संघ प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुकुल की छात्राओं के सवाल के दिए जबाव

वह पिता के रूप में यज्ञशाला में उपस्थित थे और उन्होंने कन्या गुरुकुल की छात्राओं के सवालों के जवाब दिए। उन्होंने कहा, "हम संघ में कुछ बनने के लिए नहीं, बल्कि खुद को गाड़ने के लिए आए हैं।"

Jul 31, 2024 - 13:19
Jul 31, 2024 - 13:26
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संघ प्रमुख मोहन भागवत ने  गुरुकुल की छात्राओं के सवाल के दिए जबाव

छात्राओं  के सवालो के दिए मोहन भागवत  ने  जवाब

  1. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक ने डा.मोहन भागवत अमरोहा गुरुकुल आए
  2. उपनयन संस्कार में डॉ. मोहन भागवत ने छात्राओं के सवालाें पर दिए जवाब

गुरुकुल की मुख्याधिष्ठात्री आचार्या डा. सुमेधा आर्या ने मंत्रोच्चारण के बीच 134 छात्राओं का विधि-विधान के साथ यज्ञोपवीत धारण कराकर उपनयन संस्कार संपन्न कराया। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक डा. मोहन भागवत ने उन्हें उपदेश और आशीर्वाद दिया। वह पिता के रूप में यज्ञशाला में उपस्थित थे और उन्होंने कन्या गुरुकुल की छात्राओं के सवालों के जवाब दिए। उन्होंने कहा, "हम संघ में कुछ बनने के लिए नहीं, बल्कि खुद को गाड़ने के लिए आए हैं।"

लेकिन अच्छा काम करने के लिए कुछ छोड़ना पड़ता है। हमने कुछ बनने के लिए जन्म नहीं लिया है, बल्कि संघ में खुद को गाड़ने के लिए आए हैं।" ये बातें उन्होंने कन्या गुरुकुल में छात्राओं के सवालों के जवाब में कही।

उपनयन संस्कार में पहुंचे संघ प्रमुख से गुरुकुल की छात्राओं ने अपनी जिज्ञासा से जुड़े कई सवाल किए। संघ प्रमुख ने सभी को ध्यानपूर्वक सुना और समझाने वाले अंदाज में जवाब दिए।

छात्राओं  के सवालो के दिए मोहन भागवत  ने  जवाब

सवाल: आपके जीवन संघर्ष को जानने की जिज्ञासा है?

जवाब: मेरे बारे में जो सुना है, वह सही है। मैं अकेला नहीं हूं, संघ के सभी कार्यकर्ता ऐसे ही हैं। संघ के हजारों कार्यकर्ताओं में मैं फुर्सत में हूं, इसलिए मुझे सर संघचालक बना रखा है। जीवन में संघर्ष क्या होता है, यह महत्व की बात नहीं। हमारा अपने से ही संघर्ष होता है। एक पर्दा होता है, जिसे अहंकार कहते हैं। वह वही रूप लेता है जो हम उसे दिलाते लेकिन अच्छा काम करने के लिए कुछ छोड़ना पड़ता है। संघर्ष अपने मकसद के लिए करना चाहिए।

सवाल: संघ के विस्तार में महिलाओं की कितनी भूमिका है?

जवाब: महिलाओं की भूमिका सीधी नहीं है, लेकिन बहुत बड़ी है। करीब साढ़े चार हजार कार्यकर्ता घर छोड़कर काम करते हैं। परिवार की महिलाएं उन्हें आगे बढ़ाती हैं। हमको भोजन भी मातृ शक्ति ही उपलब्ध कराती हैं। महिलाओं के लिए राष्ट्र सेविका समिति है। महिला जगदंबा है। हम केवल सक्षम बना सकते हैं। संकट के दिनों में महिलाएं ही आगे आती हैं। हमारा काम महिलाओं की उन्नति का नहीं, बल्कि उन्हें साक्षर बनाने का है।

सवाल: महाभारत में अर्जुन को श्रीकृष्ण की जरूरत पड़ी, क्या गीता उनका अभाव दूर कर पाएगी?

जवाब: अभाव नहीं है, सत्य है। कृष्ण जी योगेश्वर के रूप में आते हैं। ऐसे लोगों की कभी देश में कमी नहीं रही। हम स्वार्थी नहीं आध्यात्मिक बनें। बाकी योगेश्वर खुद देख लेंगे। इसलिए भारत वर्ष आगे बढ़ रहा है। गीता शब्द नहीं जीवन है। हम उसी पर अग्रसर और संकल्पित होकर कार्य कर रहे हैं।

सवाल: आपके नाम के दोनों शब्द ईश्वर का स्मरण कराते हैं। नाम रखने के पीछे क्या मकसद है? जवाब: मुझे इस बारे में जानकारी नहीं है। आपका नाम भी आपको पूछकर रखा था क्या? मेरा भी नाम ऐसे ही दे दिया गया। हंसकर बोले-जिसे मैं ढो रहा हूं। पर, क्यों रखा, इसके बारे में मुझे पता नहीं। भागवत मेरा कुल नाम है। भागवत का मतलब है, भक्ति का प्रचार करना और मैं देशभक्ति का प्रचार करता हूं। देश और भक्ति में अंतर नहीं मानता हूं।

सवाल: आप प्रधानमंत्री और वरिष्ठ पदों को प्राप्त कर सकते थे, ऐसा क्यों नहीं किया?

जवाब: कुछ बनने के लिए हमने जन्म नहीं लिया है। संघ में खुद को गाड़ने के लिए आए हैं। देशहित के लिए काम करना है। तेरा वैभव अमर रहे मां... पर चलते हैं। इसलिए सारे दरवाजे हमने पहले ही बंद कर दिए हैं। अब संघ ही बताता है। ये करो, वो करो। संघ जो कहता है, हम वो करते हैं। अपनी इच्छा से संघ में कोई कुछ नहीं करता है। जो वहां का (प्रधानमंत्री पद) ग्लैमर है, कोई स्वयंसेवक उसके लिए वहां नहीं जाता है। जिनके बारे में आप कह रहे हैं, उनसे भी व्यक्तिगत रूप से यह पूछेंगे तो वह बताएंगे कि मेरी इच्छा तो फिर से गणवेष धारण शाखा चलाने की है।

सवाल: धर्म और देश में किसे ऊपर स्थान देना चाहिए?

जवाब: सब एक है। सनातन दुनिया बनने के बाद से चलता आया है। सबको उन्नत करने के प्रयास होते हैं, उसे धर्म कहते हैं। दुनिया को धर्म देने के लिए हमारा देश है। इसमें अंतर नहीं है।

गुरुकुल के बारे में  एक नजर में जानिए 

गांव चोटीपुरा की आचार्या सुमेधा ने गुरुकुल कांगड़ी से शिक्षा ग्रहण की है। उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य रहने का फैसला किया और पिता से शादी में खर्च की जाने वाली रकम से 1988 में दो कमरों का निर्माण कराकर कन्या गुरुकुल की स्थापना की। अब यहां 20 राज्यों की 1200 बेटियां शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। 2012 में यहां की एक छात्रा आइएएस भी बन चुकी है। 180 कन्याओं ने नेट-जेआरएफ की परीक्षाएं उत्तीर्ण की हैं। विभिन्न खेलों में 550 मेडल यहां की बेटियां जीत चुकी हैं। 350 बेटियों ने योगासन में जनपद, मंडल, प्रदेश व राष्ट्र स्तर पर मेडल जीते हैं। 200 बेटियों को संपूर्ण गीता याद है। इनके अलावा भी कई कीर्तिमान स्थापित किए जा चुके हैं।

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