कमांडो से कम नहीं श्रीनिरंजनी अखाड़ा की झुंडी टोली

कमांडो से कम नहीं श्रीनिरंजनी अखाड़ा की झुंडी टोली, The group of Sri Niranjani Akhara is no less than a commando,

Dec 18, 2024 - 19:58
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कमांडो से कम नहीं श्रीनिरंजनी अखाड़ा की झुंडी टोली

यह है खास

श्रीनिरंजनी अखाड़ा के आराध्य भगवान कार्तिकेय हैं, धर्मध्वजा का रंग गेरुआ है।

प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार, त्र्यंबकेश्वर, उदयपुर सहित अनेक शहरों में अखाड़े का आश्रम हैं।

चार जनवरी को छावनी प्रवेश

श्रीनिरंजनी अखाड़ा का छावनी प्रवेश (पेशवाई) चार जनवरी को है। श्रीमठ बाघम्बरी गद्दी से धूमधाम से अखाड़े की यात्रा आरंभ होगी।

धर्म की रक्षा के लिए बनाई गई नागा संतों की टोली, 30 वर्ष के बाद झुंड में शामिल संत निभाते हैं अलग जिम्मेदारी

महाकुंभनगर : धर्म के प्रति जीने-मरने का भाव होता है अखाड़ों के संतों में। नागा संत इसमें अग्रणी भूमिका निभाते हैं। ऐसे संतों की श्रीपंचायती निरंजनी अखाड़ा में भरमार है, जिसमें श्रेष्ठ है झुंडी (झुंड) टोली। सनातन धर्म व धर्मावलंबियों की रक्षा के लिए झुंडी टोली का गठन हुआ। तब एक झुंड में पांच सौ से एक हजार के बीच संत होते थे। मौजूदा समय में दो टोलियां है। एक टोली में 50 से 60 नागा संत होते हैं, जिन्हें कमांडो के समान प्रशिक्षण दिया जाता है। टोली में शामिल नागा संतों की आयु 18 से 30 वर्ष की रहती है। इनकी कठोरता व समर्पण को प्रदर्शित करने के लिए भगवान शंकर, भैरव बाबा, मां काली, मां दुर्गा आदि के ऊपर नाम होता है, जिससे उसमें रौद्र रूप झलक मिले। झुंडी टोली को जंगलों व पहाड़ी क्षेत्रों में रखकर मठ-मंदिरों की सुरक्षा कराई जाती है। 30 वर्ष से ऊपर उम्र होने पर संतों को टोली से हटाकर आश्रमों की आंतरिक व्यवस्था में लगाया जाता है।

सात शैव (संन्यासी) अखाड़ों में श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा प्रमुख है। निरंजनी अखाड़ा की स्थापना 726 ईसवी (विक्रम संवत् 960) में गुजरात के मांडवी में की स्थापना की गई। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद व श्री निरंजनी अखाड़ा के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी के अनुसार 10वीं से 17वीं शताब्दी तक अखाड़े के संत गांव-गांव घूमकर सनातन धर्मावलंबियों से धर्म के नाम पर एक बच्चे को दान स्वरूप लेते थे। उन्हें नागा संत बनाते थे। उस दौर में मुगलों का आतंक था। मठ-मंदिर असुरक्षित थे। खुलेआम मतांतरण कराया जाता था। तब नागा संत उनसे मोर्चा लेते थे।

इसलिए बनी झुंडी टोली

वैसे तो श्रीनिरंजनी अखाड़ा में 10 हजार से अधिक नागा संत हैं, उसमें भोले व भैरव की झुंडी अहम है। बात 14वीं शताब्दी की है। उस दौर में मुगलों से मोर्चा लेने के लिए नागा संतों की झुंडी टोली बनाने का निर्णय हुआ। नेतृत्व करने वाले सत के नाम से झुंडी टोली का नाम पड़ा। वहीं, श्रीनिरंजनी अखाड़ा की पहचान इसके पढ़े-लिखे संतों से है। अखाड़े में 30 हजार के लगभग संत हैं। इसमें आधे से अधिक डाक्टर, प्रोफेसर, इंजीनियर, अधिवक्ता व शिक्षक मिल जाएंगे, जिन्होंने अपना पेशा छोड़कर अथवा सेवानिवृत्त होने के बाद अखाड़े में संन्यास लिया है। केंद्रीय मंत्री रहते हुए साध्वी निरंजन ज्योति वर्ष 2019 कुंभ में निरंजनी अखाड़ा की महामंडलेश्वर बनी थीं।

श्रीनिरंजनी अखाड़ा के प्रमुख र संतों के साथ अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद व मनसा देवी ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी।

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार- विचार और कार्य से आने वाले समय में अपनी मेहनत के प्रति लगन से समाज को बेहतर बना सकते हैं। जरूरत है कि वे अपनी ऊर्जा, साहस और ईमानदारी से र्काय के प्रति सही दिशा में उपयोग करें , Bachelor of Journalism And Mass Communication - Tilak School of Journalism and Mass Communication CCSU meerut / Master of Journalism and Mass Communication - Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University पत्रकारिता- प्रेरणा मीडिया संस्थान नोएडा 2018 से केशव संवाद पत्रिका, प्रेरणा मीडिया, प्रेरणा विचार पत्रिका,