छठ पूजा का वैश्विक स्वरूप

संजीव कुमार सूर्योपासना व प्रकृति पूजा से जुड़ा छठ पूजा अब सिर्फ बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश का ही पर्व नहीं रहा। इसका अब वैश्विक स्वरूप देखने को मिल रहा है। दूर- दराज रहने वाले लोग भी छठ पूजा कर रहे हैं। मेरा एक मित्र मर्चेंट नेवी है और अब एथेंस (ग्रीस की राजधानी) में […] The post छठ पूजा का वैश्विक स्वरूप appeared first on VSK Bharat.

Oct 31, 2025 - 08:31
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संजीव कुमार

सूर्योपासना व प्रकृति पूजा से जुड़ा छठ पूजा अब सिर्फ बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश का ही पर्व नहीं रहा। इसका अब वैश्विक स्वरूप देखने को मिल रहा है। दूर- दराज रहने वाले लोग भी छठ पूजा कर रहे हैं। मेरा एक मित्र मर्चेंट नेवी है और अब एथेंस (ग्रीस की राजधानी) में रहता है। उसने पहले अर्घ्य के दिन यानी 27 अक्तूबर को मैसेज किया कि उसे प्रसाद (ठेकुआ) चाहिए। 28 अक्तूबर यानी पारण के दिन उसे कोरियर कर दिया गया।

आस्था और निष्ठा का अनुपम लोकपर्व ‘छठ’ सूर्योपासना का महापर्व है। यह पर्व सूर्य, उनकी पत्नी उषा तथा प्रत्यूषा, प्रकृति, जल, वायु और सूर्य की बहन छठी मैया को समर्पित है। उषा तथा प्रत्यूषा को सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत माना गया है। इसीलिए छठ पर्व में सूर्य तथा छठी मैया के साथ इन दोनों शक्तियों की भी आराधना की जाती है। छठी माई निःसंतानों को संतान देती हैं और संतानों की रक्षा कर उनको दीर्घायु बनाती हैं। ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व में सूर्य की उपासना करने से छठी माता प्रसन्न होकर घर-परिवार में सुख-समृद्धि, रोगमुक्ति, सम्पन्नता और मनोवांछित फल प्रदान करती हैं। छठ पूजा, में नहाय-खाय 25 अक्तूबर और खरना 26 अक्तूबर को था। जबकि छठ की मुख्य पूजा संध्या अर्घ्य के साथ 27 अक्तूबर और उगते सूर्य को अर्घ्य 28 अक्तूबर को दिया गया। और इसी के साथ छठ महापूजा का समापन हुआ।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य देवता की बहन छठी मैया संतानों की रक्षा कर उन्हें लंबी आयु प्रदान करती हैं। प्रातःकाल में सूर्य की पहली किरण (उषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अर्घ्य देकर दोनों को नमन किया जाता है। सूर्योपासना का महापर्व छठ कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है, इसीलिए इसे छठ कहा जाता है। इस चार दिवसीय उत्सव की शुरूआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के दिन नहाय खाय से होती है। अगले दिन खरना होता है। तीसरे दिन छठ का प्रसाद तैयार किया जाता है और स्नान कर अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सप्तमी को चौथे और अंतिम दिन उगते सूर्य की पूजा-आराधना के साथ महापर्व का समापन होता है। छठ पर्व के प्रसाद में ठेकुआ और फलों का महात्मय है। पूजा के लिए तालाब, नदी अथवा घाट पर जाकर स्नान कर डूबते हुए सूर्य की पूजा करते हैं और अगले दिन सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा करने के पश्चात् प्रसाद बांटकर छठ पूजा का समापन होता है। सही मायनों में यह महापर्व जीवनदायी सूर्यदेव के प्रति आभार प्रकट करने का महापर्व है।

पहले छठ पूजा सिर्फ बिहार का ही पर्व माना जाता था, लेकिन जहां-जहां यहां के लोग पहुंचे, वहां-वहां अपने साथ अपनी संस्कृति को भी लेकर गए। आज छठ का वैश्विक स्वरूप देखने को मिलता है। मुंबई में इस वर्ष 80 से अधिक घाटों पर छठ पूजा मनाई गई।

हैदराबाद में छठ मनाने वाले क्षेत्रों के लोग सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। यह उत्सव हुसैन सागर, मलकम चेरुवु, अलवाल, पाटनचेरु, मियापुर, मेडचल और शहर के विभिन्न घाटों और छोटे तालाबों जैसे स्थानों पर मनाया जाता है। यही स्थिति दक्षिण के कई राज्यों की थी।

सूरत (गुजरात) में लगभग 1 लाख लोग महापर्व में शामिल हुए। यह उत्सव शहर में तापी नदी के किनारे विभिन्न स्थानों पर मनाया गया। इन घाटों पर श्रद्धालुओं की पूजा-अर्चना के लिए सभी आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध थी। सूरत नगर निगम के सहयोग से इस्कॉन मंदिर के पास तापी नदी के तट पर एक लकड़ी का मंच भी बनाया जाता रहा है। इसके अलावा छठ पूजा का कॉजवे, डिंडोली, नवडी ओवारा, नानपुरा, पाल और कपोदरा के अन्य घाटों, सहित विभिन्न देशों में आयोजन हुआ।

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