गौतम डोरे एवं साथियों का बलिदान

वनवासी अपनी आवश्यकताओं के लिए वनों से लकड़ी और खाद्य सामग्री प्राप्त करते थे। अंग्रेजों ने ‘जंगल आरक्षण नीति’ बनाकर इसे प्रतिबंधित कर दिया, जिससे राजू और उनके साथी नाराज हो गए।

Jun 7, 2024 - 06:14
Jun 7, 2024 - 06:56
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गौतम डोरे एवं साथियों का बलिदान

गौतम डोरे एवं साथियों का बलिदान

स्वाधीनता संग्राम में अल्लूरी सीताराम राजू का योगदान:- आंध्र प्रदेश में अल्लूरी सीताराम राजू ने स्वाधीनता संग्राम के लिए युवाओं का एक दल बनाया था। ये सभी गांधी जी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय थे। जब गांधी जी ने अचानक इस आंदोलन को स्थगित कर दिया, तो युवाओं को ठेस पहुँची और उन्होंने हिंसा का मार्ग अपनाया।

जंगल आरक्षण नीति और वनवासियों की नाराजगी:- वनवासी अपनी आवश्यकताओं के लिए वनों से लकड़ी और खाद्य सामग्री प्राप्त करते थे। अंग्रेजों ने ‘जंगल आरक्षण नीति’ बनाकर इसे प्रतिबंधित कर दिया, जिससे राजू और उनके साथी नाराज हो गए। गोदावरी तटवर्ती क्षेत्र के मल्लू और गौतम डोरा इस नीति से क्रोधित होकर राजू के साथ जुड़ गए।

रम्पा क्रांति दल की स्थापना:- राजू, मल्लू और गौतम डोरा ने मिलकर ‘रम्पा क्रांति दल’ की स्थापना की। हथियार जुटाने के लिए उन्होंने चिंतापल्ली और कृष्णादेवी पुलिस स्टेशनों पर हमला किया और भारी मात्रा में हथियार प्राप्त किए। शासन ने इस दल को नियंत्रित करने के लिए पूरे रम्पा क्षेत्र को असम राइफल्स के हवाले कर दिया। राजू की तलाश में पुलिस ने उसके गांव वालों को प्रताड़ित करना शुरू किया, जिससे राजू ने आत्मसमर्पण कर दिया और उसे 7 मई, 1924 को फांसी दे दी गई।

राजू की फांसी के बाद संघर्ष:- राजू की फांसी के बाद मल्लू और गौतम डोरे ने राजू के अधूरे काम को पूरा करने का संकल्प लिया। पुलिस ने भी उनकी तलाश तेज कर दी और बार-बार उनके गांव में छापे मारे। दोनों भाइयों ने गांव छोड़कर अन्य गांवों में अपनी गतिविधियां चलानी शुरू की।

गुप्त गतिविधियां और पुलिस की निगरानी:- एक गांव में पुलिस की पूछताछ के बाद मुखिया ने दोनों भाइयों को कुछ समय तक शांत रहने की सलाह दी। वे एक महीने तक शांत रहे, लेकिन पुलिस को संदेह था कि वे इसी क्षेत्र में छिपे हैं, इसलिए पुलिस ने वहीं डेरा डाल दिया। 7 जून, 1924 को पुलिस ने फिर सघन तलाशी अभियान शुरू किया।

अंतिम संघर्ष और बलिदान:- नदी के बीहड़ों में पुलिस को युवकों का एक दल छिपा दिखाई दिया। पुलिस और क्रांतिकारियों के बीच गोलीबारी शुरू हो गई। बाकी पुलिस बल भी वहां पहुंच गया, और क्रांतिकारियों को तीन ओर से घेर लिया। गौतम डोरे और अन्य क्रांतिकारी साहसपूर्वक लड़े, लेकिन पुलिस की संख्या और हथियारों के आगे वे बलिदान हो गए।

मल्लू डोरे का बलिदान:- मल्लू डोरे भी इस संघर्ष में बुरी तरह घायल हुए। किसी तरह बच निकलने के बाद भी अत्यधिक घायल होने के कारण बहुत दूर नहीं जा सके और पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन पर मुकदमा चला और 19 जून, 1924 को उन्हें फांसी दे दी गई। इस प्रकार दो सगे भाइयों, मल्लू और गौतम डोरे, ने देश की स्वाधीनता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।

क्रांतिकोश भाग एक तथा स्वतंत्रता सेनानी सचित्र कोश

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Abhishek Chauhan भारतीय न्यूज़ का सदस्य हूँ। एक युवा होने के नाते देश व समाज के लिए कुछ कर गुजरने का लक्ष्य लिए पत्रकारिता में उतरा हूं। आशा है की आप सभी मुझे आशीर्वाद प्रदान करेंगे। जिससे मैं देश में समाज के लिए कुछ कर सकूं। सादर प्रणाम।