क्षेत्र में और बहुत कम समय के लिए होती है. फोटो: PTI

इस बार इतने बादल क्यों फट रहे?

इसका सपाट जवाब यह है कि इस सीज़न में नमी बहुत ज्यादा है, पहाड़ों पर बादल बनने की रफ्तार इसी वजह से तेज है. इसीलिए छोटे-छोटे कैचमेंट एरिया में बादल आंधी-तूफानी बादल 100 मिमी प्रति घंटा या उससे भी ज्यादा पानी गिरा रहे हैं. मौसम विज्ञानी इसे ही क्लाउड-बर्स्ट कहते हैं.

क्लाउड-बर्स्ट बहुत छोटे क्षेत्र में और बहुत कम समय में होता है. ऐसे में जब ऐसी घटना किसी आबादी वाले इलाके में होती है तो जन-धन की हानि बड़े पैमाने पर होती है. जहां आबादी नहीं है, वहां बादल फटकर निकल जाता है. कई बार केवल मौसम विभाग को ही पता चलता है. चूंकि बादल फटने की घटनाएं बारिश के मौसम में ही होती हैं, इसलिए मान लिया जाता है कि पहाड़ों पर ज्यादा बारिश हुई है, इसी वजह से नदियों-गदेरों का जलस्तर अचानक बढ़ जाता है.

इस बार ये घटनाएं इतनी ज्यादा क्यों?

हिमालयी राज्यों की जमीनी हकीकत यही है कि इस बार बादल फटने की वारदातें ज्यादा हो रही हैं. इस मानसून में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश समेत अन्य राज्यों में अलग-अलग कई घाटियों में बादल फटे हैं. उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में भारी तबाही मचाने वाली घटना को मौसम विभाग ने फ्लैश फ़्लड या क्लाउड-बर्स्ट का दर्जा दिया है. शुरुआती वैज्ञानिक जांच में क्लाउड-बर्स्ट, ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF), लैंडस्लाइड-जैम, या इनका मिश्रण माना जा रहा है.

Cloud Burst J&k

जम्मू-कश्मीर में भारी तबाही मचाने वाली घटना को मौसम विभाग ने फ्लैश फ़्लड या क्लाउड-बर्स्ट का दर्जा दिया है. फोटो: PTI

बादल फटने की और घटनाएं भी हुई हैं लेकिन उनमें इस तरह की धन-जन हानि नहीं हुई है, जैसे धराली या किश्तवाड़ में हुई. इस सीजन में कुल कितनी घटनाएं हुईं, इसका आंकड़ा आमतौर पर सरकारी एजेंसियां बारिश का मौसम खत्म होने के बाद ही एकत्र करती हैं. ऐसे में इस साल का पूरा डाटा अभी तक सामने नहीं आया है. पर, इतना तय है कि इस साल बादल ज्यादा फट रहे हैं.

हादसा बड़ा क्यों हो जाता है? झीलें, गाद कैसे कहर बनते हैं?

क्लाउड-बर्स्ट से सिर्फ पानी नहीं आता. ऊपर की ढालों से मिट्टी, बोल्डर, लकड़ी, ग्लेशियर-मोराइन की गाद सब साथ-साथ बहते हुए आगे बढ़ता है. यह पानी को डेब्रिस-फ्लो बना देता है, जिसकी रफ्तार और मारक क्षमता बहुत अधिक होती है. इनमें तीन चीज़ें नुकसान बढ़ाती हैं-

  • पहला: तंग और वी आकार की घाटियां और खड़ी ढालें. ऐसे में पानी का वेग बहुत बढ़ जाता है, रास्ते में जो भी आता है, उखाड़ देता है.
  • दूसरा: प्राकृतिक झीलें (ऊपर अस्थायी ताल) या क्लाउडबर्स्ट के बाद घाटी में तुरंत बनी अस्थायी झील टूट जाए तो भी अचानक भीषण लहर आती है. उत्तरकाशी की घटना में ऊपर अस्थायी झील बनने की रिपोर्ट सामने आ रही है.
  • तीसरा: नदी-नालों में अतिक्रमण, ढलान काटकर सड़कें/ढांचागत परियोजनाएं, डेब्रिस डंपिंग, डिफॉरेस्टेशन, और संकरी पुलिया जैसे चोक-प्वाइंट. ये सब ऊपर से आने वाले गाद-बोल्डर को जाम करते हैं और फिर अचानक टूटकर नीचे तबाही मचाते हैं.
Cloud Burst In Jammu And Kashmir

घटना के बाद घायलों को अस्पताल पहंचाया गया. फोटो: PTI

क्या क्लाउडबर्स्ट की सटीक भविष्यवाणी हो सकती है?

गांव स्तर पर सटीक क्लाउड-बर्स्ट भविष्यवाणी बहुत कठिन है. इसके पीछे कारण यह है कि बादल बहुत छोटे इलाके में ही फटते हैं. इतना सटीक आंकलन करना मौसम विभाग के बस के बाहर है. हां, मौसम विभाग बड़े इलाके में भारी बारिश या हल्की बारिश की जानकारी जरूर देने में सक्षम है. आंधी-तूफान की जानकारी भी मौसम विभाग देने में सक्षम हैं. आगामी तीन घंटे में होने वाली मौसमी घटनाओं को रिपोर्ट करने की क्षमता मौसम विज्ञानी रखते हैं.

Kishwad Cloud Burst Impacts

तस्वीर बताती है कि किश्तवाड़ में कैसी तबाही आई थी. फोटो: PTI

बादल तो फटते रहते हैं फिर नुकसान क्यों बढ़ रहा है?

मौसम विभाग के पूर्व अपर महानिदेशक डॉ. आनंद शर्मा कहते हैं कि नुकसान में कई कारक काम करते हैं. पूरे हिमालय में सड़क, नदी, गदेरों के किनारे से लेकर नदी क्षेत्र तक में होटल, रेस्तरां, बन रहे हैं. होटल बन रहे हैं. पर्यटन बढ़ाने के नाम पर सरकारें इस तरह की चीजों को सख्ती से नहीं रोक रही हैं.

वह कहते हैं कि उत्तराखंड के धराली में जो आपदा आई है, उसमें बड़ी भूमिका नदी के क्षेत्र में अवैध निर्माण का है. पहाड़ की खाली चोटी पर अगर बादल फटेंगे तो अधिकतम कुछ पेड़-पौधों का नुकसान होगा लेकिन जैसे ही वह भारी मात्रा में गिर पानी अपने साथ गाद, पेड़-पौधों, मिट्टी, पत्थर लेकर नीचे की ओर चलता है तो रास्ते में आने वाली हर चीज को अपने साथ लेकर जाता है. ऐसे में नुकसान तय है.

बादल फटना प्राकृतिक है तो नुकसान को कैसे रोका जाए?

समय की मांग है कि हर घाटी के माइक्रो-कैचमेंट, पुराने डेब्रिस-फ्लो पाथ, अस्थायी झील / मोराइन-डैम, चोक-प्वाइंट, और रिवर-सेटबैक लाइनों का वैज्ञानिक नक्शा बनाया जाए.

  • रेन-गेज, रडार कवरेज, रियल-टाइम वाटर-लेवल सेंसर; गांव स्तर तक मोबाइल अलर्ट की व्यवस्था हो.
  • नदी-नालों तथा उनके कैचमेंट एरिया में किसी भी सूरत में अतिक्रमण न होने पाए.
  • सड़कों, हाइड्रो प्रोजेक्ट्स, टनलों के डंपिंग-ज़ोन वैज्ञानिक लोकेशन पर; स्लोप-स्टैबिलिटी का सही डिज़ाइन बने और उसी अनुरूप काम हो.
  • क्लाउड-बर्स्ट के बाद अपस्ट्रीम अस्थायी झील बनना सामान्य है. इसके ब्रेक होने पर सेकेंडरी फ्लड आता ही है. इसके लिए निगरानी प्रणाली बने.
Women After Cloud Burst In Kashmir

किश्तवाड़ में बादल फटने की घटना के बाद अपना दर्द बयां करती है स्थानीय महिला. फोटो: PTI

कहां कब बादल फटे?

  • साल 2024 में हिमाचल प्रदेश में मानसून सीजन में क्लाउड-बर्स्ट की 27 घटनाएं हुई है. इनमें कम-से-कम 59 जानें गईं.
  • साल 2022 में अमरनाथ यात्रा मार्ग पर पहलगाम के पास 8 जुलाई को तेज़ फ्लैश फ्लड से कई मौतें हुईं.
  • साल 2021 में जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ के हुंजर हमलेट में क्लाउडबर्स्ट से 26 मौतें रिपोर्ट हुईं.
  • साल 2021 में उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में 18 जुलाई क्लाउडबर्स्ट हुआ था.
  • साल 2018 में कर्नाटक के बेलगावी में 4 मई को क्लाउड-बर्स्ट हुआ. इसमें कोई बड़ी हानि नहीं हुई थी.
  • साल 2013 में केदारनाथ में बादल फटने के बाद हुई थी भारी तबाही. सैकड़ों मौतें. यह हादसा क्रमशः 16 एवं 17 जून को, दो दिन हुआ था.
  • साल 2010 में पुराने लेह शहर में छह अगस्त को सिलसिलेवार ढंग से कई बार बादल फटे. पूरा शहर तबाह सा हो गया. मौतें दर्ज हुई थीं करीब 115.
  • हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, लद्दाख, जम्मू-कश्मीर बादल फटने के माले में बेहद संवेदनशील इलाके हैं. मानसून सीजन में बादल फटना यहाँ आम है. शोर तब होता है, जब धन-जन की भारी हानि होती है.

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